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इतिहास के पन्नों से

भारतीय धर्म ग्रंथो के प्रति दुष्प्रचार* भाग 4

भारतीय धर्म ग्रंथो के प्रति दुष्प्रचार

भाग 4

प्रस्तुति Dr D K Garg

श्रीराम का हिरण को मारना, क्या प्रभु श्रीराम मांस का सेवन करते थे?

दुष्प्रचार: लोग यह भ्रम फैलाते हैं कि श्रीराम एक क्षत्रिय होने के नाते मांस का सेवन करते थे। इसीलिए तो माता सीता ने उन्हें हिरण मारकर लाने के लिए कहा था। यदि वे मांसाहारी नहीं थे तो क्यों माता सीता ने हिरण की मांग की थी? कुछ लोग यह भी कहते हैं कि माता सीता ने हिरण के चमड़े की मांग की थी, क्योंकि वह उस चमड़े का आसन या वस्त्र बनाना चाहती थीं।
यदि ऐसा था तो श्रीराम एक मांसाहारी थे?

सवाल का जवाब
प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता ने अपना राजपाट और राजसी वस्त्र सभी को त्याग कर वनगमन कर गए थे। उन्होंने सन्यासियों के वस्त्र को धारण कर लिया था। वे सभी ऋषियों के आश्रम में रहे थे। वहां उन्होंने ध्यान और तप किया। बाद में वे दंडकारण्य में रहने लगे। पंचवटी में कुटिया बनाकर रहने लगे।
उन्हें किसी मृगचर्म की कोई जरूरत नहीं थी। क्योंकि वे शुद्ध सात्विक और तपस्वी वाला जीवन व्यतीत कर रहे थे। आपने कभी देखा है, किसी कुटिया में किसी ने पशु की खाल लटकाई हो?
दूसरा भारत में मैदानी इलाकों में और दक्षिण भारत में कभी भी पशु चर्म को वस्त्र बनाने का प्रचलन नहीं रहा। पशु चर्म को कपड़े के समान प्रयोग करने का प्रचलन केवल बहुत ठंडे या बर्फिले इलाके में किया जाता था। आपने शिवजी के चित्र इसी वेशभूषा में देखा होगा। लेकिन कोई भी वैष्णवी चर्म का प्रयोग नहीं करता।
सही क्या है
असलियत यह थी कि माता सीता ने श्रीराम से हिरण को मारकर लाने के लिए नहीं कहा था बल्कि उसे पकड़कर लाने के लिए कहा था।
सुनहरी हिरन के बच्चे को देख कर जंगल में अकेलेपन को दूर करने के लिए माता सीता ने श्रीराम से उस बच्चे को पालने की इच्छा जाहिर की थी। प्रभु राम ने उस समय सीता को समझाने का प्रयास किया कि इतना छोटा बच्चा अपनी मां के बिना नहीं रह सकता है, इसलिए ये हठ छोड़ दो। किंतु तब सीता बोलीं, ठीक है, जब तक इसकी मां नहीं आती, तभी तक तो इसे रख सकते हैं। ऐसे में हार कर प्रभु श्रीराम उस हिरन को पकड़ने उसके पीछे दौड़ते हुए चले गए। जब दौड़ते हुए वो हिरन एकदम से कभी दिखाई देता और कभी गायब हो जाता।

इसके पीछे रावण की और उसके साले मारीच की भूमिका थी,मारीच आवाज निकालने और वेश बदलने में माहिर था.
मारीच राम को पहचानता था क्योंकि वह सीता स्वयंवर में रावण के साथ राजा जनक के यहां गया था।

उसने स्वर्ण रंग के वस्त्र डालकर मृग का रूप धारण किया जिसको देखकर सीता भ्रमित हुई क्योंकि इस प्रकार का मृग उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था ।इसलिए उन्होंने राम से उस मृग को पकड़कर लाने की जिद की ।
मारीच उछल कूद करता हुआ राम से ओझल हो गया और वस्त्र बदल कर असली वेश में राम के पास आ गया और राम को अपनी बातो में तब तक उलझाए रखा जब तक रावण ने सीता का अपहरण कर लिया।

राम ने किसी मृग का वध नहीं किया ,परंतु मारीच ने आवाज निकालकर सीता को भ्रमित कर दिया था।

रामायण में कहीं भी राम के मांसाहर सेवन के बारे में नहीं लिखा है। हर जगह श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के द्वारा कंद मूल खाए जाने का जिक्र मिलता है।

न मांसं राघवो भुङ्क्ते न चापि मधुसेवते।
वन्यं सुविहितं नित्यं भक्तमश्नाति पञ्चमम् ||
अर्थात राम ने कभी मांस सेवन नहीं किया न ही उन्होंने मदिरा का पान किया है। हे देवी, वे हर दिन केवल संध्यासमय में उनके लिए एकत्रित किए गए कंद ग्रहण करते हैं।

इसके अलावा अयोध्याकांड में निम्मिलिखित श्लोक निहित है जिसका कथन भोजन का प्रबंध करने के पश्चात लक्ष्मण ने किया था।
अयम् कृष्णः समाप्अन्गः शृतः कृष्ण मृगो यथा।
देवता देव सम्काश यजस्व कुशलो हि असि ||
अर्थात देवोपम तेजस्वी रघुनाथजी, यह काले छिलकेवाला गजकन्द जो बिगडे हुए सभी अंगों को ठीक करने वाला है उसे पका दिया गया है। आप पहले प्रवीणता से देवताओं का यजन कीजिए क्योंकि उसमें आप अत्यंत कुशल है।

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