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महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 200वीं जन्मजयंती पर विशेष…

• क्यों मुझे महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के प्रति आदर-सम्मान के भाव हैं?

केवल इसलिए नहीं कि उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की, अपितु इसलिए कि उन्हीं ब्रह्मचारी योगी दयानन्द ने –

  1. असत्य के साथ कभी समझौता नहीं किया।
  2. स्त्रियों एवं शूद्रों को उनके मौलिक अधिकार दिलाए।

  3. भारत की अस्मिता और स्वाभिमान को जगाया।

  4. सोए हुए भारत की आत्मा को झिंझोड़ा और उसे नवजागरण, समाज सुधार के मार्ग पर चलना सिखाया।

  5. आर्यसमाज की 1875 में स्थापना करने से पहले स्वदेशी एवं स्वभाषा का पाठ पढ़ाया एवं विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आन्दोलन चलाया।

  6. सर्वप्रथम संस्कृत के साथ-साथ हिन्दी में वेदों के विशुद्ध भाष्य किए।

  7. सर्वप्रथम फिरोजपुर में अनाथालय खोला।

  8. सर्वप्रथम हरियाणा के रिवाड़ी में गौशाला खोली तथा गाय आदि पशु-पक्षियों तथा शाकाहार का महत्त्व बताने के लिए ‘गोकरुणानिधि’ पुस्तक लिखी।

  9. सर्वप्रथम आर्यसमाज प्रवर्तित कर उसमें प्रजातान्त्रिक प्रणाली का सूत्रपात किया।

  10. सर्वप्रथम अपनी आत्मकथा हिन्दी में लिखी।

  11. 1882 में गौवध बन्द कराने के लिये दो करोड़ हस्ताक्षर युक्त एक विज्ञापन महारानी विक्टोरिया को देने का देशव्यापी अभियान चलाया।

  12. भारत में औद्योगिक तथा तकनीकी विकास के लिए 1880 में सर्वप्रथम जर्मनी के एक विशेषज्ञ प्रोफेसर जी० वाइज के साथ पत्रव्यवहार किया ताकि भारतीय विद्यार्थियों को कला-हुन्नर के लिए प्रशिक्षित किया जा सके।

  13. सत्य के प्रचार के लिए अगणित अपमान सहन किए, विषपान तक किया, परंतु अपने विरोधियों का कभी अनिष्ट नहीं सोचा।

  14. सत्यार्थ प्रकाश जैसा अमूल्य ग्रंथ लिखा, जिसे पढ़कर हमें सत्य-असत्य का विवेक प्राप्त होता है।

  15. स्वदेश-भक्ति, देशाभिमान का सूत्रपात किया, जिससे राष्ट्रीय जागरण हुआ और देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करनेवाले अनेक क्रांतिकारी पैदा हुए।

  16. संस्कारविधि जैसा ग्रंथ लिखकर पुरातन वैदिक षोडश संस्कारों की पुनित परंपरा को पुनर्जीवित किया।

  17. वेदोक्त ईश्वर का सत्य स्वरूप प्रकाशित किया और उसे पाने – उसका साक्षात्कार करने के लिए संध्योपासन, योगाभ्यास आदि को व्याख्यायित किया।

  18. ईश्वर-जीव-प्रकृति – ये तीन अनादि तत्त्व आधारित वैदिक दर्शन (त्रैतवाद) का प्रमाण पुरस्सर एवं तार्किक प्रतिपादन किया।

  19. देश में व्याप्त अंधविश्वासों, पाखंडों, कुरीतियों, अवैज्ञानिक चिंतन आदि के विरुद्ध मृत्यु पर्यन्त संघर्ष किया।

  20. और अन्त में ‘हे ईश्वर ! तेरी इच्छा पूर्ण हो’ ऐसा कहकर अपने आपको उस अनन्त ब्रह्म के आगे समर्पित कर दिया।

साभार : Bhavesh Merja

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