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कविता

भारतवर्ष बगीचा

रचना : स्व0 श्री रामस्वरूप आजाद (शिष्य स्वामी भीष्म जी)

भारतवर्ष बगीचे के अब ना रहे माली।।
ज्योतिष और व्याकरण गणित की खो दई ताली।।
ऋषि मुनि इस भूमण्डल को तक पर तोल गए।
म्हारे पुरखा पृथ्वी और अम्बर में डोल गए।।
हर वस्तु की शक्ति को वेदों में खोल गए।
सारी दुनिया से मुंह ऊँचा करके बोल गए।।
पूछा करते थे कैसी होती है कंगाली।।1।।

म्हारा सा व्याकरण नहीं था सारी दुनिया में।
अर्जुन सा भी कौन हुआ बलकारी दुनिया में।।
गांधी सा भी कौन हुआ तपधारी दुनिया में।
दयानन्द सा कौन हुआ ब्रह्मचारी दुनिया में।।
राम अकेले ने मारे थे रावण और बाली।।2।।

इस गुलशन में नल और नील दो फूल लगे भाई।
न्याय करै थी मशीन विक्रमादित्य की हर्षाई।।
भोज का काठ का घोड़ा जाता अम्बर में भाई।
ये थी हमारी शान रहा इतिहास यूँ बतलाई।।
बिजली से रहती थी यहाँ घर-घर में उजियाली।।3।।

आज तरक्की लूटमार और कतल होंय सरे आम।
ढ़ेर लगा दिये लाशों के जने क्या सोचा इन्तजाम।।
लुटे मुकदमेबाजों के आज रोज गाम के गाम।
बना दिया बदमाशों ने मेरा देश नरक का धाम।।
कहै ‘आजाद’ हुई वीरों से यह पृथ्वी खाली।।4।।

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