ओ३म्
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ब्रह्मचारी बालकराम प्रज्ञाचक्षु जी (1915-1968) की 108 वीं जयन्ती सोमवार दिनांक 10 अप्रैल, 2023 को वैदिक साधन आश्रम तपोवन, देहरादून में ब्रह्मचारी जी के परिवार एवं समाज के लोगों द्वारा भव्य रूप में मनाई गई। इस अवसर पर द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल महाविद्यालय, देहरादून की आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी के ब्रह्मत्व में तीन कुण्डीय यज्ञ हुआ। यज्ञ में मन्त्रोच्चार गुरुकुल की कन्याओं द्वारा किया गया। मुख्य यज्ञशाला में यजमान वैदिक विद्वान डा. कृष्णकान्त वैदिक शास्त्री जी सपत्नीक थे। यज्ञशाला एवं अन्य दो कुण्डों पर अनेक सपत्नीक यजमानों ने श्रद्धापूर्वक सम्मिलित होकर यज्ञ करते हुए यज्ञाग्नि में घृत एवं साकल्य की आहुतियां प्रदान कीं। इस अवसर पर अपने आशीवर्चनों में डा. अन्नपूर्णा जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने वेदों का मार्ग दिखाया। उन्होंने कहा कि वेदमार्ग पर चल कर ही संसार का कल्याण होगा। आचार्या जी ने कहा कि प्रज्ञाचक्षु बालकराम जी ऋषि दयानन्द जी के बताये मार्ग पर चले थे। वेद कहता है कि सब मनुष्य सत्य, ज्ञान व धर्म के मार्ग पर चलें। धर्म के मार्ग पर चलने से मनुष्य को सुख प्राप्त होगा। इस अवसर पर देहरादून के विधायक श्री उमेश शर्मा जी ने प्रज्ञाचक्षु बालकराम जी जयन्ती के आयोजकों एवं श्रोताओं को अपनी शुभकामनायें दीं। उन्होंने प्रार्थना की कि देश व समाज में सर्वत्र सुख व शान्ति रहे।
यज्ञ के बाद का कार्यक्रम तपोवन आश्रम के सभागार में हुआ। सभागार श्रोताओं से पूरा भरा हुआ था। आयोजन में स्त्री, पुरुष, बाल व वृद्ध बड़ी संख्या में पधारे थे। सभागार में एक सभा हुई जिसका संचालन श्री राजेश आर्य ने किया। इस सभा का अध्यक्ष वैदिक विद्वान डा. कृष्णकान्त वैदिक जी को बनाया गया। सभा में बताया गया कि ब्रह्मचारी बालकराम जी ने नगर-नगर और ग्राम-ग्राम घूम कर वैदिक धर्म का प्रचार किया। उन्होंने पंजाब में आर्यसमाज द्वारा चलाये गये सन् 1957 के हिन्दी सत्याग्रह आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया था। सन् 1966 में चलाये गये राष्ट्रीय गोरक्षा आन्दोलन में भी वह सम्मिलित हुए थे और उनको जेल में डाला गया था। वह तिहाड़ जेल में रखे गये थे। प्रज्ञाचक्षु जी कुल मिलाकर वैदिक धर्म के कार्यों को करते हुए 6 बार जेल गये। प्रज्ञाचक्षु जी ने गढ़वाल, उत्तराखण्ड में भी वैदिक धर्म का प्रचार किया। इसके साथ ही उन्होंने गढ़वाल में प्रचलित अविद्या, अन्धविश्वास एवं कुरीतियों का भी विरोध किया था। प्रज्ञाचक्षु बालकराम जी की वैदिक धर्म में अटूट श्रद्धा थी। वह मृत्युपर्यन्त वैदिक धर्म के प्रति निष्ठावान बने रहे। ब्र. बालकराम जी ऋषि दयानन्द के कट्टर अनुयायी एवं भक्त थे। विद्वान वक्ता ने कहा कि दुनिया की कोई भी शक्ति दयानन्द के अनुयायियों को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। इसके बाद एक वक्ता ने ब्र. बालकराम जी के जीवन एवं कार्यों का परिचय श्रोताओं को दिया।
आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तराखण्ड के अधिकारी श्री मनमोहन शर्मा ने कहा कि प्रज्ञाचक्षु बालकराम जी का कार्यक्षेत्र मुख्य रूप से उत्तराखण्ड सहित उत्तर प्रदेश के बिजनौर, मुरादाबाद एवं बरेली आदि स्थान थे। उन्होंने कहा कि इस भव्य जयन्ती समारोह को आयोजित करने के लिए ब्रह्मचारी जी का परिवार एवं समाज बधाई के पात्र हैं। कार्यक्रम में द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल की ब्रह्मचारिणियों ने वेदमन्त्रो का गायन भी प्रस्तुत किया। इस मन्त्रोच्चार को करके ब्र. बालकराम जी को श्रद्धांजलि दी गई। श्री सुखदेव शास्त्री जी ने अपने सम्बोधन में ब्र. बालकराम जी के कार्यों का उल्लेख किया। श्री शास्त्री जी ने जयन्ती समारोह का आयोजन करने के लिए प्रज्ञाचक्षु बालकराम जी के परिवारजनों का धन्यवाद किया। श्री शास्त्री ने प्रज्ञाचक्षु जी के समय की विषम सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों का परिचय कराते हुए कहा कि उन दिनों समाज में जातिवाद की प्रथा अत्यन्त विकृत रूप में विद्यमान थी। उन्होंने बालकराम प्रज्ञाचक्षु जी के जीवन की घटनाओं पर आधारित एक पुस्तक प्रकाशित करने की प्रेरणा की। कार्यक्रम के एक वक्ता ने कहा कि आर्यसमाज के दस नियमों पर चलने से ही देश व समाज में सुख व शान्ति स्थापित होगी एवं समाज की वास्तविक उन्नति होगी।
प्रज्ञाचक्षु ब्रह्मचारी बालकराम जी की किशोर पौत्री प्रेरणा आर्य ने अपने दादा बालकराम जी के जीवन की प्रमुख घटनाओ को प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया। इसके बाद प्रेरणा आर्य एवं उनके सहयोगी बालक एवं कन्याओं ने ‘होता है विश्व कल्याण यज्ञ स,े जल्दी प्रसन्न होते हैं भगवान यज्ञ से’ मिलकर प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया। श्रोताओं की ओर से सुश्री प्रेरणा आर्य की इन प्रस्तुतियों की सराहना की गई और श्री सतीशचन्द्र आर्य जी ने उन्हें धनराशि देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम में अन्य कुछ वक्ताओं ने भी विचार प्रस्तुत किये।
द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल, देहरादून की आचार्या डा. अन्नपूर्णा जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि समाज व विश्व का जिन विचारों एवं ज्ञान से कल्याण होता है, ऐसे वेदज्ञान वा वैदिक धर्म के पालन से ही मनुष्य का जीवन सफल कहा जाता है। उन्होंने कहा कि प्रज्ञाचक्षु ब्र. बालकराम जी ने हाथ में ओ३म् का ध्वज लेकर पाखण्ड, कुरीतियों एवं अन्धविश्वासों का खण्डन किया और वैदिक धर्म का प्रचार किया। हमंे उनके जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिये। आचार्या जी ने कहा कि आर्य वह मनुष्य, भाई व बहिन होते हैं जिनके गुण, कर्म व स्वभाव श्रेष्ठ होते हैं। आर्य मनुष्य संसार के सुख के लिए अपने जीवन को जीते हैं व आहूत करते हैं। आचार्या जी ने कहा कि हम दूसरों की भलाई करेंगे तो ईश्वर हमारा कल्याण करेंगे। डा. अन्नपूर्णा जी ने कहा कि महर्षि दयानन्द जी ने नारी जाति को ऊपर उठाया। उन्होंने महर्षि दयानन्द का धन्यवाद करते हुए कहा कि उन्होंने स्त्री को यज्ञ की ब्रह्मा बनने और यज्ञ में वेदों के मन्त्रों का उच्चारण करने का अधिकार दिया। अपने वक्तव्य को विराम देते हुए डा. अन्नपूर्णा जी ने प्रज्ञाचक्षु ब्र. बालकराम जी को श्रद्धांजलि दी। इसके बाद देहरादून आर्यसमाज के सक्रिय सदस्य और बालकराम जी के परिवार के अंग श्री सतीश आर्य जी ने प्रज्ञाचक्षु जी के जीवन की अनेक प्रत्यक्षदर्शन की हुई घटनाओं को प्रस्तुत किया। अन्त में सभा के अक्ष्यक्ष डा. कृष्णकान्त वैदिक जी का सम्बोधन हुआ। कार्यक्रम सफल रहा। आयोजकों ने प्रत्येक वर्ष इस प्रकार से जयन्ती समारोह को मनाने का अपना निश्चय श्रोताओं पर प्रकट किया। शान्तिपाठ के साथ सभा समाप्त हुई। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य