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इतिहास के पन्नों से

महाराणा प्रताप ने अकबर के घमंड को ऐसे किया था चूरचूर, कभी नहीं मानी थी हार

अनन्या मिश्रा

7 फीट 5 इंच लंबाई, 110 क‍िलो वजन। शरीर पर 72 किलो का भारी-भरकम वजनी कवच और हाथ में 81 किलो का वजनी भाला। युद्ध कौशल ऐसा कि दुश्मन भी उनके कायल थे। इस शूरवीर ने मुगल बादशाह अकबर के घमंड को चकनाचूर कर दिय़ा। 30 सालों के निरंतर प्रयास के बाद भी अकबर उन्हें बंदी नहीं बना सका। बता दें कि ऐसे वीर योद्धा महाराणा प्रताप थे। आज के दिन यानी की 9 मई को उनका जन्म हुआ था। आइए जानते हैं उनकी बर्थ एनिवर्सिरी के मौके पर महाराण प्रताप के बारे में कुछ रोचक तथ्य…

जन्म और परिवार

राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में 9 मई, 1540 को महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था। इनके पिता का नाम महाराणा उदयसिंह और माता जीवत कंवर या जयवंत कंवर थीं। महाराणा प्रताप को बचपन में सभी कीका नाम से बुलाते थे। महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। महाराणा प्रताप महान पराक्रमी और युद्ध रणनीति कौशल में दक्ष थे। उन्होंने बार-बार मुगलों के हमलों से अपने दुर्ग यानी की मेवाड़ की रक्षा की। प्रताप ने कभी भी अपनी आन-बान और शान के लिए समझौता नहीं किया। विपरीत से भी विपरीत परिस्थिति में वह चट्टान की तरह डटे रहे।

राज्याभिषेक

गोगुंदा में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक हुआ था। राणा उदयसिंह ने युद्ध की विभीषिका के बीच चित्तौड़ त्याग कर अरावली पर्वत पर डेरा डाला। जहां पर उन्होंने उदयपुर नामक नया नगर बसाया था। जो बाद में उनकी राजधानी भी बनीं। उदयसिंह ने अपनी मृत्यु के समय भटियानी रानी के छोटे पुत्र जगमल को गद्दी सौंपी थी। जबकि सबसे बड़े पुत्र होने के नाते महाराणा प्रताप इसके उत्तराधिकारी थे। उस दौरान उदयसिंह के इस फैसले का सरदारों व जागीरदारों ने भी विरोध किया था।

वहीं दूसरी तरफ मेवाड़ की प्रजा भी महाराणा प्रताप से लगाव रखती थी। लेकिन जगमल को राजा बनता देख जनता में विरोध और निराशा की भावना जन्म लेने लगी। जिसके बाद राजपूत सरदारों ने 1576 में महाराणा प्रताप को मेवाड़ की गद्दी पर बैठाया। जिसके कारण उनका छोटा भाई जगमल उनका विरोधी और शत्रु बन गया। इसके बाद वह अकबर से जा मिला।

हल्दीघाटी का युद्ध

साल 1576 में महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच हल्दी घाटी में युद्ध हुआ था। इस दौरान अकबर की 85 हजार सैनिकों वाली विशाल सेना के सामने महाराणा प्रताप अपने 20 हजार सैनिकों के साथ स्वतंत्रता के लिए कई सालों तक युद्ध करते रहे। बताया जाता है कि इस दौरान ये युद्ध तीन घंटे से अधिक समय तक चला था। इस युद्ध में बुरी तरह से जख्मी होने के बाद भी प्रताप मुगल बादशाह अकबर के हाथ नहीं आए थे।

जब जगंल में छिपे महाराणा प्रताप

अपने कुछ साथियों के साथ प्रताप जंगल में जाकर छिप गए। जंगल में प्रताप और उनके साथी कंद-मूल फल खाकर लड़ते रहे। इसके बाद महाराणा ने फिर से सेना का गठन शुरू कर दिया। बता दें कि वह गोरिल्ला युद्ध कला में निपुण थे। एक अनुमान के मुताबिक मेवाड़ के मारे गए सैनिकों की संख्या करीब 1600 हो गई थी। जबकि मुगल सेना में 350 सैनिक घायल हो गए थे। वहीं 3500 से लेकर-7800 सैनिकों की जान चली गई थी।

जानिए क्यों रखते थे दो तलवार

जब 30 सालों के प्रयास के बाद बी अकबर महाराणा को बंदी नहीं बना सका। तो हार कर उसे महाराणा को बंदी बनाने का ख्याल दिल में मिटाना पड़ा। आपको बता दें कि प्रताप के पास हमेशा 104 किलो वजन वाली दो तलवार रहा करती थीं। वह दो तलवार इसलिए रखते थे। जिससे कि यदि उन्हें कोई शत्रु निहत्था मिल जाए तो वह एक तलवार उसे देकर उसके साथ युद्ध कर सकें। क्योंकि प्रताप कभी निहत्थे पर वार नहीं करते थे।

महाराणा प्रताप का घोड़ा

महाराणा की तरह ही उनका घोड़ा चेतक भी बहुत बहादुर था। महाराणा के साथ ही उनके घोड़े चेतक को भी याद किया जाता है। कहा जाता है कि जब महाराणा को बंदी बनाने के लिए मुगल सेना उनके पीछे लगी थी। तो चेतक प्रताप को लेकर 26 फीट के उस नाले को लांघ गया था, जिसे मुगल पार न कर सके। चेतक इतना ताकतवर और बहादुर था कि उसके मुंह के आगे हाथी की सूड लगाई जाती थी। वहीं चेतक ने महाराणा प्रताप की जान को बचाने के लिए अपने प्राण त्याग दिए थे।

महाराणा की मृत्यु

19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप का निधन हो गया था। कहा जाता है कि महाराणा प्रताप की मृत्यु पर उनके दुश्मन रहे मुगल बादशाह अकबर की भी आंखे नम हो गई थीं। क्योंकि अकबर प्रताप के कौशल व युद्ध कला से अच्छे से परिचित था।

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