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सर्वखाप पंचायत की बलिदान – गाथा

सर्वखाप पंचायत की बलिदान – गाथा
लेखक :- श्री पंडित जगदेव सिंह सिद्धांति
इतिहास संरक्षक :- चौधरी कबूल सिंह शोरों (मुज्जफरनगर)
प्रस्तुति :- अमित सिवाहा
वर्तमान सृष्टि के आरम्भ काल में ही आर्यावर्त में मानव जाति ने वास कर लिया था। समयानुसार आर्यावर्त भारत नाम से विख्यात हुआ। इस प्रकार भारतीय राष्ट्र का इतिहास अति प्राचीन है। गत करोड़ वर्षों के समय में न जाने कितने उलट फेर हमारे देश में हुए हैं। अनेक बार राज्य क्रांतियां हुई इतने पुराने राष्ट्र का संपूर्ण और कर्ण वध इतिहास मिलना संभव नहीं अत्यंत प्रसिद्ध गाथाओं का वर्णन ही मिल सकता है जो कि रामायण महाभारत ब्राह्मण ग्रंथों और गणित पाठ आदि में खोजा जा सकता है काल क्रम में विदेशी आक्रांता भारत में आए। अरब और अंग्रेज आदि भी आए। भारतीयों का इन विदेशियों से घोर संघर्ष रहता रहा। इस संघर्ष में अनेक वीरों और वीरांगनाओं ने राष्ट्र और धर्म के लिए अपने प्राणों की बलि चढ़ाई है। वीरों के बलिदान गाथाओं से इतिहास के पृष्ठ भरे पड़े हैं। मुसलमानी शासनकाल में धर्म रक्षार्थ आर्य जाति के महा योद्धा वीरों ने अद्भुत बलिदान दिए हैं। अंग्रेजी शासनकाल में राष्ट्र की पराधीनता की वीडियो को काटने और स्वतंत्रता प्राप्ति के निमित्त सहस्त्रों वीरों ने प्राणों की आहुति देकर भारतीय राष्ट्र का गौरव बढ़ाया है।
इन बलिदान गाथाओं का कुछ इतिहास लिखित और अप्रकाशित रूप में उपलब्ध होता है, जिसके कारण भारतीय राष्ट्र का माथा संसार में ऊंचा है। परंतु कुछ बलिदान गाथाओं का इतिहास प्रकाशित रूप में हमारे सामने नहीं वह हस्तलिखित रूप में प्रकाशित पड़ा है। इसी अप्रकाशित इतिहास में से 12 बलिदान घटनाओं का वर्णन सुधारक के इस “बलिदान विशेषांक” में दिया जाता है। भारतीय राष्ट्र में गणतंत्र शासन प्रणाली सदा प्रचलित रही है और भारत में तो गुणों का आश्वासन सदा से ही चलता आया है “गण” एक पर्यायवाची शब्द है “खाप” ।
हरियाणा में “खाप” शब्द का प्रथम बहुत समय से चला आ रहा है दिल्ली के चारों ओर कई सहस्त्र वर्ग मील का क्षेत्र हरियाणा कहलाया है। यहां सदा गणतंत्र शासन रहा है अनेक गुणों के संघ को ही “सर्वखाप” कहा जाता है। इस क्षेत्र में गणतंत्र शासन का मूल पंचायत प्रणाली रही है। पंचायते सामाजिक और धार्मिक आधार पर शासन पद्धति को चलाती रही हैं। इसी गण संघ के शासन तन्त्र को सर्वखाप पंचायत प्रणाली नाम से पुकारा जाता है। इस प्रणाली में राजाओं का नहीं किन्तु जनता का मान मुख्य होता है। वर्तमान समय में हर्षवर्धन के काल से लेकर विक्रमी के संवत् १९१४ का जन तंत्री इतिहास सर्व खाप पंचायत के हस्तलिखित वर्णनों में अप्रकाशित पड़ा है इस हस्तलिखित का बहुमूल्य भाग बिखरे पृष्ठों में ग्राम “शोरों जिला मुजफ्फरनगर” निवासी एक किसान स्वनामधन्य “चौधरी कबूल सिंह” जी के घर में सुरक्षित है।”