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आज का चिंतन

*श्री कृष्ण १६ कलाओ से युक्त –विशेष अध्ययन*

डॉ डी के गर्ग
भाग-2

हमारे बहुत से बंधू कृष्ण महाराज को पूर्ण अवतारी पुरुष कहते हैं। यहाँ हम अवतार का अर्थ संक्षेप में बताना चाहेंगे, “अवतार का शाब्दिक अर्थ “जो ऊपर से नीचे आया” और “पूर्ण पुरूष”है। पूर्ण कहते हैं जो अधूरा न रहा और पुरुष शब्द के दो अर्थ हैं :
1. पुरुष शब्द का अर्थ यानि एक सामान्य जीव जिसे आत्मा से सम्बोधन करते हैं।
2. पुरुष शब्द का प्रयोग परमात्मा के लिए भी किया जाता है जिसने इस सम्पूर्ण ब्राह्मण की रचना, धारण और प्रलय आदि का पुरषार्थ किया और करता है।
(पृपालनपूरणयोः) इस धातु से ‘पुरुष’ शब्द सिद्ध हुआ है ‘यः स्वव्याप्त्या चराऽचरं जगत् पृणाति पूरयति वा स पुरुषः’ जो सब जगत् में पूर्ण हो रहा है, जो सब को शिक्षा देनेहारा, सूक्ष्म से सूक्ष्म, स्वप्रकाशस्वरूप, समाधिस्थ बुद्धि से जानने योग्य है, उसको परम पुरुष जानना चाहिए।।इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘पुरुष’ है।

श्री कृष्ण और १६ कलाये?

कृष्ण को योगिराज कृष्ण के नाम से भी जाना जाता है क्योकि कृष्ण महाराज ने योग और ध्यान माध्यम से मुख्यतः १६ गुणों (कलाओ) को प्राप्त किया था इस कारण उन्हें १६ कला पूर्ण अवतारी पुरुष कहते हैं।
अब आप सोचेंगे ये १६ कलाएं कौन सी हैं, तो आपको बताते हैं, देखिये : इच्छा, प्राण, श्रद्धा, पृथ्वी, जल अग्नि, वायु, आकाश, दशो इन्द्रिय, मन, अन्न, वीर्य, तप, मन्त्र, लोक और नाम इन सोलह के स्वामी को प्रजापति कहते हैं। ये प्रश्नोपनिषद में प्रतिपादित है। (शत० 4.4.5.6)
योगेश्वर कृष्ण ने योग और विद्या के माध्यम से इन १६ कलाओ को अपने उत्तम कर्मो और योग माध्यम से आत्मसात कर धर्म और देश की रक्षा की, जिसके कारण वे इस आर्यवर्त देश के निवासियों के लिए महापुरुष बन गए।इसका परिणाम ये भी हुआ की अत्यंत श्रद्धावश उन्हें पूर्ण अवतारी पुरुष की संज्ञा अनेको विद्वानो ,कवियों आदि ने दे दी, लेकिन कालांतर में पोराणिको ने इन्हे वास्तविक ईश्वर और उसके अवतार की भी संज्ञा दे डाली। जो अतिशयोक्ति है ।

श्री कृष्ण ईश्वर के अवतार?

जैसा की विस्तार से बताया गया है कि कृष्ण को 16 कलाओं में महारत थी इसलिए श्रद्धावश अतिशयोक्ति में उनको अवतार तक कह दिया लेकिन इस विषय में मुख्य तीन दोष आते है:
पहला कि ईश्वर इतना कमजोर नहीं की किसी को मारने के लिए उसको जन्म लेना पड़े ,दूसरे ईश्वर फिर एक स्थान पर आ गया जबकि वह कण कण में और सौरमंडल से भी परे ,सूर्य ,चंद्र आदि में भीं व्याप्त है,तीसरे ये माने की स्त्री पुरूष के संभोग से ईश्वर पैदा होने लगे और नौ माह ईश्वर गर्भ में भी रहा?

अवतारवाद और इस अतिशयोक्ति का दुष्परिणाम ये देखने को मिला कि इस्कॉन जैसी संस्था के सदस्य हर समय उठते -बैठते , सड़कों पर नाचते गाते “ हरे कृष्णा हरे कृष्णा ” बोलते ,जपते नहीं थकते।

महाभारत काल से पूर्व और उसके बाद भी अनेको मनुष्य उत्पन्न हुए मगर इतिहास में याद केवल कुछ ही लोगो को किया जाता है,कुछ लोग अपने द्वारा की गयी बुराई से और कुछ अपने सदगुणो, सुलक्षणों और महान कर्तव्यों से अपना नाम अमर कर जाते हैं। इस आलोक में आज कृष्ण जैसा सुलक्षण नाम अपने पुत्र का तो कोई भी रखना चाहेगा
, योगेश्वर कृष्ण अमर हैं, राम अमर हैं, हनुमान अमर हैं, मगर रावण, कंस आदि मृत हैं।
आइये हम भी इन गुणों को अपना कर अपने जीवन को आप कृष्णमय बनाये , जैसे रोटी- रोटी ,मिठाई- मिठाई कहने से कुछ नहीं हो सकता , वैसे ही सिर्फ कृष्ण कृष्ण कहने से भी आप कृष्णमय नहीं हो सकते .कृष्ण भक्त होने के लिए कृष्ण के गुणों को अपनाना पड़ेगा,आप भी १६ कलाओं से युक्त पुरुष महामानव बनने की छमता रखते है। यही कृष्ण की सच्ची भक्ति होगी।

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