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महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानने वाले नाथूराम गोडसे आखिर क्यों करने लगे थे गांधी से इतनी घृणा

गांधीजी को अपना आदर्श मानते थे नाथूराम गोडसे, जानें क्यों करने लगे थे इतनी नफरत

अनन्या मिश्रा

नाथूराम गोडसे को अधिकतर लोग गांधीजी के हत्यारे के तौर पर जानते हैं। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 19 मई को नाथूराम गोडसे का जन्म हुआ था। वह आरएसएस और हिंदू महासभा जैसे कई संगठनों से जुड़े थे।

नाथूराम गोडसे एक ऐसी हस्ती थी, जो देश की आजादी से पहले की राजनीति से संबंध रखते थे। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और पंथवादी राष्ट्रवादी समूहों से जुड़े थे। नाथूराम गोडसे ने ही देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिसके बाद उनको इस गुनाह के लिए फांसी की सजा सुनाई गई थी। नाथूराम हिंदूत्व को मानने वाले व्यक्ति थे। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 19 मई को नाथूराम गोडसे का जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सिरी के मौके पर नाथूराम गोडसे के जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में…

जन्म

मुंबई-पूना रेलमार्ग पर स्थित रेलवे स्टेशन कामशेट से 10 मील दूर एक छोटे से गांव उक्सान में 19 मई 1910 को नाथूराम गोडसे का ब्राह्मण परिवार में जन्म हुआ था। उस दौरान गोडसे परिवार में बेटियां तो जन्म के बाद बच जाती थीं। लेकिन बेटों की कुछ समय बाद मौत हो जाती थी। जिस कारण इनके जन्म के बाद उनकी मां ने नाथूराम का लालन-पालन एक बेटी की तरह किया और नाथूराम के नाक में नथ भी पहनाई। जिसके कारण इनका नाम नाथूराम पड़ा।

शिक्षा

अपने स्थानीय स्कूल से नाथूराम ने अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी की। जिसके बाद उनको किसी रिश्तेदार के साथ पूणे भेज दिया गया। ताकि वह अंग्रेजी और हिंदी भाषा का ज्ञान प्राप्त कर सकें। नाथूराम उस दौरान महात्मा गांधी को काफी पसंद किया करते थे और उनके आदर्शों पर चलते थे। इसी दौरान जब उनके पिता का ट्रांसफर रत्नागिरी में हो गया तो वह अपने परिवार के साथ वहीं रहने लगे। तभी उनकी मुलाकार वीर सावरकर से हुई। इसके बाद नाथूराम गोडसे ने राजनीति की ओर कदम बढ़ा दिया।

राजनीति में एंट्री

जब नाथूराम की वार सावरकर से मुलाकात हुई थी, उसी दौरान सावरकर को अंडमान निकोबार से काला पानी की सजा से मुक्ति मिली थी। अंग्रेजों ने सावरकर को रत्नागिरी में नजरबंद कर रखा था। हाईस्कूल की पढ़ाई छोड़कर नाथूराम हिन्दू महासभा एवं आरएसएस जैसे संगठनों से जुड़ गए। वह मुस्लिम लीग वाली अलगाववादी राजनीति का विरोध कर थे। एक बार जब ब्रिटिश सरकार के खिलाफ गांधीजी ने आंदोलन शुरू किया तो हिंदू महासभा ने गांधीजी को अपना समर्थन दिया। लेकिन बाद में हिंदू महासभा इस आंदोलन से अलग होकर गांधीजी का विरोध करने लगे। हिंदू महासभा का मानना था कि महात्मा गांधी हिन्दुओं और अल्पसंख्यक समूहों में भेदभाव कर रहे हैं। मुस्लिम लीग को खुश करने के लिए वह हिंदूओं के हितों को नजरअंदाज कर रहे हैं।

गांधीजी की हत्या

नाथूराम गोडसे ने गांधीजी को भारत-पाकिस्तान के विभाजन के लिए जिम्मेदार ठहराया खा। बता दें कि विभाजन की उस त्रासदी में हजारों हिंदू व मुस्लिमों की मौत हो गई थी। जिसके कारण नाथूराम ने गांधीजी की हत्या का विचार कर लिया। एक दिन जब महात्मा गांधी शाम की प्रार्थना कर रहे थे। तभी नाथूराम गोडसे ने प्रार्थना सभा में हिस्सा लिया और गांधीजी के सीने में 3 गोलियां दाग दीं। हत्या के बाद नाथूराम अपनी जगह से भागे नहीं, बल्कि उसी स्थान पर खड़े रहे। इस हत्याकांड में उनके 6 साथी भी शामिल थे। वहीं घायल गांधीजी को फौरन उनके कमरे में ले जाया गया। लेकिन तब तक उनकी मौत हो चुकी थी।

हत्या का परिणाम

गांधीजी की हत्या के बाद हिन्दू महासभा और आरएसएस पर बैन लगा दिया गया था। लेकिन कुछ समय बाद इस बैन को हटा दिया गया। क्योंकि गांधीजी की हत्या में आरएसएस शामिल नहीं था। साल 1949 में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने आरएसएस से बैन हटा दिया था। वहीं नाथूराम गोडसे को गांधीजी की हत्या का आरोपी मानते हुए भारत सरकार ने उनपर एक्शन ले लिया।

गोडसे की मृत्यु

साल 1948 को नाथूराम के केस की कार्यवाही शुरू हो गई। इस दौरान नाथूराम ने भी अपनी सफाई पेश नहीं की। उन्होंने अपने अपराध को स्वीकार कर लिया। जिस कारण इस केस के फैसले में 1 साल से भी कम का समय लगा। कोर्ट ने नाथूराम गोडसे के खिलाफ 8 नवंबर 1949 को आखिरी फैसला सुनाया। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि नाथूराम गोडसे को 15 नवंबर को फांसी की सजा दी जाएगी। वहीं इस अपराध में शामिल उनके साथी नारायण आप्टे को भी मृत्युदंड सुनाया गया। बता दें कि नाथूराम गोडसे ने अपनी आखिरी इच्छा जाहिर की थी। जिसमें उन्होंने कहा था कि वह उनकी मौत के बाद अस्थियों को जल में तब तक विसर्जित न किया जाए, जब तक भारत और पाकिस्तान एक न हो जाएं। वह चाहते थे कि भारत-पाकिस्तान के एक होने के बाद उनकी अस्थियों को पाकिस्तान की सिंधु नदी में विसर्जित किया जाए।

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