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आज का चिंतन

सत्य की खोज*

सत्य की खोज

एक ही ईश्वर के अनेकों नाम ; एक अन्य नाम नाथ और नाथ से सुरु होने वाले अन्य शब्द जैसे बद्रीनाथ, जगन्नाथ, विश्वनाथ आदि भी

Dr.D.K.Garg

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प्रश्न:क्या ईश्वर को नाथ भी कह सकते है ,और नाथ शब्द के साथ अनेकों भगवान के नाम सामने आते है ,जैसे कि बद्रीनाथ,केदारनाथ,जगन्नाथ,बाबा विश्वनाथ आदि
उत्तर : नाथ शब्द पर्यायवाची का अर्थ है : प्रभु ,स्वामी ,अधिपति
जो एक ही ईश्वर का प्रतीक है ,नाथ शब्द जोड़कर अलग अलग ईश्वर मान लेना गलत है।क्योंकि ईश्वर एक ही है लेकिन इसके असंख्य कार्य है शायद इसलिए ईश्वर की अनेकों मूर्तिया बनाने के पीछे यही प्रयोजन रहा होगा।
उदाहरण के लिए एक किसान खेत में हल चला रहा है ,और वही किसान पशु को चारा खिला रहा है,वही किसान फसल की कटाई कर रहा है,
इस आलोक में किसान एक हैं लेकिन उसके कार्य तीन है जिनको यदि चित्र द्वारा समझाया जाए तो तीन चित्र बनाने होगे।
वेद में ईश्वर के लिए नाथ शब्द बहुत बार आया है।
ऋग्वेद में नाथ के 7 संदर्भ मिले
यजुर्वेद में नाथ के 4 संदर्भ मिले
सामवेद में नाथ के 1 संदर्भ मिले
अथर्ववेद में नाथ के 22 संदर्भ मिले

प्रश्न ;क्या भगवान विश्वनाथ , जगन्नाथ,बद्रीनाथ, गणेश,लक्ष्मी , शनि, ब्रहस्पति,शंकर आदि से अलग अलग ईश्वर है?
तो उत्तर है कि बिलकुल नहीं,ये समझ का फर्क है क्योंकि ये सब ईश्वर एक ही है जो सर्वशक्तिशाली है, निराकार, सर्वाधार , सर्वव्यापक है ,परमपिता है .जैसा कि पहले कहा है कि ईश्वर के अनेकों प्रकार के कार्य है जिसके कारण ईश्वर को अलग नाम से पुकारा गया है , और यदि इन कार्यों को समझने के लिए निराकर ईश्वर की चित्रकारी की जाए तो कार्यों के आधार पर एक ही ईश्वर अलग अलग रूपों में नजर आएगा ।

ईश्वर को विश्वनाथ क्यो कहते है?ईश्वर पूरे ब्रह्मांड का रचने वाला है और वही ईश्वर सृष्टि को बनाने , चलाने और प्रलय करने वाला है इस कारण से ईश्वर का एक नाम विश्वनाथ भी है। जैसा काम वैसा ही नाम।
शास्त्र क्या कहते है?
निर् और आङ्पूर्वक (डुकृञ् करणे) इस धातु से ‘निराकार’ शब्द सिद्ध होता है। ‘निर्गत आकारात्स निराकारः’ जिस का आकार कोई भी नहीं और न कभी शरीर-धारण करता है, इसलिए *परमेश्वर का नाम ‘निराकार’ है।
हमारे धर्म साहित्य कार्यों के आधार पर ईश्वर को अलग अलग नाम से पुकारा है ?
१ (विश प्रवेशने) इस धातु से ‘विश्व’ शब्द सिद्ध होता है। ‘विशन्ति प्रविष्टानि सर्वाण्याकाशादीनि भूतानि यस्मिन् । यो वाऽऽकाशादिषु सर्वेषु भूतेषु प्रविष्टः स विश्व ईश्वरः’ जिस में आकाशादि सब भूत प्रवेश कर रहे हैं अथवा जो इन में व्याप्त होके प्रविष्ट हो रहा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘विश्व’ है, इत्यादि नामों का ग्रहण अकारमात्र से होता है।
२ (बृह बृहि वृद्धौ) इन धातुओं से ‘ब्रह्मा’ शब्द सिद्ध होता है। ‘योऽखिलं जगन्निर्माणेन बर्हति वर्द्धयति स ब्रह्मा’ जो सम्पूर्ण जगत् को रच के बढ़ाता है, इसलिए परमेश्वर का नाम ‘ब्रह्मा’ है।
३ ‘यो विश्वमीष्टे स विश्वेश्वरः’ जो संसार का अधिष्ठाता है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘विश्वेश्वर’ है।
४ (डुकृञ् करणे) ‘शम्’ पूर्वक इस धातु से ‘शंकर’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘यः शंकल्याणं सुखं करोति स शंकरः’ जो कल्याण अर्थात् सुख का करनेहारा है, इससे उस ईश्वर का नाम ‘शंकर’ है।
५ ‘महत्’ शब्द पूर्वक ‘देव’ शब्द से ‘महादेव’ सिद्ध होता है। ‘यो महतां देवः स महादेवः’ जो महान् देवों का देव अर्थात् विद्वानों का भी विद्वान्, सूर्यादि पदार्थों का प्रकाशक है, इसलिए उस परमात्मा का नाम ‘महादेव’ है।
६ (शिवु कल्याणे) इस धातु से ‘शिव’ शब्द सिद्ध होता है। ‘बहुलमेतन्निदर्शनम्।’ इससे शिवु धातु माना जाता है, जो कल्याणस्वरूप और कल्याण का करनेहारा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘शिव’ है।

प्रश्न :परमेश्वर को बाबा विश्वनाथ क्यों कहा है ?
वेद में ईश्वर को पिता ,पितामह और बाबा भी कहा है -देखिये
१ (पा रक्षणे) इस धातु से ‘पिता’ शब्द सिद्ध हुआ है। ‘यः पाति सर्वान् स पिता’ जो सब का रक्षक जैसा पिता अपने सन्तानों पर सदा कृपालु होकर उन की उन्नति चाहता है, वैसे ही परमेश्वर सब जीवों की उन्नति चाहता है, इस से उसका नाम ‘पिता’ है

2 ‘यः पितृणां पिता स पितामहः’ जो पिताओं का भी पिता है, इससे उस परमेश्वर का नाम ‘पितामहः’ है।

३ ‘यः पितामहानां पिता स प्रपितामहः’ जो पिताओं के पितरों का पिता है इससे परमेश्वर का नाम ‘प्रपितामह’ है।

प्रश्न ; बद्रीनाथ का मतलब बताए
बद्री का पर्याय प्रभु विष्णु जिसने उज्ज्वल रात बनाई है। जिसका प्रकाश भूमि पर रात्रि को भी उजाला देता है ।
जगन्नाथ का अर्थ:जगत का अधिपति परमात्मा,जगत का रचियता स्वामी
केदारनाथ का भावार्थ

केदार का पर्यायवाची भी ईश्वर के गुणों को इंगित करता है। केदार का पर्याय शब्द महेश है। जिसका भावार्थ पहले बता दिया है।
विशेष:उपरोक्त सभी नाम निराकर ईश्वर के है,यदि किसी शरीरधारी ,या मूर्ति,तस्वीर के ये नाम होगे तो वह ईश्वर नही है।
उपरोक्त के आलोक में आपको नाथ शब्द और इसे जुड़े हुए अन्य शब्दों का भावार्थ स्पष्ट हो जायेगा।बाकी आप समझदार है और समझदार को इशारा काफी है।

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