संसार में सभी समान अधिकारों के साथ पैदा हुए हैं

ऋषिराज नागर (एडवोकेट)

आधुनिक समाज में अच्छी शिक्षा या विद्या प्राप्त करना सभी जातियों में अच्छा माना जाता है। शिक्षित समाज ही उन्नति करता है। अच्छे-अच्छे वैज्ञानिक तथा उच्च पदाधिकारी अच्छी शिक्षा के द्वारा ही अपने-2 पदो पर आसीन हैं। जो समाज अशिक्षित या बिना पढ़ा लिखा है वह उन्नति नहीं कर सकता। धर्म या जाति हमारे समाज में शिक्षा प्राप्त करने के लिए बाधक नहीं है अर्थात किसी भी धर्म, देश समाज का व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्वतंत्र है। देश की इस संविधानिक व्यवस्था ने लोगों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में बहुत सहायता प्रदान की है और देश के पिछड़े ,अति पिछड़े, दलित ,शोषित समाज के लोगों में से भी उच्च पदों पर लोग नियुक्त हुए हैं। सुशिक्षित होने पर भी हम अपने देश के नीति नियमों एवं अच्छे संस्कारों का पालन करें।
जिस प्रकार वेद प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर का पुत्र कहकर संबोधित करता है और कहता है कि सबके भीतर एक ही ज्योति विराजमान है उसी प्रकार गुरु वाणी जाति-पाति के संकल्प को स्वीकार नहीं करती। सब (मनुष्य) जीव परमेश्वर के पुत्र हैं, सब के अन्दर एक ही परमेश्वर है, इसलिए न कोई ऊंची जाति वाला है और न कोई छोटी जाति वाला है। वास्तव में जीव (मनुष्य) की वही जाते पांति है जैसे वह कर्म करता है। नीच कर्म या ओच्छे कर्म वाला, दुष्कर्मी, दैत्यभाव, विषम विकारों में संलिप्त व्यक्तियों को ना समझ वह छोटी जाति का कहा जा सकता है।
कोई व्यक्ति केवल इसलिए परमात्मा की प्राप्ति का अधिकारी नहीं बन जाता कि उसका ऊंची जाति में जन्म हुआ है और ना ही कोई व्यक्ति केवल इसलिए परमात्मा की भक्ति से वंचित रह सकता है कि उसका नीची जाति में जन्म हो गया है। कबीर साहिब रविदास जी और नामदेव जी आदि संतो भक्तों ने छोटी जाति के घराने में पैदा होकर भी भक्ति करके ऊंची से ऊंची पदवी प्राप्त की है।
नीच – नीच सब तर गये,राम नाम लवलीन।
जाति के अभिमान में डूबे बहुत कुलीन॥

तीरथ चाले दुइ जना, चित्त चंचल मन चोर।
एको पाप न उतरिया, मन दस लाये ओर॥
तीरथ व्रत करि जग मुआ, जूडे पानी न्हाय।
सन्त नाम जाने बिना, काल जुगन जुग खाय ॥
न्हाये धोये क्या भया, जो मन का मैल न जाय।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाय॥

कोटि-कोटि तीरथ करै कोटि कोटि करि धाम ।
जब लग साध न सेईहै, तब लगि काँचा काम ॥
मूरति धरि धंधा रचा, पाहन का जगदीश ।
मोल लिया बौले नहीं, खोटा बिस्वा बीस ॥

कबीर साहिब कहते-

पाहून पूजे हरि मिले, तौ मैं पूँजू पहार ।
ता ते तो चक्की भली, पीसि खाये संसार ।।
मुल्ला-चढ़ि किलकारिया अलख न बहिरा होय।
जैहि कारन तू बाँग दें, सो दिल ही अन्दर जोय॥

हमें किसी प्रकार के जातीय अभिमान में नहीं रहना चाहिए, बल्कि यह सोचना समझना चाहिए कि मनुष्य के रूप में हम सब समान रूप में पैदा हुए हैं, इसलिए समाज में सभी के प्रति सम्मान का और समता का भाव रखना चाहिए।

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