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आज का चिंतन

ब्रह्म कुमारी मत का सच भाग -१

डॉ डी के गर्ग

मुसलमानो मेँ यदि कोई पैगम्बर बनने का दावा करे तो उसे तुरन्त छुरे से कत्ल कर दिया जायेगा। ईसाइयो मेँ भी कोई ईसा का अवतार नहीँ हो सकता। पर हमारे यहाँ जो चाहता है झट अवतार बनकर मोक्ष का ठेकेदार बन जाता है। आज हम एक ऐसे ही वेद विरोधी ‘ब्रह्मकुमारी‘ सम्प्रदाय के पाखण्ड का भण्डाफोड़ करेगेँ।
हिंदू धर्म को अवतारवाद, मूर्ति ,गुरुडम पूजा तथा स्वाधाय की कमी की भारी कीमत चुकानी पड़ रही है । चालाक और धूर्त लोगो ने शिव ,ब्रह्मा के आड़ में , मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा के नाम पर जन साधारण को खूब भ्रमित किया है,इसके परिणाम स्वरूप हिंदू धर्म का विघटन हो रहा है । स्वयं को हिंदू कहने वाले ,वास्तविक हिंदू धर्म से दूर अपनी नई ढपली बजाने वाले ब्रह्म कुमारी संप्रदाय की बात कर रहे है।ये संप्रदाय कितना भी स्वयं को हिंदू कहे लेकिन वास्तविकता से कोसो दूर है।
वर्तमान में भारत देश के अन्दर हजारों गुरुओं ने मत-सम्प्रदाय चला रखे हैं जिनका मुख्य उद्देश्य वेद विरुद्ध आचरण करना ,धर्म कर्म से साम दाम झूट सच पैसा छल आदि का प्रयोग करके भोली जनता को भ्रमित करके अपनी दूकान चलाना है । वैसे तो कोरोना संक्रमण के समय अपने को भगवान् का दूत बताने वाले, फूक मारकर कैंसर की बीमारी का इलाज करने वाले ये सभी धर्म गुरु दूर भाग खड़े हुए थे लेकिन फिर से अपनी मार्केटिंग सुरु कर दी है। ये सब वेद विरोधी हैं।ये सम्प्रदायवादी ईश्वर से अधिक महत्त्व अपने सम्प्रदाय के प्रवर्तक को देते हैं, वेद,उपनिषद से अधिक महत्त्व अपने सम्प्रदाय की पुस्तक को देते हैं।
हिन्दू कौम का कैसा दुर्भाग्य है कि इसमे जो भी चाहता है परमात्मा बन बैठता है और अवतार बनकर मोक्ष का ठेकेदार बन जाता है। ये मत वेद, शास्त्र, उपनिषद स्मृतियाँ आदि को नहीँ मानता अपितु उनका घोर निदंक है। इस मत की मुख्य पुस्तक ‘साप्ताहिक सत्संग‘ नाम की किताब है जिसमेँ इस मत की सभी कल्पनायेँ लिखी हुई हैद्य
गूगल फेसबुक ब्रह्मकुमारी के काले कारनामों से भरा पड़ा है,सर्च करते करते इनका पूरा भंडाफोड़ होने लगता है।जरूरत इस बात की है की आवासीय सेक्टर में भूमि के दुरुपयोग के कारण सरकारी तंत्र इनकी जांच करे और समाज भी ऐसे अपराधियों को आवासीय सेक्टरों से दूर दूर भगाया जाना चाहिए।
बिजनेस मॉडल:सुरु सुरु में ये लोग तनाव दूर करने और जीवन में शांति लाने के लिए मेडिटेशन को राजयोग के नाम पर बुलाते है और धीरे धीरे एक न एक नया कोर्स करवाना सुरु कर देते है। इस तरह एक साधारण व्यक्ति को फसा लेते है। लोगों के विरोध से बचने व अपनी काली करतूतों को छुपाने के लिये दवाईयों का वितरण व नशा-मुक्ति कार्यक्रम आदि किया जाता है। लोगों को आकर्षित करने के लिए इनकी अनेक संस्थाओं में से निम्न दो संस्थाओं का प्रचार-प्रसार तेजी से किया जा रहा है। (1) राजयोग शिक्षा एवं शोध प्रतिष्ठान (2) वर्ल्ड रिन्युवल स्प्रीच्युअल
इनके कार्यक्रम हमेशा चलते रहते हैं, परन्तु सुबह व शाम को इनके अड्डों पर भाषण (मुरली) हुआ करते हैं। ब्रह्माकुमारियां अड्डे के आसपास रहने वाली स्त्रियों को प्रभावित कर अपनी शिष्या बनाती हैं, सनातन शास्त्रों के विरुद्ध भाषण सुनाने उनके घरों पर भी जाती हैं। कहने को तो इनके सम्प्रदाय में पुरुष भी भर्ती होते हैं जिन्हें ‘ब्रह्माकुमार‘ कहा जाता है, परन्तु ज्यादातर ये औरतों व नवयुवतियों को ही अपनी संस्था में रखते हैं जिन्हें ‘ब्रह्माकुमारी‘ कहते हैं ।
