Categories
आज का चिंतन

*महर्षि दयानंद जी की मूर्तियां या स्टेच्यू*

स्वामी दयानंद सरस्वती शरीरधारी थे, उनके जीवनकाल में लिए गए उनके कुछ फोटो भी उपलब्ध हैं; इसलिए उनके चित्र, मूर्ति, स्टेच्यू आदि का निर्माण करना संभव है. उन्होंने मुम्बई में आदेश दिया था कि – मेरी तस्वीर को आर्यसमाज में मत लगाना. उन्होंने ऐसा आदेश संभवत: इसलिए दिया होगा कि एक तो वे व्यक्तिपूजा – मूर्तिपूजा के विरुद्ध थे, अपनी पूजा कराना नहीं चाहते थे, और उन्होंने विचार किया होगा कि कहीं कोई भावुक अविवेकी अनुयायी या सदस्य मेरे चित्र की भी पूजा न करने लगे. वे मूर्तिपूजा के विरोधी थे, परन्तु मूर्तिभंजक भी नहीं थे. उन्होंने स्वयं लिखा है कि – “यदि किसी का फोटो – ठीक-ठीक प्रतिकृति उतारकर स्मरण करने और देखने के लिए सामने राखी जाए, तो ठीक है.” हम आर्य समाज तथा अन्य स्थान पर स्वामी दयानंद, स्वामी श्रद्धानंद आदि के जो चित्र लगाते हैं, या पुस्तक आदि के टाइटल पर छापते हैं, इसके पीछे यही एकमात्र प्रयोजन होता है, और इसमें कोई सैद्धांतिक दोष भी नहीं है. हां, यदि कोई व्यक्ति इन चित्रों को सजीव या चेतन मानकर या अपने पौराणिक कुसंस्कारों से अभिभूत होकर पूजने लगे, ‘नमस्ते’ करने लगे, तो इसे सिद्धान्त विरुद्ध आचरण ही माना जाएगा. ऐसे अविवेकपूर्ण व्यवहार से व्यक्तिपूजा, जडपूजा जैसे अंधविश्वासों को ही प्रश्रय मिलेगा. ऐसे में हमें स्वयं आगे चलकर स्वामी दयानंद की मूर्तियों की स्थापना करने से बचने जैसा लगता है. यह बात ठीक है कि उनकी मूर्ति, स्टेच्यू आदि बन सकते हैं, बनाने में कोई सिद्धान्त दोष भी नहीं है, उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर लगाया जा सकता है; परन्तु हम लोग़ जानबूझकर नए खतरों को आमंत्रित न करें तो अच्छा है. जब ये मूर्ति, स्टेच्यू आदि लगाए जाएंगे तो मूर्तिपूजा के पक्षधर और आर्यसमाज के आलोचक ऐसा भी कहेंगे कि – देखों, मूर्तिपूजा का विरोध करनेवाला आर्यसमाज अब स्वयं मूर्तियाँ लगाने लगा है ! और कभी आर्यसमाज के कोई घोर विरोधी तत्त्व इन मूर्ति, स्टेच्यू आदि को खंडित भी कर सकते हैं, उनके साथ कुछ अनुचित व्यवहार भी कर सकते हैं, कुछ भावुक लोग उनकी पूजा अर्चना भी कर सकते हैं, गले में हार भी पहनाएंगे. इसलिए मूर्ति, स्टेच्यू आदि से बचने जैसा है. और यदि किसी को लगाना ही है, तो फिर उन्हें कौन रोक सकता है ? हमारे पास महर्षि कपिल, कणाद, याज्ञवल्क्य आदि के चित्र, मूर्तियाँ कहाँ हैं? फिर भी हम उनके प्रति, उनके सिद्धान्तों के प्रति श्रद्धाभाव रखते ही हैं. चित्र, मूर्ति, स्टेच्यू आदि का होना कोई अनिवार्य नहीं है. हमें अन्य लोगों की होड़ में – स्पर्धा में सम्मिलित होने जैसा नहीं है. स्वामी दयानंद की मूर्ति, स्टेच्यू आदि लगाने की जो बात पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी, पण्डित लेखराम, स्वामी नित्यानंद, स्वामी श्रद्धानंद, पण्डित गणपति शर्मा, स्वामी दर्शानानन्द, पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय, पण्डित चमूपति, महात्मा नारायण स्वामी, स्वामी वेदानंद तीर्थ, पण्डित युधिष्ठिर मीमांसक आदि जैसे आर्य समाज के प्रज्ञा पुरुषों तथा महर्षि दयानंद के प्रति उच्च सम्मान रखनेवालों में से किसी को न सूझी, ऐसी यह बात आज हमारे कुछ मित्रों को सूझी है ! धियो यो न: प्रचोदयात्.
– भावेश मेरजा

Comment:Cancel reply

Exit mobile version