चौधरी कबूल सिंह” जी के पूर्वजों ने सिर कटवा कर भी इस इतिहास की रक्षा की है। हमने इन ऐतिहासिक मोतियों को देखा और पढ़ा है। दिल्ली से 9 वर्ष तक प्रकाशित होते रहे साप्ताहिक “”सम्राट”” में उक्त चौधरी साहब कुछ अमर गाथाओं को प्रकाशित करवाते रहे हैं। उन्हीं गाथाओं में से कुछ अंश वर्तमान लेख में दिया जाता है।
1— विक्रमी संवत् १३०६ की घटना है। दिल्ली के फिरोजशाह बादशाह ने जब सांप्रदायिक आधार पर जनता के धार्मिक कार्यों पर प्रतिबंध लगाया। और प्रतिबंध को मनवाने के लिए अत्याचार किए। तब सर्व खाप पंचायत ने इन शाही अत्याचारों को दूर करवाने के लिए एक बलिदान दल बनाया और हरियाणा के स्वयं सेवक योद्धा वीरों की सेना ने 220 वीरों को छांटकर बादशाह के दरबार में दिल्ली भेजा। सर्व खाप पंचायत में संप्रदाय और जाति बिरादरी के भेदभाव बिना सब लोग सम्मिलित थे। इन 220 वीरों में वर्तमान जातिभेद के आधार पर निम्नलिखित रुप में बलिदान दल में एकत्रित हुए थे। 61 जाट, 15 ब्राह्मण, 15 अहीर, 15 गुर्जर, 15 राजपूत, 10 वैश्य , 9 (वर्तमान) हरिजन, 8 बढ़ई, 6लोहार, 5 सैनी, 5 जुलाहे, 5 तेली, 4 कुम्हार, 4खटीक, 4 रोड, 3 रवे , 2 धोबी , 2 जोगी, दो गुसाई और दो कलाल।
इन वीरों ने सर्व खाप पंचायत के नेताओं से आशीर्वाद लिया और घर से चल पड़े। तत्कालिक संप्रदायिक विश्वास के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा को गढ़मुक्तेश्वर में गढ़ गंगा स्नान करके दिल्ली को प्रस्थान किया। इनके साथ 150 अन्य व्यक्ति भी चले जो कि दिल्ली के समाचार को पंचायत के नेताओं तक पहुंचाने पर नियुक्त किए गए थे। मार्ग में इस बलि दाता वीर दल को देखकर जनता में जोश और रोश बढ़ता जाता था। यह जत्था संख्या 1309 विक्रमी मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को “जन्म भूमि” की जय बोलता हुआ दिल्ली के शाही दरबार में पहुंच गया। वहां इन वीरों ने सबसे पूर्व बलि देने के लिए पांच अमर योद्धाओं को छांटा। महाबलिदाताओं के पवित्र नाम यह हैं – सदाराम ब्राह्मण, हरभजन जाट, रुड़ामल वैश्य, अंत राम गुर्जर,और बाबरा भंगी। यह पांच वीर दरबार के भीतर घुस गए। और 204 बाहर “जन्मभूमि” के जयकारे लगाने लगे । बादशाह ने इनके जयनाद को सुना और 5 वीरों वीरो को देख कर कहा — “क्यों शोर करते हो” ? वीर हरभजन ने आगे बढ़कर कहा — जजिया हटाया जावे, मंदिर और तीर्थों पर कर न लगाया जावे तथा धार्मिक कार्यों में कोई जुल्म न किया जावे। बादशाह के काजी मोईउद्दीन ने कहा –“तुम इस्लाम कबूल करो”
हरभजन ने उत्तर दिया — “धर्म का संबंध आत्मा से है इसमें दबाव नहीं किया जा सकता है “।