सुन्दर, पढ़ी-लिखीं, श्वेत वस्त्रधारिणी नवयुवतीयाँ इस मत की प्रचारिका होती हैं। इनको ईश्वर, जीव, पुनर्जन्म, सृष्टि-रचना, स्वर्ग, ब्रह्मलोक, मुक्ति आदि के विषय में काल्पनिक (जो शास्त्र-सम्मत नहीं है) बेतुकी सिद्धांत कण्ठस्थ करा दिए जाते हैं, जिसेे वे अपने अन्धभक्त चेले-चेलियों को सुना दिया करती हैं। इस मत की पुस्तकों में जो कुछ लिखा है उनका कोई आधार नहीं है। आध्यात्मिकता और भक्ति की आड़ में ये लोग सैक्स (व्यभिचार) की भावना से काम कर रहे हैं। इनके अड्डे जहां भी रहे हैं सर्वत्र जनता ने इनके चरित्रों पर आक्षेप किये हैं। अनेक नगरों में इनके दुराचारों के भण्डाफोड़ भी हो चुके हैं।
ब्रह्माकुमारियाँ और ब्रह्मकुमार राजयोग, शिव, ब्रह्मा, कृष्ण, गीता आदि की बातें तो करते हैं, परन्तु सुपठित व्यक्ति जल्दी ही भाँप जाता है कि महर्षि पतञ्जलि द्वारा प्रतिपादित राजयोग तथा व्यासरचित गीता का तो ये क, ख, ग भी नहीं जानते। ये विश्वशान्ति और चरित्र निर्माण के लिए आडम्बरपूर्ण आयोजन करते हैं, शिविर लगाते हैं, कार्यशालाएँ संचालित करते हैं, किन्तु उनमें से किसी का भी कोई प्रतिफल दिखाई नहीं देता।’’ पाठक, ब्रह्माकुमारी के मूल संस्थापक के चरित्र को इस लेख से जान गये होंगे, आज के रामपाल और उस समय के लेखराज में क्या अन्तर है?
कार्य व मुख्य उद्देश्य: ब्रह्माकुमारी संस्था का उद्देश्य सदियों से वैदिक मार्ग पर चलने वाले हिन्दूओं को भटकाना है, हिन्दू-धर्म में भ्रम पैदा कराना है, ताकि हिन्दू अपने ही धर्म से घृणा करने लग जाय। ब्रह्माकुमारी संस्था के माध्यम से धर्मांतरण की भूमिका तैयार की जाती है। यह संस्था सनातन धर्म के शास्त्रों के सिद्धांतों को विकृत ढंग से पेश करनेे वाली पुस्तकें, प्रदर्शनियाँ, सम्मेलन, सार्वजनिक कार्यक्रम आदि द्वारा लोगों का नैतिक, सामाजिक, धार्मिक विकृतीकरण व पतन करने का कार्य करती है।
ब्रह्मकुमारी मत की शुरुआत: ‘ब्रह्मकुमारी‘ सम्प्रदाय भारतवर्ष में 1937 के बाद से प्रचलित हुआ, जिसके प्रवर्तक लेखराज खूबचंद कृपलानी (ब्रह्मा बाबा) हैं, जो कि एक हीरा व्यापारी थे।लेखराज ख़ूबचंद कृपलानी ने जब व्यवसाय में अच्छा खासा पैसा कमा लिया तब 60 वर्ष की आयु में एक नया पैतरा चला की उन्हें परमात्मा के सत्यस्वरूप को पहचानने की दिव्य अनुभूति हुई हैद्य उन्हें ईश्वर की सर्वोच्च सत्ता के प्रति खिंचाव महसूस हुआ और उन्हें ज्योति स्वरूप निराकार परमपिता शिव का साक्षात्कार हुआ।जनवरी १९६९ में दादा लेखराज की मृत्यु के बाद से दादी के नाम से चर्चित प्रकाशमणि इस सम्प्रदाय की प्रमुख रही हैं। मैट्रिक तक पढ़ी प्रकाशमणि आबू से विश्वभर में फैले अपने धर्म साम्राज्य का संचालन करती रही। सिन्ध में लेखराज की चलने वाली ओम मंडली की जगह माउण्ट आबू में ‘प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय‘ नामक संस्था चालू की गयी। इस संस्था का यहाँ तथाकथित मुख्यालय बनाया गया है, जो 28 एकड़ जमीन में बसा है। आबू पर्वत से नीचे उतरने पर आबू रोड में ही इस संस्था से जुड़े लोगों के रहने, खाने व आने वालों आदि के लिये भवन, हॉल इत्यादि हैं, जो कि 70 एकड़ के क्षेत्रफल में फैला है। बाद में लेखराज को ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ नाम दिया गया। इस मत की मुख्य पुस्तक ‘साप्ताहिक सत्संग‘ नाम की किताब है जिसमेँ इस मत की सभी कल्पनायेँ लिखी हुई हैद्य
ये एक विदेशी संस्था है
