जेब आपातकाल के दौरान जॉर्ज फर्नांडिस ने दी थी इंदिरा गांधी को मात

अनन्या मिश्रा

मजदूर नेता से राजनीति के शीर्ष नेता तक का सफर तय करने वाले जॉर्ज फर्नाडीस का 3 जून को जन्म हुआ था। जॉर्ड फर्नाडीस ने मजदूर नेता बन अपने राजनीतिक सफर को शुरू किया था। उनको जनता से प्यार और सम्मान दोनों मिला था।

जॉर्ज फर्नाडीस ने मजदूर नेता से राजनीति के शीर्ष नेता तक का सफर तय किया था। उनकी गिनती उन नेताओं में की जाती है, जिनको जनता से भरपूर प्यार और सम्मान मिला था। बता दें कि आज ही के दिन यानी की 3 जून को जॉर्ज फर्नाडीस का जन्म हुआ था। जॉर्ज फर्नाडीस ने भारतीय राजनीति में अमिट पहचान बनाई थी। वह आपातकाल के दौरान मछुआरे, साधु और सिख बनकर अपने आंदोलन को चलाते रहे थे। जॉर्ड फर्नाडीस राजनीति की सीढ़ियां चढ़ने से पहले एक ऐसे मजदूर नेता थे, जिनकी एक आवाज पर पूरा मजदूर तबका उनके पीछे चलता था। आइए जानते हैं जॉर्ज फर्नाडीस की बर्थ एनिवर्सिरी के मौके पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…

जन्म और शिक्षा

कर्नाटक के मंगलुरु में 3 जून 1930 को जॉर्ज फर्नांडीस का जन्‍म हुआ था। वह एक ग्‍लोरिन-कैथोलिक परिवार में जन्मे थे। जॉर्ज ने अपनी शुरूआती शिक्षा मंगलुरु के स्कूल से पूरी की। इसके बाद उन्होंने मैंगलौर के सेंट अल्‍योसिस कॉलेज से अपनी 12वीं की पढ़ाई पूरी की। जॉर्ज अपने सभी भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। परिवार के लोग जॉर्ज को गैरी कहकर बुलाते थे। अपने घर के रिवाज के अनुसार, महज 16 साल की आयु में जॉर्ज को बैंगलोर के सेंट पीटर सेमिनरी में धार्मिक शिक्षा के लिए भेजा गया।

कॅरियर

साल 1949 में जॉर्ड मंगलुरु छोड़कर काम की तलाश में मुंबई आ गए थे। लेकिन मुंबई में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। शुरूआती दिनों में वह समाचार पत्र में प्रूफरीडर की नौकरी करने से पहले वह फुटपाथ पर रहा करते थे। कई बार उनको जमीन पर भी सोना पड़ता था। साल 1950 में जॉर्ज सामाजिक कार्यकर्ता राममनोहर लोहिया के काफी करीब आ गए थे। वह लोहिया से विचारों से काफी प्रभावित थे। इसके बाद जॉर्ज सोशलिस्‍ट ट्रेड यूनियन के आंदोलन में शामिल हो गए। इसमें उन्होंने कर्मचारियों तथा होटलों और रेस्तरांओं में काम करने वाले मजदूरों की कम सैलरी के लिए आवाज उठाने का काम किया था।

राजनीतिक सफर

साल 1961 और 1968 में जॉर्ज फर्नाडीस मुंबई सिविक का चुनाव जीतने के बाद बॉम्बे म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के सदस्‍य बन गए। इस दौरान वह लगातार निचले स्‍तर के मजदूरों एवं कर्मचारियों के लिए आवाज उठाते रहे। अपने लगातार आंदोलनों के कारण जॉर्ज अन्य बड़े नेताओं की नजरों में आ गए थे। साल 1967 में लोकसभा चुनाव में उन्‍हें संयुक्‍त सोशियल पार्टी की तरफ से टिकट दिया गया था। उस चुनाव में जॉर्ज ने शानदार जीत हासिल की थी। जिसके बाद उनका नाम ‘जॉर्ज द जेंटकिलर’ रख दिया गया। वहीं जॉर्ज से हारने के बाद कांग्रेस के सदाशिव कानोजी पाटिल ने हमेशा के लिए राजनीति से सन्यास ले लिया था।

