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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

24 नवंबर 1675 की तारीख गवाह बनी थी, हिन्दू के हिन्दू बने रहने की !

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दोपहर का समय और जगह चाँदनी चौक , दिल्ली लाल किले के सामने जब मुगलिया हुकूमत की क्रूरता देखने के लिए लोग इकट्ठे हुए पर बिल्कुल शांत बैठे थे -नौवें गुरू तेग बहादुर साहिब।
लोगो का जमघट !!
और सबकी सांसे अटकी हुई थी ! शर्त के मुताबिक अगर गुरु तेग बहादुर जी इस्लाम कबूल कर लेते हैं तो फिर सब हिन्दुओं को मुस्लिम बनना होगा, बिना किसी जोर जबरदस्ती के !
औरंगजेब के लिए भी ये इज्जत का सवाल था
समस्त हिन्दू समाज की भी सांसे अटकी हुई थी क्या होगा? लेकिन गुरु जी अडिग बैठे रहे। किसी का धर्म खतरे में था धर्म का अस्तित्व खतरे में था तो दूसरी तरफ एक धर्म का सब कुछ दांव पे लगा था ! हाँ या ना पर सब कुछ निर्भर था।
जिस मस्जिद से कुरान की आयत पढ़ कर यातना देने का फतवा निकला था ! वो मस्जिद आज भी है ,
गुरुद्वारा शीश गंज, चांदनी चौक, दिल्ली ! के पास । पुरे इस्लाम के लिये प्रतिष्ठा का प्रश्न था ! आखिरकार जब इस्लाम कबूलवाने की जिद्द पर इस्लाम न कबूलने का हौसला अडिग रहा तो जल्लाद की तलवार चली और प्रकाश अपने स्त्रोत में लीन हो गया ।
ये भारत के इतिहास का एक ऐसा मोड़ था जिसने पूरे हिंदुस्तान की सभ्यता, संस्कृति व भविष्य बदलने से रोक दिया ।
हिंदुस्तान में हिन्दुओं के अस्तित्व में रहने का दिन !! सिर्फ एक हाँ होती तो यह देश हिन्दुस्तान नहीं होता !
गुरु तेग बहादुर जी जिन्होंने हिन्द की चादर / धर्म की चादर/सृष्टि की चादर/ मानवता की चादर बनकर तिलक और जनेऊ की रक्षा की । उनका अदम्य साहस भारतवर्ष कभी नही भूल सकता । कभी एकांत में बैठकर सोचिएगा , अगर गुरु तेग बहादुर जी अपनी कुर्बानी न देते तो हर मंदिर की जगह एक मस्जिद होती और घंटियों की जगह अज़ान सुनायी दे रही होती।

24 नवम्बर का यह इतिहास सभी को पता होना चाहिए !
इतिहास के वो पृष्ठ जो पढ़ाए नहीं गये !

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