काजी ने कहा — क्या तुम धर्म प्राणों को कुर्बान कर दोगे ?? सब वीरों ने एक साथ उच्च स्वर से उत्तर दिया -“हां” “हमारे लिए धर्म प्राणों से प्यारा है” तुरंत अग्नि जलवा दी गई । और काजी ने कहा — “सबूत दो”।
पांचो वीरों ने धर्म का जयघोष किया और एक के पीछे दूसरा दूसरा अग्नि में कूदकर अपने अपने प्राणों की बलि धर्म रक्षार्थ चढ़ा दिया। काजी ने शेष वीरों को अग्नि में झोंक दिया।
उसी समय एक मुसलमान फकीर ने काजी की खुले शब्दों में निंदा की। और कहा बादशाहत का हुक्म देश पर चलता है। धर्म पर नहीं। धर्म का संबंध खुदा से है। यह अन्याय है। बादशाहत नष्ट हो जाएगी । इस पर मुल्लाओं ने शोर मचाया और फकीर को काफिर कहकर 110 वीरों के साथ ही जला दिया। इस फकीर का नाम “बूलाशाह” था। जौनपुर में रहने वाला यूसुफजई नामक फिरके का एक बहादुर पठान मन्नूखां इस जुल्म को बर्दाश्त न कर सका और उसने काजी का सिर काट कर फेंक दिया। और उसने भी पेट में छुरा झोंक बलिदान दे दिया। इसी प्रकार शैयद, लोधी, और मुगलों के समय में अनेक वीरों ने प्राणों का बलिदान दिया है।
2— सं० १४७४ विक्रमी विक्रमी की वैशाखी अमावस्या के दिन कोताना जिला मेरठ के पास सूर्योदय के समय 262 आर्य देवियां यमुना में स्नान कर रही थी। खिलजी वंश का एक सरदार कोताना का अधिकारी था।उसने कुछ सैनिकों को साथ लेकर उन वीरांगनाओं को जा घेरा। यह देवियां जाट राजपूत और ब्राह्मण घरानों की थी। वह जाफिर अली सरदार एक जाट लड़की को फसाना चाहता था। यह सब देवियों ने उन्हें आता देख शस्त्र संभाल लिए उन देवियों में से एक लड़की ने सरदार से कहा कि तुम एक बार हमारी बहन की बात सुन लो। वह विषयी कीड़ा सरदार घोड़े से उतरकर उनके पास पहुंचा और उस लड़की को बीवी बनने के लिए कहा।वीरांगना के कान में यह शब्द पढ़े भी नहीं थे कि क्षत्राणी वीरांगना ने नर पिशाच जाफिर अली का सिर काट कर फेंक दिया। सरदार के मरते ही वीर देवियों और नर पिशाचों में तलवारें चलने लगी। देखते-देखते 262 आर्य देवियां धर्म की बलिवेदी पर प्राणों की आहुति दी गई। किसी नर पिशाच का हाथ अपने पवित्र शरीर पर नहीं लगने दिया।
बादशाह को जब यह सूचना पहुंची तो बचे हुए सैनिकों को कठोर दंड दिया और सर्व खाप पंचायत से माफी मांगी।
3– सं० १७२७ वि० मैं औरंगजेब ने अपने भाइयों भतीजे और पिता को ठिकाने लगाकर इस्लाम के नाम पर तलवार उठाई कुरान के नाम पर नारा लगाया कट्टर म***** मौलवी और काजी उसके साथ हो गए जिन्होंने रामगढ़ के युद्ध में शाहजहां और दारा का साथ दिया था उन को नष्ट करने पर तुल गया जसवंत सिंह को अफगानिस्तान भेज दिया चंपत राय बुंदेला जो पहले औरंगजेब का साथी सा से दी गई जागीर छीन ली गई और था के राजा पहाड़ सिंह और सिख गुरु हर राय के पुत्रों को मृत्यु तक कारागार