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भारतीय संस्कृति

इस्कॉन का सच* भाग 6

Dr DK Garg
भाग -6

ये सीरीज छह भागों मे है , पहले चार भाग में इस्कॉन के विषय में ,इनकी कार्य प्रणाली के विषय में बताया है ताकि आपको पूरी जानकारी हो सके बाकी २ भाग में विश्लेषण किया है। कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दे और अन्य ग्रुप में शेयर करे।

इस्कॉन का विश्लेषण :
महापुरुष कृष्ण भक्ति के नाम पर सुरु की गयी ये संस्था एक नंबर की पाखंडी और बेतुकी संस्था है । अपने पाखंड की दूकान को चलाने के लिए पहले गीता प्रवचन का सहारा लिया और आगे आगे इसको कृष्ण भक्ति का रंग देकर पाखंडी और अवैज्ञानिक रूप दे दिया।
इस्कॉन द्वारा मोक्ष्य दिलाने का आश्वाशन:
”श्रील प्रभुपाद जी ने एक पत्र में कहा कि यदि भ‍क्त रोज 04 नियमों का पालन करता है और 16 माला का जाप करता है तो वह निश्चित रूप से भगवान के धाम जायेगा

इस्कॉन का महामंत्र : ये समस्त दुनिआ जानती है और स्वीकार किया गया है की गायत्री मंत्र ही महामंत्र है जो वेद में है -ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्
गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है, जिसकी महत्ता ओ३म् के लगभग बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मंत्र ओ३म् भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद ३.६२.१० के मेल से बना है। इस मंत्र में सविता देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। इसे गुरु-मन्त्र भी कहा जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम गुरु ही इसे बताते हैं । यज्ञोपवीत-संस्कार में इसी मन्त्र का पाठ किया जाता है । इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। वेद के जितने मन्त्र हैं, लगभग ११ सहस्र हैं, उन सभी मन्त्रों में केवल इसी गायत्री मन्त्र का ही जाप किया जा सकता है ।
शब्दार्थः–

ओ३म्–सर्वरक्षक परमात्मा
भूः–प्राणों के प्राण
भुवः—दुःख-त्राता
स्वः—सुखों के दाता
तत्—वह (परमात्मा)
सवितुः—प्रेरक परमात्मा
वरेण्यम्—वरण करने योग्य
भर्गः—भरण-पोषण करने वाला
देवस्य—देव का
धीमहि—हृदय में धारण करें
धियः—बुद्धियों को
यः—जो
नः—हमारे
प्रचोदयात्—प्रेरित करें ।

इस्कॉन का महामंत्र
‘हरे कृष्णा-हरे कृष्णा’ नाम की १६ बार माला करना होती है।
जिसका कोई अर्थ नहीं है।
जिस पाखण्ड के कारण भारत गुलाम हुआ उसी प्रकार से पाखंड को इस्कॉन बढ़ावा दे रहा है। माला जपना ,मूर्ति पूजा ,एकादशी व्रत,ईश्वर स्तुति के नाम पर नाच गाना आदि। संत कबीर ने कहा है -माला तो कर में फिरे, जीभी फिरे मुख्य माहीं । मनवा तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नहीं ॥

संक्षेप में इस्कॉन को लेकर मेरे विचार इस तरह से है :

१ जब मै इस्कॉन मंदिर गया तो देखा की कृष्ण की पूर्ति के आसपास इसके संस्थापक प्रभुपाद की भी मूर्ति लगी हुई है और इसके आगे ढोबत्ती जलाई हुई है , फल और पैसा का चढ़ावा बिखरा हुआ है। इससे साफ़ है की कृष्ण के नाम पर गुरुडम पंथ सुरु किया गया है।
२ कृष्ण की भक्ति करने का अभिप्राय कृष्ण के गुणों को धारण करना है जिसमे गौ पालन ,यज्ञ करना , वेद आदि का अध्ययन शामिल है। ये लोग हरे कृष्ण हरे कृष्ण की माला जपने और नाचने को ही कृष्ण भक्ति कहते है जो पाखंड की श्रेणी में आता है।
३ महर्षि मनु ने धर्म के १० नियम /लक्षण बताये है जबकि ये केवल ४ को ही स्वीकार करते है।
४ युद्ध के समय कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया उसमे मात्रा ७५ श्लोक थे ,जिसमे कृष्ण ने कही ये नहीं कहा की मैंने सूर्य ,पृथ्वी ,दुनिआ को बनाया और मै ही ईश्वर हु । संस्कृत व्याकरण के ज्ञान के आभाव में इस्कॉन ने गीता का बेतुका अनुवाद प्रस्तुत किया है और श्लोक की संख्या बढ़ाकर 7०० कर दी है।
५ ये अवतारवाद को मानते है ,कृष्ण को राम और विष्णु का अवतार बताते है। कृष्ण परमात्मा हैं और विष्णु को उन्होंने बनाया।इतना ही नहीं इनके अनुसार अल्लाह और कृष्ण एक ही हैं।
इन्हीं पाखंडियों के कारण हिंदू आसानी से धर्म परिवर्तन कर लेते हैं। कभी सुना है किसी मौलाना को ऐसा बोलते हुए, मजाल है कि कभी वो कभी किसी देवी देवता को अल्लाह के बराबर मान लें।
६ इनको ये नहीं मालूम की दीक्षा और संन्यास क्या होता है ,इसकी क्या अवस्था होनी चाहिए ? इनके अनुसार कोई भी सन्यासी हो सकता है और दीक्षा देकर अपने जाल में इस तरह फसा देते है की माला के फेर में दिन रात कृष्ण कृष्ण रट्टा लगाए रहता है। धर्म और कर्म कांड पर ना कोई चर्चा और ना कोई विचार विमर्श ,सिर्फ भगवत गीता ही इनके लिए वेद ,उपनिषद आदि है
७ इस्कॉन के लिए भी कृष्ण योगिराज ,चरित्रवान नहीं है ,कृष्ण को राधा प्रेमी, रसिक , माखन चोर के रूप में प्रस्तुत करना करना आदि कृष्ण का चरित्र हनन है। इन्होने कृष्ण के वास्तविक रूप योगिराज ,गौ पालक कृष्ण ,रुक्मणि के पति को प्रस्तुत नहीं किया।

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