लेखराज की मृत्यु के बाद सन् 1970 में ब्रह्माकुमारी संस्था का एक विशेष कार्यालय लंदन (इंग्लैंड) में खोला गया और पश्चिमी देशों में जोर-शोर से इसका प्रचार किया जाने लगा। सन् 1980 में ब्रह्माकुमारी संस्था को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ‘ का एन.जी.ओ. बनाया गया। ब्रह्माकुमारी संस्था का स्थाई कार्यालय अमेरिका के न्युयार्क शहर में बनाया गया है, जहाँ से इसका संचालन किया जाता है। इसकी भारत सहित 100 देशों में 8,500 से अधिक शाखाएँ हैं। इस संस्था को ‘संयुक्त राष्ट्र संघ‘ द्वारा फंड, कार्य योजना व पुरस्कार दिया जाता है।
ब्रह्मकुमारी मत की मुख्य मान्यताये:
इस संप्रदाय के साधक या साधिकाएँ, प्रचारक या प्रचारिकाएँ ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी कहाती हैं। प्रचारिकाएँ प्रायः कुमारी होती हैं। विवाहित स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़कर इस सम्प्रदाय में साधिकाएँ बन सकती हैं। ये भी ब्रह्माकुमारी ही कहाती हैं।
ऽपुरुष, चाहे विवाहित अथवा अविवाहित, ब्रह्मकुमार ही कहाते हैं। ब्रह्माकुमारियों के वस्त्र श्वेत रेशम के होते हैं। साधिकाएँ,प्रचारिकाएँ विशेष प्रकार का सुर्मा लगाती हैं, जो इनकी सम्मोहन शक्ति को बढ़ाने में सहायक होता है। सात दिन की साधना में ही वे साधकों को ब्रह्म का साक्षात्कार कराने का दावा करती हैं।
ऽये इस पृथ्वी को सिर्फ 5000 वर्ष पुराना मानता है और कहता है 5000 साल फिर से दुनिया रीपीट होगी . जो काम आज कर रहे हो 5000 साल बाद भी यही काम करोगे ,तुम आज भिखारी हो तो भिखारी रहोगे, चोर हो तो चोर रहोगे और ये गैंग कहता है की जो इस जन्म में कुता है वो अगले जन्म में भी कुत्ता ही बनेंगा जो महिला है वो महिला ही बनेगी ,जो हिजड़ा है वो हिजड़ा ही बनेगा
ऽपशु पक्षियों पुरुष व स्त्रियों की आत्मायें अलग अलग हैं और सदा उसी योनि में जन्म लेती हैं. ये कहते है की रामायण काल्पनिक है महाभारत काल्पनिक है
ऽजैनियो की तरह ब्रह्मकुमारी भी मानते है जगत को न किसी ने बनाया न विनाश होगा कोई बताये इन छिछोरो को जगत का अर्थ ,
ज = उत्पन्न होना ,
गत = नष्ट होना ।
ऽब्रह्माकुमारी- जैसे आत्मा एक ज्योति बिन्दु है वैसे ही आत्माओँ का पिता अर्थात् परमात्मा भी ज्योति बिन्दु ही है।(सा॰स पृ॰51)
ऽब्रह्माकुमारी- भगवान का अवतरण धर्म की अत्यन्त ग्लानि के समय अर्थात् कलियुग के अन्त मेँ होता है। (पृ॰141)
ऽएक युग 5000 वर्ष का होता है जिनमेँ सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग यह चारोँ युग 1250 वर्ष के प्रत्येक होते हैँ। इन चारो मेँ प्रत्येक मनुष्यात्मा को कुल 84 बार जन्म लेना पड़ता है (पृ॰128-134 का सारांश)
ऽपरमात्मा तो सर्व आत्माओँ का पिता है, वह सब मेँ सर्वव्यापक नहीँ है (सा॰स पृ॰ 55) क्या पिता कभी अपने पुत्रोँ मेँ सर्वव्यापक होता है?
ऽब्रह्माकुमारी पंथ का मानना है कि वेद, गीता, पुराण, बाईबल और कुरान में जो भी बातें लिखी गई हैं वह किसी व्यक्ति (मनुष्यों) द्वारा लिखित या अनुवादित हैं, उन्हें नहीं माना जा सकता। लेखराज जी जो ब्रह्माकुमारी पंथ के प्रवर्तक हैं वह भी तो मनुष्य थे जो अंत में भूत बने तो उनके द्वारा कही बातों पर आधारित यह निराधार पंथ क्यों उनकी बातों को मुरली मानकर ध्यान पूर्वक सुनता है?
ऽब्रह्माकुमारी पंथ के अनुसार परमात्मा निराकार है , ईश्वर सर्वव्यापक नहीं है ,उसका केवल प्रकाश दिखाई देता है वह प्रकाश स्वरूप है।

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