में रखा साहू के साथ वही अत्याचार किया गया इन अत्याचारों को कर को करके सर्व खाप पंचायत पर झपटा सर्व खाप पंचायत ने भी धारा का साथ दिया था रामगढ़ के युद्ध में सर्व खाप पंचायत के सैनिक औरंगजेब के विरुद्ध लड़े थे औरंगजेब ने ने धोखा देकर सर्व खाप पंचायत के कुछ नेताओं को दिल्ली बुलाया जब वह नेता दिल्ली पहुंचे तो कपट जाल से उनको पकड़वा लिया गया पंचायत के नेताओं के शुभ नामावली यह है —
राव हरीराय, धूम सिंह, फूल सिंह, शीशराम, हरदेव सिंह, रामलाल, बलीराम, मालचंद,हरिपाल, नवल सिंह गंगाराम, चंदू राम, हर सहाय, नेतराम, हरबंश, मनसुख मूलचंद, हरदेवा, राम नारायण, भोला और हरिद्वारी।
इनमें एक ब्राह्मण, एक त्यागी, एक गुर्जर, एक सैनी,एक रवा,एक रोड, 3 राजपूत और 11जाट थे। यह बड़े वीर योद्धा और अशिक्षित नेता थे क्योंकि इनको शुभ निमंत्रण के नाम पर बुलवाया था अतः इन की देवियां तथा कुछ व्यक्ति भी साथ देने पहुंचे थे उस समय राव हरीराय जो कि इन नेताओं का मुखिया था और औरंगजेब की निम्नलिखित बातें हुई–
औरंगजेब — तुम बागी हो तुमने द्रोह किया है ?
राव हरिराय — आपकी बात मिथ्या है। निमंत्रण देकर समझौते के लिए बुलाया और धोखा देकर हमें पकड़वा लिया अब हमें बागी कहते हो ?
औरंगजेब — तुमने दारा का साथ दिया था।
राव — हमने देश के बादशाह शाहजहां का साथ दिया था।
दारा उसके साथ था।
औरंगजेब — इस्लाम कबूल करो या मौत?
राव — इस्लाम में क्या खूबी है ?
औरंग — इस्लाम खुदा का दीन है।
राव — क्या खुदा भी गलती करता है जो अपने दीन में सब को पैदा नहीं करता और खुदा के दीन के खिलाफ लोगों में घर में संतान, संतान क्यों होती है। होती है तो हम निर्दोष हैं।
औरंग — खुदा कभी गलती नहीं करता।
राव — खुदा सच्चा है यह सही है तो तुम झूठे हो, दोनों में एक झूठा जरूर है। यह दीन खुदा का दीन नहीं है। यह तेरा दीन है।
औरंगजेब — मैं खुदा और पैगंबर के हुक्म को मानता हूं। दूसरों को नहीं। कुरान शरीफ खुदा की किताब है वह सत्य है और सब झूठे हैं।
राव – मैंने कुरान को पढ़ा है और कई बार मुतायला किया है कि उसमें यह कहीं नहीं कहा गया कि बाप को कैद करो। भाई भतीजे को मारो मराओं। झूठ बोलकर तुम ने दारा के साथ लड़ाई में अपने भाइयों से कहा था कि मुझे राज्य नहीं चाहिए मैं तो मुराद और शुजा का तरफदार हूं। परंतु तूने उन दोनों को भी मारा। फकीरी की जगह बादशाहत ली। असली बाप की आजादी छीनी तेरे बाप शाहजहां ने पानी के दुख में तुझे कहा कि — “औरंगजेब”! तुझ से तो हिंदू काफिर अच्छे जो अपने विश्वास के कारण मरो को भी पानी देते हैं। और “तू जिंदा बाप को भी पानी नहीं देता” । क्या खुदा और रसूल का ऐसा हुक्म है ? हम इसको घोर अत्याचार समझते हैं।तूने अपने वंश का वध किया और मिट्टी खराब की। गाजी का खिताब लिया। जनता की दृष्टि में तू जालिम है।
