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सत्यार्थप्रकाश पढ़कर मनुष्य सत्यासत्य को जानने में समर्थ हो जाता हैः डा. योगेश शास्त्री”

ओ३म्
-आर्यसमाज धामावाला, देहरादून का रविवारीय सत्संग-

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आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के आज दिनांक 2-4-2023 के रविवासरीय सत्संग में गुरुकुल कांगड़ी से पधारे विद्वान डा. योगेश शास्त्री जी का व्याख्यान हुआ। उन्होंने कहा कि संगीत वही है जिसके सुनने से मनुष्य आनन्दविभोर हो जाये। आचार्य जी ने ऋषि दयानन्द के ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका, संस्कारविधि एवं गोकरुणानिधि आदि की चर्चा की और उनका महत्व बताया। उन्होंने कहा कि ऋषि के सभी ग्रन्थों में हमें उनकी एक नई दृष्टि देखने को मिलती है। आचार्य डा. योगेश शास्त्री ने कहा कि सत्यार्थप्रकाश के आरम्भ के 10 समुल्लास पढ़कर मनुष्य मतमतान्तरों के सत्यासत्य को जानने व समझने में समर्थ हो जाता है। उन्होंने कहा कि सत्यार्थप्रकाश के अन्तिम चार समुल्लासों में ऋषि दयानन्द ने देश व संसार में प्रचलित सभी मत-मतान्तरों की समीक्षा लिखी है जिसे पढ़कर मनुष्य मतमतान्तरों में निहित सत्यासत्य को जानकर असत्य का त्याग और सत्य का ग्रहण कर सकता है।

वैदिक विद्वान डा. योगेश शास्त्री ने आगे कहा कि ऋषि दयानन्द ने अपने बचपन के नाम मूलशंकर के अनुरूप ईश्वर के सत्यस्वरूप का प्रचार कर देश के लोगो के सामने सच्चे शिव का सत्यस्वरूप प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन मानवमात्र के लिये उपयोगी एवं हितकारी है। आचार्य जी ने रामायण एवं मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन व कार्यों पर प्रकाश डाला और कहा कि श्री रामचन्द्र जी ने संसार को आर्य बनाने का कार्य किया था।

डा. योगेश शास्त्री ने बताया कि जब विज्ञान उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है तब वहीं से मनुष्य का चारित्रिक पतन भी आरम्भ हो जाता है। अपनी बात को आचार्य जी ने लंकेश रावण का उदाहरण देकर स्पष्ट किया। रामायण का एक प्रसंग सुनाकर आचार्य जी ने कहा कि जिसकी मां पतिव्रता है, जिसने धार्मिक पिता से जन्म लिया है, ऐसी सन्तान जीवन में कभी भी लोभ व स्वार्थ से ग्रस्त नहीं होती। निर्जन वन में पड़ी हुई अथाह सम्पत्ति स्वर्ण आदि को देखकर भी ऐसी सन्तान का मन विचलित नहीं होता है। वह उस सम्पत्ति को देखकर भी उसकी उपेक्षा कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ जाता है। आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने डा. योगेश शास्त्री जी को उनके विद्वतापूर्ण व्याख्यान के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने आर्यसमाज-धामावाला के आगामी वार्षिक निर्वाचन के विषय में सूचनायें भी दीं।

कार्यक्रम के आरम्भ में आर्यसमाज के विद्वान पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री के पौरोहित्य में सामूहिक यज्ञ किया गया। यज्ञ के बाद भजन, सामूहिक प्रार्थना एवं सत्यार्थप्रकाश के कुछ अंशों का पाठ किया गया। सत्यार्थप्रकाश का पाठ करते हुए पं. विद्यापति शास्त्री ने कहा कि ईश्वर कभी पक्षपाती नहीं हो सकता। उन्होने कहा कि जिस पुस्तक में धर्म, सत्य, न्याय एवं सदाचार के विरुद्ध बातें होती हैं वह पुस्तक धर्म की पुस्तक नहीं हो सकती।

आर्यसमाज में हमें हमारे अनेक पुराने मित्र व सहयोगी डा. विनीत कुमार जी, श्री हर्षवर्धन आर्य, श्री नरेन्द्र गोयल, श्री प्रितमसिंह आर्य आदि मिले जिनसे मिलकर और सत्संग को सुनकर हमारा आज आर्यसमाज में व्यतीत किया हुआ समय सार्थक एवं सफल रहा। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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