रेल हड़ताल

साल 1969 में वह संयुक्‍त सोशियल पार्टी के जनरल सेक्रेटरी बनें। फिर साल 1973 में पार्टी के चेयरमैन बनें। इसके बाद साल 1974 में ऑल इंडिया रेलवे फेडरेशन का अध्‍यक्ष बनने के बाद जॉर्ज ने भारतीय रेलवे के खिलाफ हड़ताल शुरू की। इस हड़ताल के जरिए वह तीसरे वेतन आयोग को लागू करने की मांग कर रहे थे। जॉर्ज आवासीय भत्ता बढ़ाने की मांग कर रहे थे। साल 1975 में देश की पीएम इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। वहीं आपातकाल का विरोध करने वालों को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया गया था।

जब जॉर्ज ने भी आपातकाल का विरोध किया तो उनके खिलाफ भी गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया गया था। लेकिन वह गिरफ्तारी से बचने के लिए जॉर्ज अंडरग्राउंड हो गए थे। लेकिन पुलिस ने जॉर्ज के भाई को गिरफ्तार कर लिया। जिसके कारण जॉर्ज को पुलिस के सामने आत्म-समर्पण कर दिया था। जॉर्ज की गिरफ्तारी के बाद एमनेस्‍टी इंटरनेशनल मेंबर ने सरकार से अपील कर फौरन जॉर्ज को एक वकील दिए जाने की मांग की थी। वहीं वकील न दिए जाने की स्थिति में उनकी जान की गारंटी लेने की बात कही गई थी।

साल 1977 में जब आपातकाल खत्‍म हुआ तो इंदिरा गांधी की समेत कांग्रेस की हार हो गई। वहीं जेल में रहते हुए जॉर्ज बिहार के मुजफ्फरपुर से चुनाव जीत गए थे। इस दौरान उन्हें जनता पार्टी की सरकार में इंजस्ट्री मंत्री बनाया गया। वहीं साल 1998 में जब अटल बिहारी बाजपेई की सरकार सत्ता में आए तो उसी दौरान एनडीए का गठन हुआ था। वहीं साल 1999 में जनता पार्टी दो दलों जनता दल यूनाटेड तथा जनता दल सेक्युलर में बंट गई।

वहीं जॉर्ज जदयू के साथ हो गए और अपनी समता पार्टी को जदयू में मिला दिया। जदयू में जब वह रक्षामंत्री बने थे। तब पाकिस्‍तान ने भारत पर हमला कर दिया। भारत-पाकिस्तान के युद्ध में दोनों तरफ से भारी हथियारों का इस्तेमाल किया गया ता। वहीं भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ के दौरान पाकिस्तान की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। हालांकि इस युद्ध के बाद सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए गए थे, लेकिन जॉर्ज ने उन सभी आरोपों को खारिज कर दिया था।

मौत

जॉर्ज फर्नाडीस पर कई सारे आरोप भी लगाए गए थे। उस दौरान उन पर आपातकाल के दौरान विदेशी संस्‍थाओं से पैसे लेकर इंदिरा गांधी का विरोध करना, रक्षामंत्री रहने के दौरान तहलका कांड, 2000 में इसराइल से बैरक-1 की खरीद में 7 मिलियन डॉलर का घोटाला और परमाणु परीक्षण के बाद चीन को युद्ध के लिए भड़काने आदि का आरोप लगाया गया था। वहीं 29 जनवरी साल 2019 में 88 साल की उम्र में उनका 88 साल की उम्र में निधन हो गया था।

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