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इतिहास के पन्नों से

महाभारत की कहानियां , अध्याय- ९ ख घटोत्कच की वीरता

अगले दिन कौरव सेना के सेनापति भीष्म जी ने राजा भगदत्त को घटोत्कच का सामना करने के लिए नियुक्त किया। उनकी आज्ञा को स्वीकार कर भगदत्त सिंहनाद करते हुए घटोत्कच की ओर बढ़ चला । भगदत्त के साथ पांडवों का उस दिन बड़ा भयानक संग्राम हुआ। युद्ध इतना भयंकर था कि एक बार पांडवों की सेना में भगदड़ मच गई । तब घटोत्कच ने मोर्चा संभाला और भागती हुई सेना का मनोबल बढ़ाते हुए उसे रोक कर अपनी वीरता और पराक्रम का प्रदर्शन किया। राजा भगदत्त जितना ही घटोत्कच को नियंत्रण में लेने का प्रयास करता था ,उतना ही वह अनियंत्रित होता जा रहा था। इसी दिन के युद्ध में अर्जुन का वीर पुत्र इरावान मर गया।
महाभारत के युद्ध के समय श्री कृष्ण जी अर्जुन को अंत तक बचाए रखना चाहते थे। उन्होंने बड़ी चतुरता से भीष्म को इस इस बात की घोषणा करने के लिए प्रेरित किया कि वह किसी भी पांडव को युद्ध के समय मारेंगे नहीं। कुल मिलाकर अब एकमात्र कर्ण ही ऐसा योद्धा बचा था जो अर्जुन का वध कर सकता था। घटोत्कच नाम की शक्ति को श्री कृष्ण जी अब उचित समय पर प्रयोग कर लेना चाहते थे। यही कारण था कि उन्होंने घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध करने के लिए भेजा। घटोत्कच ने कर्ण के युद्धक्षेत्र में छक्के छुड़ा दिए। वह जिस शक्ति को अर्जुन के लिए बचा कर रखना चाहता था उसे घटोत्कच पर चलाने के लिए विवश हो गया।
जिस समय घटोत्कच कर्ण को मारने की इच्छा से युद्ध कर रहा था, उस समय दुर्योधन ने अपने भाई दु:शासन से कहा था कि “भाई ! यह राक्षस कर्ण पर वेगपूर्वक आक्रमण कर रहा है, इसलिए घटोत्कच को पूर्ण शक्ति के साथ रोकने का पुरुषार्थ करो।”
इसी समय दुर्योधन की आज्ञा पाकर जटासुर के पुत्र अलंबुष ने घटोत्कच को ललकारा और उस पर अस्त्र-शस्त्रों की वर्षा आरंभ कर दी। इसके उपरांत भी घटोत्कच घबराया नहीं। उसने दुर्योधन के द्वारा भेजे गए जटासुर के पुत्र का अंत कर दिया। इसके बाद घटोत्कच ने राक्षसराज अलायुद्ध से युद्ध किया। यह राक्षसराज उस समय कर्ण की ओर से घटोत्कच का ध्यान भंग करने के उद्देश्य से प्रेरित होकर आया था। इस राक्षस राज ने एक बार इतना भयंकर प्रहार घटोत्कच के मस्तक पर किया कि उसे मूर्च्छा आ गई। परंतु उसके पश्चात घटोत्कच ने अपनी गदा उसके ऊपर फेंकी जिसने अलायुद्ध के रथ, सारथि और घोड़े को चूर-चूर कर दिया। इसके बाद घटोत्कच ने उस राक्षस को पकड़ लिया और उसे घुमाकर बलपूर्वक पटक दिया। इसी समय घटोत्कच ने उसके विशाल मस्तक को भी काट दिया। इस प्रकार एक और महाबली का अंत करने का श्रेय घटोत्कच को प्राप्त हो गया। जिससे दुर्योधन पक्ष को बड़ी हानि हुई।
कर्ण अब घटोत्कच के सामने अपने आपको थका हुआ अनुभव कर रहा था। उसने देख लिया था कि घटोत्कच किस प्रकार दुर्योधन पक्ष की बड़ी-बड़ी शक्तियों का अंत करता जा रहा था। दुर्योधन को भी इस बात की चिंता हो रही थी कि यदि इसी गति से उसके योद्धा कम होते गए तो युद्ध में उसका पराजित होना निश्चित है। तब उसने भी अपने सभी महारथियों के साथ मिलकर अपने मित्र कर्ण को घटोत्कच का अंत करने के लिए प्रेरित किया।
इन परिस्थितियों में कर्ण ने इंद्र प्रदत्त शक्ति का प्रयोग करते हुए घटोत्कच का अंत कर दिया। पर वास्तव में यह घटोत्कच का अंत नहीं, यह कर्ण के अंत की शुरुआत थी। क्योंकि इंद्र प्रदत्त इस शक्ति के घटोत्कच पर प्रयोग करने के बाद अर्जुन के लिए कारण की शक्ति बहुत कम हो गई थी।

कहानी से शिक्षा

घटोत्कच संसार से चला गया, पर संसार से जाने से पहले वह अपना पराक्रम जिस प्रकार दिखा कर गया उससे उसकी पितृभक्ति ,परिवार भक्ति, राष्ट्र भक्ति और संस्कृति के प्रति समर्पण का भाव दिखाई देता है। वह उस समय की दानवतावादी शक्तियों के विरुद्ध लड़ा और अपना नाम अमर कर गया । उसकी मृत्यु ने संदेश दिया कि जब-जब राष्ट्र, धर्म और संस्कृति पर संकट आए और जब-जब परिवार भक्ति , पितृ भक्ति और राष्ट्रभक्ति के प्रदर्शन का समय आए तब किसी से भी मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। जीवन अनेक परीक्षाओं का नाम है और मनुष्य से अपेक्षा की जाती है कि वह प्रत्येक प्रकार की परीक्षा में अपने आपको उत्तीर्ण करके दिखाएं।

डॉ राकेश कुमार आर्य

( यह कहानी मेरी अभी हाल ही में प्रकाशित हुई पुस्तक “महाभारत की शिक्षाप्रद कहानियां” से ली गई है . मेरी यह पुस्तक ‘जाह्नवी प्रकाशन’ ए 71 विवेक विहार फेस टू दिल्ली 110095 से प्रकाशित हुई है. जिसका मूल्य ₹400 है।)

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