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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ब्राह्मण विरोधी छवि से चिंतित भाजपा आलाकमान

अजय कुमार

योगी की ब्राह्मण विरोधी इमेज उनके पहले कार्यकाल से ही बनने लगी थी, जब मोदी के करीबी पूर्व नौकरशाह को योगी ने तमाम चर्चाओं के बाद भी अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया था। यह छवि माफिया विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद और भी पुख्ता हो गई।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी कार्यशैली के द्वारा काफी सुर्खियां बटोर रहे हैं। योगी की छवि एक सख्त शासक के रूप में बनी है। यूपी की कानून व्यवस्था की मिसाल अन्य राज्यों में दी जाती है। योगी के छहः वर्षों से अधिक के कार्यकाल में सीएम पर एक भी भ्रष्टाचार या भाई भतीजावाद का अरोप नहीं लगा है। योगी को जातिवाद की सियासत से ऊपर देखा जाता है। कहा जाता है कि योगी की कोई जाति नहीं होती है, लेकिन इससे इतर राजनीति के गलियारों में अक्सर योगी पर आरोप लगता रहता है कि वह निष्पक्ष नहीं हैं, उनकी सरकार में क्षत्रियों को बढ़ावा मिलता है, जबकि ब्राह्मण नेताओं के साथ योगी के संबंध अच्छे नहीं रहते हैं।

योगी की ब्राह्मण विरोधी इमेज उनके पहले कार्यकाल से ही बनने लगी थी, जब मोदी के करीबी पूर्व नौकरशाह को योगी ने तमाम चर्चाओं के बाद भी अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया था। यह छवि माफिया विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद और भी पुख्ता हो गई। योगी सरकार के पहले कार्यकाल में उप मुख्यमंत्री रहे दिनेश शर्मा से इस्तीफा लेना भी ब्राह्मण समाज को रास नहीं आया था, यह और बात थी कि एक और ब्राह्मण चेहरे बृजेश पाठक को उनकी जगह डिप्टी सीएम बनाकर कुछ हद तक इस नाराजगी को कम कर लिया गया था।

बहरहाल, एक तरफ जहां योगी विरोधी उन पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगाते रहते हैं तो दूसरी तरफ केन्द्र की मोदी सरकार लगातार इस कोशिश में जुटी हुई है कि किस तरह से ब्राह्मणों की नाराजगी कम की जाए, इसीलिए लखीमपुरी खीरी के सांसद और मोदी सरकार में मंत्री अजय मिश्र टेनी को उनके बेटे के कारनामों के बाद भी मंत्रिमंडल से बाहर नहीं किया गया। अजय मिश्र के पुत्र अशीष मिश्र ने आंदोलन कर रहे किसानों पर अपनी जीप चढ़ा दी थी जिसमें कई लोगों की मौत हो गई थी। इसी प्रकार जब यूपी के कद्दावर ब्राह्मण नेता और कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में उम्र कैद की सजा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी को जेल से बाहर लाने का रास्ता प्रशस्त करने की जरूरत पड़ी तो योगी सरकार ने बिना किसी अड़ंगे के उनकी रिहाई के लिए सहमति दे दी।

अब पूर्व डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा को राज्यसभा भेजकर एक बार फिर ब्राह्मणों को मनाने की कोशिश की गई है। भारतीय जनता पार्टी ने डॉ. दिनेश शर्मा को राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार घोषित किया है। राज्यसभा उप चुनाव को लेकर उम्मीदवार के नाम पर पिछले दिनों मंथन चल रहा था। केंद्रीय चुनाव समिति की ओर से डॉ. दिनेश शर्मा के नाम पर मुहर लगा दी गई। भाजपा ने इस कदम से प्रदेश के ब्राह्मण वोट बैंक को बड़ा संदेश देने की कोशिश की है। योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले कार्यकाल में डॉ. दिनेश शर्मा को डिप्टी सीएम बनाकर भाजपा ने संदेश दिया था। डॉ. शर्मा को ग्रासरूट से जुड़ा नेता माना जाता है। लखनऊ के मेयर से लेकर उन्होंने प्रदेश के उप मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया है। इन दिनों वे पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत बनाने में जुटे हुए हैं। उनके राज्यसभा उम्मीदवार बनाए जाने से उनके समर्थकों के बीच एक बड़ा संदेश जाएगा।

गौरतलब हो कि यूपी से राज्यसभा की एक सीट खाली है। दरअसल, ये सीट बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य हरद्वार दुबे के निधन के बाद खाली हो गई थी। इसी साल 26 जून को हार्ट अटैक की वजह से दिल्ली के अस्पताल में उनका निधन हो गया था। अब इस सीट के लिए उपचुनाव की घोषणा हुई है। भाजपा केंद्रीय चुनाव समिति की ओर से पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और मुख्यालय प्रभारी अरुण सिंह के हस्ताक्षर से दिनेश शर्मा के नाम का ऐलान किया गया। इसके साथ ही राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। दिनेश शर्मा को लोकसभा चुनाव से पहले राज्यसभा भेजकर पार्टी की ओर से बड़ी रणनीति तैयार की जा रही है। इस सीट पर चुनाव आयोग की ओर से 15 सितंबर को उप चुनाव कराने का ऐलान किया गया है। चुनाव आयोग की ओर से जारी अधिसूचना के तहत 5 सितंबर तक इस सीट के नामांकन दाखिल किए जा सकेंगे। 6 सितंबर को नामांकन की जांच होगी। 8 सितंबर तक नाम वापस लिए जाएंगे। 15 सितंबर को सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक वोट डाले जाएंगे। शाम 5 बजे वोटों की गिनती के बाद परिणाम जारी कर दिया जाएगा।

डॉ. दिनेश शर्मा को यूपी के ब्राह्मण वोट बैंक के बीच अच्छी पैठ के लिए जाना जाता है। अपने सरल स्वभाव के लिए वे जाने जाते हैं। उनके मिजाज को कार्यकर्ता खासा पसंद करते हैं। वे योगी सरकार के 2017 से 2022 तक के कार्यकाल में उप मुख्यमंत्री की भूमिका में थे। यूपी चुनाव 2022 के बाद से वे संगठन के कार्य में लगे हुए थे। 12 जनवरी 1964 को डॉ. शर्मा का लखनऊ में जन्म हुआ था। वे लगातार दो बार लखनऊ के मेयर रह चुके हैं। साथ ही, वे लखनऊ यूनिवर्सिटी में कॉमर्स के प्रोफेसर भी हैं। दिनेश शर्मा के पिता भी आरएसएस से जुड़े हुए थे।

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