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हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

एक कर्मठ संन्यासी : स्वामी भीष्म जी महाराज

लेखक – अमरस्वामी सरस्वती
स्त्रोत – स्वामी भीष्म अभिनन्दन ग्रंथ
प्रस्तुति – अमित सिवाहा

श्री स्वामी भीष्म जी को अरनियां जिला बुलन्द शहर (उत्तर प्रदेश) में आर्य समाज के एक वार्षिकोत्सव पर थी कुंवर सुखलाल जी आर्य मुसाफिर ने बुलवाया था। पहले पहिल तभी मैंने इनको देखा और इनके भजनोपदेशों को सुना था। तब श्री हरिदत्त जी जो अब आर्य प्रादेशिक सभा के दिल्ली में भजनोपदेशक है वह स्वामी के पास भजनोपदेशक बन रहे थे। उसके पीछे तो कोई गिनती नहीं कितनी बार कितने स्थानों पर उनको देखा और सुना है ।

मैंने श्री स्वामी भीष्म जी में क्या २ गुण देखे :

(1) स्वाध्यायशीलता :- मैंने देखा कि स्वामी भीष्म जी सारा दिन उत्सव में रहते हुए भी अच्छे अच्छे ग्रन्थों का अध्ययन करते रहते थे। महर्षि दयानन्द जी के प्रत्यों को बड़ी रुचि से पढ़ते थे और उनकी पंक्ति २ का ज्ञान रखना इनकी विशेषता थी।

वैसे दर्शनों उपनिषदों आदि ग्रन्थों को भी पढ़ते थे ।

(2) ग्रन्थों का दान करना बहुत सी पुस्तकों को स्वयं भली भांति पढ़ने के पीछे दूसरे स्वाध्याय शीलों को भी देते थे। हमारा लिखा हुआ ग्रंथ (जो अब किसी मूल्य पर भी कहीं नहीं मिलता है वह) – “आर्य सिद्धान्त सागर ( जिसमें तीन हजार प्रमाण हैं वह ग्रन्थ भी श्री स्वामी जी ने मेरे सम्मुख एक स्वाध्याय प्रेमी को दे दिया था।

सत्यार्थ प्रकाश के विरुद्ध एक ग्रन्थ दया नन्द तिमिर भास्कर जो प्रसिद्ध पौराणिक पं० ज्वाला प्रसाद मिश्र मुरादाबादी ने लिखा था उसका उत्तर श्री पं० तुलसी राम जी स्वामी सामवेद भाष्यकार (मेरठ) ने- “भास्कर प्रकाश” नामक ग्रन्थ में दिया था, श्री स्वामी भीष्म जी ने वह “भास्कर प्रकाश” मुझ को दिया था ।

(3) प्रचार को लगन :-श्री स्वामी भीष्म जी ने सारा हरियाणा और उत्तर प्रदेश की मेरठ कमिश्नरी के एक-एक ग्राम में प्रचार किया है। जब बसें कहीं भी नहीं चलती थी तब ग्राम २ प्रचार करना बहुत कठिन था । घूम घूम कर सर्वत्र आर्य सिद्धान्तों का प्रचार किया और लाखों ग्रामीणों को आर्य समाजी बनाया

(4) सिद्धान्तों पर अटल विश्वास : एक बार श्री स्वामी भीष्म जी पौराणिक पं० कविरत्न अखिलानन्द जी के घर पर अनूप शहर जिला बुलन्द शहर (उ० प्र०) पहुंच गये और अपने हाथ में एक सौ रुपये का नोट लेकर अखिलानन्द जी से बोले कि चारों वेदों, मनु स्मृति, बाल्मीकीय रामायण और महाभारत इन ग्रन्थों में- नमस्ते के स्थान पर अभिवादन के लिये राम-राम और “आर्य” के स्थान में हमारा नाम “हिन्दु” दिखादो और यह नोट ले लो ।

अखिलानन्द जी आंय, बांय, शांय करते रह गये और इनसे नोट न ले सके तथा प्रमाण न दिखला सके ।

( 5 ) सदा प्रसन्न रहना :–मैंने सदा उनको प्रसन्न ही देखा है : इनका यह भी एक नियम है कि–जिससे प्रेम है और रखना है उस से बहस नहीं करनी ।

उनके जीवन में मैंने बहुत गुण देखे हैं। उनकी वाणी में अनुकरणीय मिठास भी है और दुष्ट को डराने के लिए बल भी । उनका अभिनन्दन करने वालों ने उत्तम कार्य किया है मैं इस कार्य में सहर्ष सम्मिलित होता हूं ।

प्रस्तुति : आर्य सागर खारी

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