कुल देवी की पूजा का मतलब*

DR D K Garg

कृपया अपने विचार व्यक्त करे और शेयर करे।

अभी अभी टीवी पर न्यूज देखी की उत्तराखंड के जोशी मठ के पास पहाड़ हिलने से सकड़ों मकान और वहा के कुलदेवी का मंदिर भी नष्ट हो गया। बहुत दुख हुआ ये सोचकर की कुलदेवी ने वहा रहने वालो की और स्वयं की संपत्ति की सुरक्षा क्यो नही की?
कुछ प्रश्न सामने आए,
1. कुलदेवी से भी बड़ा कोई ईश्वर है जिसके अधीन प्राकृति संचालन है,और कुलदेवी ईश्वर के सामने गौण है।

  1. ये कुलदेवी शरीरधारी नही है सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों से मनुष्य के द्वारा बनाई काल्पनिक मूर्ति और स्थल है
  2. कुलदेवी की कल्पना कैसे सुरु हुई?जबकि हिन्दू धर्म में अन्य महापुरूषों का इतिहास है या कोई वैदिक अर्थ भी है।

इस पर विचार करते है।

मान्यता : बहुत से परिवार हर साल या किसी विशेष उत्सव जैसे बच्चो की शादी ,जन्मदिन आदि पर अपने परिवार की कुल देवी या कुल देवता की पूजा करने बाहर जाते हैं। ये स्थान उनके निवास के सैकड़ो किलो मीटर दूर ही क्यों ना हो। सुनने में तो यह आया है कि उत्तराखंड,छत्तीसगढ़ ,झारखण्ड,
बिहार आदि कुछ क्षेत्रों में तो कुल देवी को खुश करने के लिए पशु बलि तक दी जाती है।
किसी परिवार में कुल देवी की पूजा तो किसी परिवार में कुल देवता की पूजा होती है, दोनों की पूजा एक साथ होने का कोई उदाहरण नहीं मिला।
ऐसी मान्यता हैं कि पूजा ना करने से यदि कुल देवी या कुल देवता नाराज हो गए तो परिवार पर भारी विपत्ति आ सकती है।
क्योंकि कुल देवी-देवता का जब सुरक्षा चक्र हटता है तो सुदूर रहने वाले परिवार में घटनाओं और दुर्घटनाओं का दौर शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, गृहकलह, उपद्रव व अशांति आदि शुरू हो जाती हैं आगे वंश नहीं चल पाता है आदि।
ये कुल देवी पूजा से खुश होकर आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती है ताकि ये निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें। कुलदेवी – देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते हैं।
उल्लेखनीय है कि सभी परिवारों की कुल देवी अलग अलग होती है।

पड़ताल :
मैने इस विषय में पड़ताल की तो कुछ तर्क मिले=
तर्क 1.आप सभी मानते है की हम भारतीय ऋषियों की संतान हैं इसीलिए अपने नाम के साथ कुछ लोग भारद्वाज, वशिष्ट आदि शब्द लगाते है। इससे उनके गोत्र और वंश का पता चलता है।
ये कुलदेवी की पूजा सम्पूर्ण परिवार का एकत्रीकरण का बहाना है ताकि दूर दूर रहने वाले परिवार पूजा के नाम पर एकत्र होकर मिले और अपने पूर्वज को याद करें।
तर्क 2. पूर्वजों का ये इतिहास किसी को नहीं मालूम,कोई अपनी 3/4 पीढ़ी भी नही गिनवा सकता ,ये अंधविश्वास है जिसको वंश नष्ट होने के साथ जोड़ दिया है और सम्पूर्ण खानदान भी एकत्र नहीं होता सिर्फ सगे भाई बंधु जो रोजाना मिलते हैं वही एकत्र होते हैं.
इसलिए इस तर्क में भी ज्यादा दम नही है।

कुल देवी /देवता की पूजा कैसे और क्यों शुरू हुई ?

कुलदेवी की पूजा का कोई इतिहास सामने नहीं आया सिर्फ प्रचलित कथाये सुनने को मिली।
इस विषय पर आगे अध्ययन किया तो एक नई बात सामने आई।

हमारे देश में मुगल शासन जैसे खिलजी, टीपू सुल्तान, जहांगीर, तैमूर आदि ने लगभग 800 साल राज किया और एक दौर ऐसा भी आया कि हिन्दू धर्म का पालन करना, किसी को भी खुले में पूजा पाठ करने पर रोक लगी होती थी। इसकी सजा मौत थी और गांव के गांव मुस्लिम बनाए जाने लगे और अपनी अस्मिता बचाने के लिए इन आक्रांताओं से बचने के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य में पलायन करना सुरु कर दिया. इस दौर में परिवार के कुछ बहादुर लोग बचकर दूर जंगलो में चले गए और उन्होंने दूर रहकर स्वयं को बचाया तथा अपने कुल को बचाए रखने के लिए दूर पहाड़ों वा जंगलों में आश्रम बनाते थे, जहां पर कि उनके कुल के बिखरे हुए लोग साल दो साल में आकर मिल सके और इकट्टा हो सकें।
इसी सम्मान की कडी में उनको कुलदेवता कहा जाने लगा और परिवार के साथ एकत्रित होकर पूजा पाठ ,नामकरण आदि कार्य भी उनके मार्गदर्शन में किए जाने लगे। इनकी गणना हमारे घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी होती थी । अत: प्रत्येक शुभ कार्य में इन्हें जरूरी याद करते थे । इसका एक लाभ ये हुआ हिन्दू धर्म से बंधे रहे ,कितनी भी मुसीबत क्यों ना हुई धर्म नहीं छोड़ा और परिवार का एकत्रीकरण भी हुआ.
कालान्तर में इसको कुलदेवी या देवता की पूजा का नाम दिया गया.

इसीलिए हर परिवार के कुल देवता और कुलदेवी सभी के अलग-अलग होते हैं।
लेकिन वर्तमान में स्थिति और परिस्थिति बिलकुल बदल चुकी है।

याद रहे कि हिन्दू धर्म में कुल देवी /देवता का ३३ कोटि देवताओं में कोई स्थान नहीं है और न ही इस तरह की कोई पूजा वैदिक ग्रंथों में या किसी प्रामाणिक पौराणिक ग्रन्थ में मिलती है।

प्रश्न उठता है कि साल में एक -दो दिन पूर्वजों को याद करने से क्या हो जायेगा ?
ये पूजा श्रद्धा ना होकर डर से की गई औपचारिकता है?
ये कौन से नयी पूजा पद्धति शुरू हो गयी, जिसने सर्वव्यापी ईश्वर की जगह ले ली ? जीते जी तो माँ बाप के सेवा नहीं की जाती, रोज उनके साथ दंगा फसाद करते हैं फिर मृत्य के बाद ये ढोंग क्यों?
ये पूर्वज कितनी पीढ़ी पुराने हैं ?
हमारे पूर्वजों का डीएनए हमारे शरीर में है उनकी दी हुई शिक्षा हमारे मस्तिष्क में और आचरण में होना चाहिए यही उनकी सच्ची पूजा है। क्या हमारे पूर्वज इतने दुर्जन और स्वार्थी नही है कि उनको ना पूजने से नाराज हो जायेंगे ।

Comment: