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प्रकृति से असीम लगाव था गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर का

अनन्या मिश्रा

आज ही के दिन यानी की 7 अगस्त को गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। टैगोर लेखक, नाटककार , संगीतकार, कवि, दार्शनिक, चित्रकार और समाज सुधारक थे।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर एक प्राकृतिक व्यक्ति थे। क्योंकि उनको प्रकृति के बीच रहना अच्छा लगता था। इस बात की गवाही गुरुदेव की कृतियों से भी मिलती है। टैगोर की कहानियां हों या कविता या फिर पेंटिंग उनका प्रकृति के साथ लगाव कहीं न कहीं जरूर झलकता था। लेकिन उन्हें अपने जीवन के आखिरी दिनों में असहज स्थितियों का सामना करना पड़ा था। क्योंकि मृत्यु के तीन साल पहले से उनकी तबियत खराब रहने लगी थी। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 7 अगस्त को गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था। आइए जानते हैं उनकी डेथ एनिवर्सरी के मौके पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…

गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर लेखक, नाटककार, संगीतकार, कवि, दार्शनिक, चित्रकार और समाज सुधारक थे। टैगोर का जन्म कोलकाता की जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में 7 मई 1861 को हुआ था। बचपन में ही टैगोर के सिर से मां का साया उठ गया था। वहीं उनके पिता अक्सर यात्रा करते थे। ऐसे में टैगोर का लालन-पालन नौकरों द्वारा किया गया था। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शुरूआती शिक्षा सेंट जेवियर से प्राप्त की थी। जिसके बाद वह बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गए थे। लेकिन बाद में वह डिग्री लिए बिना ही भारत लौट आए।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बंगाल के साथ ही भारतीय संस्कृति, संगीत और कला को नई ऊंचाइयां प्रदान करने का काम किया था। उन्होंने अपनी पहली कविता 8 साल की उम्र में लिखी थी। वह 16 साल की उम्र में टैगोर की कविता का संकलन भी प्रकाशित हो गया था। इसके बाद छोटी कहानियों के साथ टैगोर की साहित्यिक यात्रा आगे बढ़ चली। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपने जीवन में कई नाटक, उपन्यास, लघु कथाएं, यात्रावृन्त और हजारों गाने लिखे।
गुरुदेव की अनेक रचनाओं ने बांग्ला साहित्य को नई ऊंचाइयां प्रदान की। इनमें गोरा, घरे बाइरे और गीतांजली आदि काफी ज्यादा फेमस रहीं। लेकिन अपनी पद्य कविताओं के लिए पहचाने जाने वाले टैगोर ने भाषाविज्ञान, इतिहास और आध्यात्मिकता से संबंधित किताबें लिखीं। टैगोर की रचनाओं ने यूरोप में भी ख्याति अर्जित की। जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह यह पुरस्कार पाने वाले पहले गैर-यूरोपियन थे।
बता दें कि साहित्य लेखन के अलावा टैगोर ने 2230 गीतों को संगीतबद्ध किया है। इसमें उनके द्वारा लिखा गया भारत और बाग्लादेश का राष्ट्रगान भी शामिल है। टैगोर के संगीत को रबींद्र संगीत भी कहा जाता है। इसके अलावा उनकी धर्म, आध्यात्म, विज्ञान और शिक्षा में भी गहरी रुचि थी। परंपरागत शिक्षा से टैगोर की शांतिनिकेतन की शिक्षापद्धति काफी ज्यादा अलग मानी जाती है। वहीं जीवन के उत्तरार्द्ध में चित्रकारी में उनकी रुचि गहरी होती चली गई।
साल 1937 में 76 साल की उम्र में उनकी तबियत ज्यादा बिगड़ने लगी। एक बार वह दो दिन के लिए अचेत हो गए थे। उसी दौरान पता चला कि उनकी किडनी और प्रोस्टेट में समस्या है। इसके अलावा उन्हें सिर दर्द, बुखार, सीने में दर्द और भूख न लगना जैसी समस्याओं ने घेर लिया का। हालांकि यह बीमारियां रवीन्द्रनाथ टैगोर के लिए मायने नहीं रखती थीं, वह ठीक होने पर फौरन काम करने लग जाते थे।

उनका मानना था कि यदि वह प्रकृति के पास अपना ज्यादा से ज्यादा समय बिताएंगे तो अच्छा महसूस करेंगे। जिसके बाद वह साल 1940 में किलामपोंग में अपने बहु प्रतिमा देवी के पास चले गए। लेकिन वहां पर तबियत ज्यादा खराब होने के कारण वह फिर वापस शांतिनिकेतन वापस आ गए। इस दौरान डॉक्टरों ने उन्हें सर्जरी करवाने की सलाह दी। लेकिन अचानक से उनकी तबियत इस कदर खराब हुई कि उनकी पेशाब बंद हो गई। तब उनको यूरेमिया और अन्य समस्याओं से पीड़ित पाया गया। लेकिन वास्तव में वह प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित थे।
इसके बाद डॉ बंधोपाध्याय की देखरेख में गुरुदेव का ऑपरेशन किया गया। लेकिन उसके बाद भी गुरुदेव की हालत बिगड़ती चली गई। वहीं 4 अगस्त को टैगोर की किडनी जवाब गई। 6 अगस्त को रबींद्रनाथ टैगोर की तबियत ज्यादा खराब हो गई। वहीं 7 अगस्त 1941 को रबींद्रनाथ टैगोर ने हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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