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पर्व – त्यौहार

भगिनीभ्रातृपावनप्रेम

” “
“1-लोके च भगिनी पूज्या,पूजनीया गृहे ननु।”
” भगिनी-भावना भव्या,भगिनी-कामना सदा।।”
भावार्थ- इस महालोक में भगिनी ( बहन ) सर्वाधिक पूज्या है, निश्चय से अपने सदन में भी स्वसा ( बहन ) का सम्मान करना चाहिए।
भगिनी की पावन भावना भव्य है और भगिनी की कामना ( चाहना ) हमेशा करनी चाहिए।
“2- भगिन्या सह सम्बन्धः,भगिनीप्रेमबन्धनम्।”
” प्रेमरज्जु: महाप्रेम,जन्मना जायते सदा।।”
भावार्थ- यह बहन के साथ प्रेम का सम्बन्ध,यह बहन के साथ अमूल्य प्रेम का पावन बन्धन,यह प्रेमसूत्र महाप्रेम हमेशा जन्म से समुत्पन्न होता है।
“3- प्रभो!ददातु मह्यं वै,भगिनीं मोहमोहिनीम्।”
” क्रीडनं हसनं नित्यं,पठनं चैव खादनम्।।”
भावार्थ- हे प्रभो!मुझे निश्चय से मोह को मोहित करने वाली बहन दे दीजिए।जिसके साथ मेरा खेलना,हसना,भोजन करना और पढ़ना प्रतिदिन होता रहे।
” 4-भगिनी शोभते गेहे,भगिनी राजते ननु।”
” तां विना जीवनं शून्यं,सम्बन्धो नैव वर्धते।।”
भावार्थ- निश्चय से बहन घर में सुशोभित होती है और भासमान होती है।बहन के बिना जीवन शून्य है और बिना बहन के परिवार में सम्बन्ध भी नहीं बढ़ते हैं।
“5- प्रेष्ठा: बालाः सदा रक्ष्या:,गेहे मार्गे च निर्जने।”
” सदाचारो महाधर्म:,सदाचारी च पूज्यते।।”
भावार्थ- सभी प्रिय बालिकाओं की घर में, मार्ग में और एकान्त में हमेशा रक्षा करनी चाहिए।क्योंकि संसार में सभी के लिए सदाचार ही सबसे बड़ा धर्म है और सदाचारी मानव की सब जगह पूजा होती है।
“6-सावित्री भगिनी ज्येष्ठा,गायत्री च कनिष्ठिका।”
” शिवानी अक्षिता काश्वी,अनुज्ञा योगिता शैली।।”
भावार्थ- मेरी दो बहनों में बड़ी बहन श्रीमती सावित्री शर्मा और छोटी गायत्री शर्मा हैं।
भाई-बहनों के परिवार में श्रीमती शिवानी शर्मा, श्रीमती शैली शर्मा, योगिता,अक्षिता,काश्वी और अनुज्ञा सबसे छोटी है।
“7- बालासृष्टि: महादिव्या,बालाभक्ति: मनोहरा।”
” बालाप्रज्ञा महाश्रेष्ठा,बालाक्रीडा च रोचते।।”
भावार्थ- विधाता के अनुपम रचनाकौशल में बालिकाओं की रचना दिव्यतम है,बालिकाओं की प्रेमभक्ति मनोहारिणी है,बालिकाओं की महामेधा महाश्रेष्ठ है और बालिकाओं की शैशव बालक्रीडा उल्लासपूर्ण है।
हमारे परिवार की बालिकाएं अपनी ज्ञानज्योति से भारत से लेकर आयरलैण्ड तक जगमग हो रही हैं और बालक भी अपने-अपने क्षेत्र में ज्ञान-विज्ञान से सर्वत्र भासमान हो रहे हैं।
” परिवार प्रेमापन्न हो,परिवार प्रेमप्रसार हो।”
” परिवार सेवाधर्म हो,परिवार प्रेमप्रधान हो।।”
हे प्रभो! आपकी अनन्त अनुकम्पा, समस्त देवों के अनुग्रह, अपने पूर्वजों और माता-पिता की आशीर्वाद की महाछ्त्रछाया में सभी भारतीय परिवार प्रेमसुमन से सुवासित होकर विश्व में सदा विभूषित और विश्रुत हों।
“भगिनीप्रेमप्रस्तुति:”
आचार्य चन्द्रशेखर शर्मा
( स्वस्ति-सदन, ग्वालियर )

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