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विशेष संपादकीय

यदि हजार केजरीवाल पैदा हुए तो…

देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद यानि उस सीट पर बैठने वाला शख्स जिस पर देश के संविधान के बनाने में और कानून के शासन की स्थापना कराने में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर कभी बैठा करते थे। बाबा साहेब ने सपने में भी नही सोचा होगा कि कभी इस सीट पर ऐसा व्यक्ति भी बैठेगा जो ‘बैलट की नही बल्कि बुलेट’ की भाषा बोलेगा। सचमुच सलमान खुर्शीद द्वारा केजरीवाल को फर्रूखाबाद जाने पर न लौटकर आने देने की बात कहकर कानून मंत्री ने तानाशाहों की अलोकतांत्रिक भाषा का ही प्रयोग किया है। लोकतंत्र में ऐसी शब्दाबली का प्रयोग निंदनीय ही नही अपितु वर्जित भी है। सलमान खुर्शीद का कहना है कि अब वह कलम से काम न करके लहू से काम करेंगे। खुर्शीद की इस बात का क्या अर्थ है इसे तो वही जानें लेकिन लहू और लोकतंत्र में 36 का आंकड़ा है, यह तो सभी मानते हैं। ये बात अलग है कि भारत में लहू को लोकतंत्र के लिए कुछ लोगों ने अनिवार्य बनाकर रख दिया है। उन्हीं में से सलमान साहब भी एक हैं। कलम लोकतंत्र में समस्याओं के समाधान देती है और लोकतंत्र को सर्वस्वीकृत लोक कल्याणकारी शासन बनाती है, जबकि लहू लोकतंत्र के मुंह को भयावह बनाता है और समस्याओं के समाधान न देकर उन्हें और उलझाता है, इसलिए लोकतंत्र में लहू को कभी भी स्थान नही दिया गया। सलमान साहब चोर नही हैं इसके लिए वह कानून का सहारा लें और स्वयं को पाक साफ साबित करें तो बात समझी जा सकती है। लेकिन वह कुछ अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर करने की बात स्वीकार कर चुके हैं। सलमान खुर्शीद कानून में स्वयं को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं। देश का कानून और देश की जनता न्याय के साथ है। केजरीवाल की जय जयकर अभी नही हुई है। अभी उनके साथ एक शोर जुड़ रहा है। जिस पर वह हर बार चौका मार रहे हैं, लेकिन अंतिम परिणीति क्या होगी? यह देखा जाना अभी शेष है। न्याय यदि केजरीवाल का पक्ष लेता है, यानि उनके आरोप हर व्यक्ति पर सही साबित होते जाते हैं तो तभी उनकी जय जयकार होगी। लेकिन सलमान साहब ने केजरीवाल की जय जयकार होने से पूर्व ही जिस बौखलाहट का परिचय दिया है उससे केजरीवाल का उत्साह बढ़ा है और लोगों में उनका विश्वास और वजन बढ़ा है। इसलिए उन्होंने भी जोश में कह दिया है कि एक अरविंद की जगह सौ अरबिंद पैदा होंगे। क्या सलमान साहब उन सौ या हजारों केजरीवालों को भी यही धमकी देंगे? आज एक प्रश्न यही है और इसी प्रश्न का उत्तर हर व्यक्ति मांग रहा है।
केजरीवाल ने यूपीए की चेयरपरसन सोनिया गांधी को खुली बहस की चुनौती देकर उन्हें भी अपने शिकंजे में ले लिया है। इससे गेंद अब कांग्रेस के पाले में है, तथ्य तो तथ्य होते हैं। उन्हें नकारने के लिए सोनिया गांधी को केजरीवाल की चुनौती को स्वीकार करना चाहिए, वैसे भी इस समय कांग्रेस भ्रष्टाचार के आरोपों में जिस तरह से फंसी हुई है उसके दृष्टिगत केजरीवाल को झूठा साबित करना कांग्रेस के लिए बहुत आवश्यक है। केजरीवाल यदि झूठे साबित होते हैं तो इससे राजनीति में उन जैसे लोगों की धमाकेदार शुरूआत का खात्मा करने में सहायता मिलेगी और कांग्रेस को जनमानस में अपने आपको स्थापित करने का एक अवसर मिलेगा। बीजेपी इस समय चुप है इसलिए केजरीवाल की चुनौती को स्वीकार कर सोनिया गांधी कांग्रेस का उद्घार करें, तो ही अच्छा है।


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