Categories
इसलाम और शाकाहार

मीनाक्षीपुरम, तमिलनाडु के धर्मान्तरण की हृदयविदारक घटना…

#

23 फरवरी 1981 का दिन था वह
जब तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में डाॅक्टर नसरुद्दीन कमाल अपने साथियों के साथ एक दलित परिवार को बंधक बनाए हुए थे

घर के सभी लोगों ने इस्लाम कबूल लिया था
और घर के लोग ही क्यों
लगभग एक हजार दलित धर्मांतरण करके
जबरन मुस्लिम बनाए चुके थे
इसलिए मीनाक्षीपुरम का नाम बदलकर
#रहमतनगर रख दिया गया था

यह दलित गिने के घर की घटना है
उसकी 8 वर्ष की पौत्री थी #वैदेही
वह किसी भी कीमत पर मुस्लिम बनने को तैयार नहीं हुई
‘‘मै मर जाऊंगी लेकिन कलमा नहीं पढ़ूंगी”

उसने अपने दादा से कहा था,
‘‘बाबा आपने ही तो मुझे गायत्री मंत्र सिखाया था ना !!
आपने ही तो बताया था
कि यह परमेश्वर की वाणी वेदों का सबसे सुंदर मंत्र है
इससे सब मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं !!

फिर मैं उन लोगों का कलमा कैसे पढ़ सकती हूं
जिन्होंने मेरे सहपाठियों का कत्ल कर दिया
वो भी सिर्फ इसलिए
क्योंकि वे भी मुस्लिम नहीं बनना चाहते थे !!

हम ऐसे मजहब को कैसे अपना सकते हैं
जिसे न अपनाने पर कत्ल का भय हो
मुझे वो गायत्री मंत्र प्रिय है जो मुझे निर्भय बनाता है”

”बेटी जीवन रहेगा तो ही धर्म रहेगा ना !!
जिद छोड दे और कबूल कर ले इस्लाम”
बाबा ने अंतिम प्रयास किया था

उसने बाबा से सवाल किया
“बाबा आपने एक दिन बताया था
कि गुरु गोबिंद सिंह के दो बच्चे दीवार में जिंदा चिनवा दिए थे, लेकिन उन्होंने इस्लाम नहीं कबूला
क्या मैं उन सिख भाइयो की छोटी बहन नहीं !!
जब वे धर्म से नहीं डिगे तो मैं कैसे डिग सकती हूं !!”

‘‘दो टके की लड़की, कलमा पढ़ने से इंकार करती है” डाॅक्टर नसरूद्दीन कमाल के साथ खड़े मौलाना नुरूद्दीन खान ने उसके बाल पकड़ते हुए
चूल्हे पर गर्म हो रहे पानी के टब में उसका मुंह डूबा दिया
पानी भभक रहा था
इतना गर्म था कि बनती भाप
धुंए के समान नजर आ रही थी
एक बार डुबोते ही बालिका के चेहरे की चमड़ी निकल गई
वो चीख पड़ी थी ‘‘भगवान मुझे बचा लो’’

‘‘तेरा पत्थर का भगवान तुझे बचाने नहीं आएगा !!
अब तो इस्लाम कबूल ले लड़की
नहीं तो इस बार तुझे इस खोलते पानी में डुबा दिया जाएगा”

फिर उसके दादा ने भी कहा,
“कबूल कर ले बेटी इस्लाम,
हम भी सब मुसलमान बन चुके,
तू जिंदा रहेगी तो तेरे सहारे मेरा बुढ़ापा भी कट जाएगा”

मौलवी ने चूल्हे के पास से मिर्च पाउडर उठाकर उसकी आंखों में भरते और चेहरे पर मलते हुए कहा,
“दूध के दांत टूटे नहीं और इस्लाम नहीं कबूलेगी”

एक बार फिर तड़प उठी थी वह मासूम
पर इस बार भी यही कह रही थी
‘‘नहीं मैं इस्लाम नहीं कबूल करूंगी’’

मौलवी को भी क्रोध आ गया था
इस बार तो उसका सिर जलते हुए चूल्हें में ही दे डाला था
परंतु प्राण त्यागते हुए भी उस बालिका के मुख से यही निकल रहा था, ‘‘मैं इस्लाम नहीं कबूल करूंगी”

अंतिम बार डाॅक्टर नसरूद्दीन कमाल की ओर आशा भरी दृष्टि से देखा था,
‘‘मेरा धर्म बचा लो…डाॅक्टर साहब…पत्थर के भगवान नहीं आएंगे, आज से मैंने तुझे भगवान मान लिया…’’

अब उसमें कुछ नहीं रहा था
वह तो मिट्टी बन चुकी थी
डाॅक्टर नसरूद्दीन कमाल भी तो धर्मांतरण करने वाले लोगों की मंडली में ही शामिल था
लेकिन उस बालिका ने पता नहीं उसमें ऐसा क्या देखा
कि विधर्मी से ही धर्म बचाने की गुहार लगा बैठी थी !!

उस असहाय बालिका का धर्म के प्रति दृढ़ निश्चय देखकर हृदय चीत्कार कर उठा था नसरूद्दीन कमाल का,
‘‘या अल्लाह
ऐसे इस्लाम के ठेकेदार बनने से तो मर जाना अच्छा है”

यही सब सोचते हुए वह अपने घर की ओर भाग लिया और पूरे दस दिन अपने घर से नहीं निकला
कुछ खाया पीया नहीं
बस उस बालिका का ध्यान बराबर करता और आंखों में आंसू भर आते उसके

गायत्री मंत्र का अर्थ जानने के लिए उसने एक किताब खरीदी, गलती से वह “#नूरे_हकीकत” यानी सत्यार्थ प्रकाश थी
उसने उसका गहराई से अध्ययन किया
और 11 नवंबर 1981 को एक जनसमूह के सामने
विश्व हिन्दू परिषद और आर्य समाज के तत्वावधान में अपने पूरे परिवार के साथ वैदिक धर्म अंगीकार कर लिया

डाॅक्टर नसरूद्दीन ने अब अपना नाम रखा था
आचार्य मित्रजीवन
पत्नी का नाम बेगम नुसरत जहां से श्रीमती श्रद्धादेवी
और तीन पुत्रियों शमीम, शबनम और शीरीन का नाम क्रमशः आम्रपाली, अर्चना और अपराजिता रखा गया

15 नवंबर 1981 को आर्य समाज सांताक्रुज, मुंबई में उनका जोरदार स्वागत हुआ
जहां उन्होंने केवल एक ही बात कही,
“मैं वैदेही को तो वापस नहीं ला सकता
लेकिन हिन्दू समाज से मेरी विनती है
मेरी बेटियों को वह अपनाए
वे हिन्दू परिवारों की बहू बनेंगी तो समझूंगा
कि उस पाप का प्रायश्चित कर लिया
जो मेरी आंखों के सामने हुआ
हालांकि वह मैंने नहीं किया लेकिन मैं भी दोषी था
क्योंकि मेरी आंखों के सामने
एक मासूम बालिका की निर्मम हत्या कर दी गई”

प्रस्तुति : डी0के0 गर्ग

Comment:Cancel reply

Exit mobile version