औरंगजेब — तुम काफिर और मगरूर हो मैं इस्लाम का खादिम हूं।
राव — तू झूठा है इस्लाम के नाम पर अत्याचार करता है। हम निहत्थे और निर्दोष हैं। तुम्हारे बुलाए हुए मेहमान हैं। हम आ गए। यदि कुछ साहस है तो तलवार पकड़। दीवान खास से बाहर हो जा। दो-दो हाथ कर। सारा पता चल जावेगा। हमारे साथ मेहमान की तरह बर्ताव
न करने से तू जालिम और नामर्द है। तू भी अपने 12 जवान मर्दों को बुला ले और उन्हीं में तू शामिल हो जा।कुछ ही समय में नतीजा मालूम पड़ जाएगा।
औरंगजेब — तुम मेरे पिंजरे में बंद हो निकल नहीं सकते। निकलने के दो ही रास्ते हैं इस्लाम या मौत। एक मानना पड़ेगा।
राव — आत्मा, अजर, अमर, अविनाशी है।नित्य है। यह शरीर हटा दूसरा तैयार है। हम बार-बार लड़ते हैं। मर्दों की तरह मैदान में आकर वीरों की भांति युद्ध कर तब ही बहादुर कह ला सकते हो। नहीं तो तुम कुत्तों के समान नीच हो। जो कि घर आए को फाड़ते हो। तुझे जो कुछ करना है कर। तेरे जीवन में तेरा ही बेड़ा गर्क हो जाएगा।
उसी समय औरंगजेब के आदेश पर 11 वीरों को चांदनी चौक में ले जाया गया और वे वीर भी विक्रमी संवत् 1717 कार्तिक कृष्णा दसवीं को मातृभूमि के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे गए। यह कुकृत्य दिन के 10:00 बजे किया गया राजा जयसिंह के बहुत कहने सुनने पर मृतक शरीर पंचायत के लोगों को दे दिए गए। 1:00 इन वीरों की वीरांगनाओं ने भी अपने अपने पति की जलती चिता में परिक्रमापूर्वक अपने प्राणों की बलि चढ़ा दी। और सती हो गई । दिल्ली का राजघाट आज भी उन धधकती चिताओं की साक्षी दे रहा है। इतने पर भी नहीं हुआ। राव हरिराय का बालक पन का साथी पीर नजर अली सूफी 33 वर्षीय ब्रह्मचारी था। वह पंचायत का बड़ा पक्षपाती था। उसने औरंगजेब को बहुत कठोर शब्द कहे और जालिम ठहराया । औरंगजेब ने इस फकीर को भी सौ कोड़े लगवाए और मैदान में पिटवा दिया। फकीर जब होश में आया तब पूछा “मेरा प्यारा मित्र हरीराय कहां है” ? पता चला कि 11 वीरों की उनकी पत्नियों सहित चितायें धूं धूं करके औरंगजेबी कुकृत्य को दूर-दूर तक पहुंचा रही हैं । फकीर नजफ अली ने हरिराय की चिता की सात बार परिक्रमा की और जलती चिता में साथी का साथ देकर न्याय की रक्षा के लिए अन्याय की भेंट चढ गया।
इस प्रकार भारत का इतिहास बलिदान गाथाओं से अँटा पड़ा है। चित्तौड़गढ़ का साका, वीर बंदा बैरागी का बलिदान, औरंगजेबी राज्य के बलिदानों की कथा इतिहास में लिखी हुई हैं। हमने अनेक गांवों में से केवल तीन घटनाएं हस्तलिखित अप्रकाशित सर्वखाप पंचायत के इतिहास से दी हैं। इसमें मेरा कुछ नहीं इसका श्रेय “चौधरी कबूल सिंह” जी शोरों जिला “मुजफ्फरनगर” इतिहास रक्षक को ही है।

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