हालत नाजुक है। देश विनाश और विघटन की ओर जा रहा है। हम केवल तमाशबीन बनकर नजारा देख रहे हैं। हमारा पहला आह्वान संत समाज से है। वह अपने दायित्वों को समझें और मठों की सीमा से बाहर आकर राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की सिंह गर्जना करें।
संत एक सम्मानित संज्ञा है। धर्म का स्तंभ संत समाज होता है। वह ही धर्मविमुख समाज को अच्छे उच्च आदर्शों और पवित्र जीवन से धर्मसापेक्ष बनाता है। जब हमारा संत समाज वातानुकूलित आश्रमों में रहकर अपने शिष्यों की संख्या बढ़ाने का गणित लगाता रहेगा और यह प्रयास करेगा कि लोग उसे ही देवपुरूष मानें तो जेसे समाज में वास्तविक धर्म नही पहुंचेगा। हिंदुत्व के मूल सिद्घांतों का प्रचार करने की भावना संतों और मठाधीशों में दिखाई नही देती। भारत में अस्सी लाख साधु संत हैं। प्रत्येक गांव के हिस्से में आठ साधु आते हैं। यदि ये साधु ही समाज के उत्थान का दायित्व वहन करने का संकल्प ले लें तो देश का मानचित्र ही बदल जाएगा। मठों से गांव और वनवासी क्षेत्रों की ओर चलो का संकल्प लेना होगा। ईसाई मिशनरियों के पास पूर्णकालीन धर्मप्रचारक केवल दस हजार हैं। कहां अस्सी लाख कहां दस हजार लेकिन हम ईसाई धर्मांतरण को नही रोक पा रहने हैं। हमारे साधु संत आश्रमों और मठों में रहकर अपने चेलों से चरण वंदना कराने के आनंद में ही मस्त हैं। किस धर्म का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं ये साधु? मैंने भी भगवा वस्त्र धारण किया है लेकिन मैं आश्रम में रहने के बजाए आम हिंदू के पास जाना चाहता हूं जिससे उसके अंत:करण में दमित हिंदुत्व के भाव को जाग्रत किया जा सके। जब मैं अकेला इस कार्य में समर्थ हो रहा हूं तो अन्य क्यों नही हो रहे हैं। मेरा प्रत्येक धर्माचार्य, सन्यासी, संत और साधु से यही कहना है कि हिंदू समाज की रक्षा के लिए वे आगे आयें। उन्हें धार्मिक ज्ञान दें, जातिवाद का विनाश करें और ईसाई कुचक्रों से हिंदुत्व की रक्षा करें। इस समय भारत माता संत समाज से बलिदान मांग रही है उठो और चल पड़ो प्रत्येक हिंदू परिवार के घर पर। वंचित समाज को हिंदुत्व के सर्वजन हिताय और वैदिक ज्ञान का सूत्र दो, उन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रण लीजिये। प्रत्येक गांव हिंदुत्व की संस्कारशालायें बन जाए, मंदिर समग्र हिंदुत्व का विचार केन्द्र बन जाएं। ऐसी प्रेरणा लेकर, संत समाज आगे आये। यही ईश्वर की सबसे बड़ी उपासना होगी।
समाज विस्मृति का शिकार है। हिंदू समाज हीनभावना से ग्रस्त होना जा रहा है। वह अपने अतीत को जानने के बजाए, हिंदू विरोधी शक्तियों को अपनी प्रेरणा मान रहा है। वह धर्मनिरपेक्षता की मदिरा में इतना अलमस्त हो चुका है कि वह हिंदुत्व और राष्ट्रीयता की ही हत्या करने पर आतुर है। विश्व का यह ही सर्वाधिक दुर्भाग्यशाली समाज है जो केवल अपने दोषों को देखता है, वह दूसरेां के हथियारों से अपना गला रेत रहा है। एक फ्रांसीसी पत्रकार ने भारतीय समाज पर टिप्पणी की थी कि भारत का हिन्दू पर हिंदू समाज का सबसे बड़ा शत्रु है। चुनाव होते हेँ, हम उन्हें वोट दे देते हैं जो भारत माता को डायन कहते हैं जो आतंकवादियों को बचाने का प्रयास करते हैं, जो लोग अफजल गुरू को बचाने के लिए मानवता का गला दबाते हैं, वे चुनाव जीत जाते हैं। दोष किसका है? वोट उन्हें हिंदू ही देते हैं, चाहे स्वर्ण के नाम पर या अवर्ण के नाम पर। अपनी आत्महत्या का सामान स्वयं तैयारकरने वाला समाज इतिहास के पन्नों में कुलघाती और मूर्ख समाज लिखा जाता है।
चाहे अंतुले हों या अमर सिंह उन्हें भय क्यों नही कि 73 प्रतिशत हिंदू समाज आक्रोषित हो गया तो क्या होगा? वे हिंदू विरोधी रूख से ही राजनीति कर रहे हैं। दोष राजनेताओं को देने से पहले हम अपने गिरेबान में देखें कि भारत माता की प्रतिष्ठा के लिए हमने क्या किया? राष्ट्रघातियों, जयचंदों की चांदी है, संत समाज मठों में कैद है, हिंदू बिखरा और उदासीन है। फिर कैसे हो राष्ट्र की रक्षा? कौन करेगा आपकी भावी संतानों की रक्षा कौन करेगा आपके धर्म की रक्षा? विचार करें, आत्ममंथन करें और अपने सोचने और जीने के तरीके को बदलें। यदि आपके अंत:करण में वेदना है तो आप हिंदू महासभा से जुड़ें और राष्ट्रधर्म तथा मातृभूमि की रक्षा का महती दायित्व का निर्वहन करें। हिंदू महासभा एक क्रांति का नाम है। वह हिंदुत्व पर प्रखर आस्थावान है। महामना मालवीय, स्वामी श्रद्घानंद और वीर सावरकर के विचारों और प्रयासों से पोषित हिन्दू महासभा ही राष्ट्रधर्म की रक्षक हो सकती है।
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