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कृषि जगत

*पत्ते -पत्ते की हरित अभियंत्रिकी*।☘️

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लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

पृथ्वी पर जीवन की श्रंखला में सर्वप्रथम पेड़ पौधों का आविर्भाव हुआ….. जलचर नभचर थलचर जीव धारियों के नथुनो से पहले ईश्वर ने पेड़ों के नथूनो में प्राण शक्ति को फूंका…. हमारे पास केवल दो ही नथुने हैं जिनसे हम स्वास लेते हैं,छोड़ते है , जिनसे हम प्राणवायु ऑक्सीजन लेते हैं, गंधहीन रंगहीन विषैली वायु कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं जिसकी वर्तमान में औसत वातावरण में उपस्थिति 400 पीपीएम है। पेड़ जो हम अपने नथूनो से छोड़ते हैं वह उसको लेते हैं और जो हम लेते हैं वह यह छोड़ते हैं।

आखिर पेड़ कैसे स्वांस लेते हैं?

क्या इनके पास भी दो ही नथूने हैं ? इसी अनोखी व्यवस्था को समझते हैं । कोई भी आम बरगद पीपल का पेड़ हो या कमल जैसा जलीय पौधा या कोई घास या मक्का ज्वार बाजरा गेहूं जैसा खाद्यान्न प्रत्येक पादप ओषधि वनस्पति लता पेड़ की पत्ती पत्ती सांस लेती है । बरगद पेड़ की एक पत्ती में 2 से लेकर 5 लाख तक विशेष छिद्र होते हैं जिन्हें रध्र कहते हैं। नंगी आंखों से इन रध्र को हम देख नहीं सकते 5 माइक्रोमीटर से लेकर 50 माइक्रोमीटर तक के यह आकार में होते हैं। कैलकुलेशन से हम समझ सकते हैं बरगद के एक पेड़ में ही करोड़ों अरबों रध्र होते हैं उसकी समस्त पत्तियों में।

सूर्य उदय होते ही यह नथुने रंध्र जो पत्तियों में अलग-अलग वनस्पति अनुसार पत्ती के ऊपर या नीचे या दोनों तरफ उपस्थित होते हैं खुलने लगते हैं एक साथ दूषित वायु और सूर्य की ऊर्जा के भक्षण के लिए। सूर्य के प्रकाश की ब्लू लाइट इन्हें विशेष रास आती है। एक रंध्र में ही दूषित वायु कार्बन डाई ऑक्साइड के हजारों अणु प्रवेश कर जाते हैं। पेड़ों की अद्भुत हरित इंजीनियरिंग जहरीली co2 को अपने भोजन के लिए शुगर में बदलते हुए प्राणवायु ऑक्सीजन बनाते हुए उन्हें इन्हीं रंध्रो से मुक्त कर देते हैं बिना भेदभाव सभी जीव धारियों के लिए। प्रत्येक रंध्र दो गार्ड कोशिकाओं से घिरा रहता है यह गार्ड कोशिका ही लाखो रंध्रो को कब कैसे किस परिस्थिति में खोलना है उस को नियंत्रित करती है द्वारपाल की तरह की यह कोशिका कार्य करती है क्योंकि जब यह रंध्र खुलते हैं तो कोई भी जहरीला अन्य विजातीय तत्व बैक्टीरिया घुस सकता है जो अवसर की ताक में रहता है या अन्य कोई जहरीली गैस भी घुस सकती है । साथ ही इनके खुलने से पेड़ों का पानी भी वाष्प बनकर तेजी से वातावरण में जाता है जिससे पेड़ में पानी की कमी हो जाती है ऐसे में गार्ड सेल तय करते हैं कि जब भयंकर सूखे का मौसम हो यह जहरीला रसायन वातावरण में घुला हो जो पेड़ के फिल्ट्रेशन क्षमता से बाहर है तो वह इन रध्रो को बंद कर देते हैं। जिससे पेड़ को क्षति ना हो। शाम होते होते यह रंध्र बंद हो जाते हैं बंद होने की है प्रक्रिया दोपहर बाद से ही चलने लगती है। ग्रामीण लोक आंचल में यही कारण रहा है यह कहने का की शाम होते ही पेड़ सो जाते हैं सोते पेड़ को जगाना पाप माना जाता है। पेड़ के लाखों करोड़ों रंध्रो के एक क्रम से बंद होने खुलने में बहुत बेजोड़ केमिकल व मैकेनिकल इंजीनियरिंग काम करती है। एक दर्जन से अधिक पेड़ों की जड़ तने में पाए जाने वाले एबसिसिस एसिड जैसे एंजाइम इस प्रक्रिया को नियंत्रित निर्देशित करते हैं ।पोटेशियम जैसे तत्व भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुदरत में चमत्कार जैसे वाहियात शब्द के लिए कोई स्थान नहीं है ।यहां प्रत्येक वस्तु कार्य कारण जैसे आधारभूत नियम से कार्य कर रही है। यह नियम एक नास्तिक को आस्तिक एक स्वार्थी को परमार्थी बनाने के लिए ठोस प्रेरक शक्ति रखते हैं। प्रत्येक तार्किक सत्याग्रही जिज्ञासु मस्तिष्क व्यक्ति प्रमाणों से परीक्षा कर पत्ते पत्ते में ईश्वर का साक्षात्कार कर सकता है….।

बरगद जैसा विशाल पेड़ से तुलना न करे तो टमाटर का एक पौधा भी अपने जीवन काल में सैकड़ों ना सही तो कुछ किलो प्राणवायु ऑक्सीजन बना ही देता है और हम 1 ग्राम आक्सीजन भी नहीं बना सकते।

हमारे अंदर वनस्पति जगत से लेकर समुचे जीव जगत और मूल में परमात्मा के प्रति अत्यंत कृतज्ञता का भाव रहना चाहिए यदि यह भाव हमारे अंदर नहीं तो हम कृत्घन है और इससे बड़ा अपराध हमारी वैदिक संस्कृति में कोई नहीं माना गया है।

इस वर्षा ऋतु व्यक्तिगत तौर पर कोई एक पेड़ पौधा जरूर लगाएं बिना अधिक प्रचारित प्रसारित किए हो सकें तो। पेड़ों के लिए यह मौसम उत्तम रहता है पेड़ों के रध्र अन्य मौसम की अपेक्षा इस मौसम में औसत से अधिक खुलते हैं क्योंकि मौसम में पर्याप्त नमी रहती है जल हानि का उन्हें कोई खतरा नहीं रहता । पेड़ों के लिए कोई पर्यावरण तनाव भी नहीं रहता ,पेड़ों के लिए यह ऋतु उत्सव की ऋतु होती है।

नीचे संलग्न फोटो टमाटर के पौधे की पत्ती का है जो इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से लिए गया है ।दीर्घगोलाकार संरचना पत्ती में स्थित रंध्र है।

आर्य सागर खारी ✍

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