मुरगन के छः सिर की वास्तविकता और अज्ञानियो की अवैज्ञानिक कथा, दिमागी अपंगता का परिचय:*

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Dr D K Garg

भगवान मुरगन के छः सिर बताए जाते है और इसके पीछे एक कथा भी सुनाई जाती है जो लेखक और गायक की मानसिक विकृति का प्रतीक है ।
कहते है जब शिव पार्वती विवाह के बाद एक गुफा में मिले तब वहां गुफा में एक कबूतर भी चला गया और उसने भगवान शिव के वीर्य का पान कर लिया। लेकिन परंतु वह इसे सहन नहीं कर पाया और भागीरथी को सौंप दिया। गंगा की लहरों के कारण वीर्य 6 भागों में विभक्त हो गया और इससे 6 बालकों का जन्म हुआ। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार यह 6 बालक मिलकर 6 सिर वाले बालक बन गए, जो आगे चलकर कार्तिकेय कहलाए।

वास्तविकता क्या है: जरा विचार करे ये कैसे संभव है?उपरोक्त गप्प कथा पर जाने के बजाय मूल संदेश पर आते है।ईश्वर हर तरफ हैं और हमको हर तरफ से देख रहा है । यहा छः सिर का मतलब चार दिशाएं और आकाश पाताल से है।
प्रमाण के लिए अथर्ववेद के छः मंत्र है जो अध्याय 3/27/1 से लेकर 3/27/6 तक है इनको मनसा परिक्रमा मंत्र के नाम से जाना जाता है।उदाहरण के लिए
| अथ मनसा परिक्रमा मन्त्र ||

ओ३म्‌ प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षितादित्या इषवः|
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु|
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः॥
अथर्ववेद ३/२७/१
ओ३म्‌ दक्षिणा दिगिन्द्रोऽधिपतिस्तिरश्चिराजी रक्षिता पितर इषवः|
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु|
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/२
ओ३म्‌ प्रतीची दिग्वरुणोऽधिपतिः पृदाकू रक्षितान्नमिषवः.
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु.
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/३
ओ३म्‌ उदीची दिक् सोमोऽधिपतिः स्वजो रक्षिताऽशनिरिषवः.
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु.
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/४
ओ३म्‌ ध्रुवा दिग्विष्णुरधिपतिः कल्माषग्रीवो रक्षिता वीरुध इषवः.
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु.
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३/२७/५
ओ३म्‌ ऊर्ध्वा दिग्बृहस्पतिरधिपतिः श्वित्रो रक्षिता वर्षमिषवः.
तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु.
योऽस्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः.
अथर्ववेद ३ /२७/ ६

हे पावन परमेश्वर ! आप प्राची, प्रतीची आदि समस्त दिशाओं में विध्यमान हो कर हम सब की रक्षा करते है | हम आपके रक्षक स्वरुप को बार बार प्रणाम करते है तथा द्वेष भाव को आपकी न्याय व्यवस्था में समर्पित करते है |

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