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इतिहास के पन्नों से

मेवाड़ के महाराणा और उनकी गौरव गाथा अध्याय – 9 ( ख ) एक अजीब घटना घटित हुई

एक अजीब घटना घटित हुई

ऐसे वीर पराक्रमी महाराणा मोकल सिंह के जन्म और बचपन की कहानी को भी यहां उद्धृत करना आवश्यक है। उनके जन्म और बचपन की कहानी का उल्लेख कर्नल टॉड ने किया है। वह अपनी पुस्तक राजस्थान का इतिहास भाग – 1 में इस पर प्रकाश डालते हुए लिखते हैं कि ” महाराणा लाखा ( महाराणा मोकल के पिता ) को जब वृद्धावस्था आने को थी तो उस समय राणा लाखा के लड़के की सगाई का प्रस्ताव मारवाड़ के राजा रणमल ने चित्तौड़ के इस शासक के पास भेजा।’ रणमल के दूत की बात को सुनकर राणा लाखा ने कहा कि राजकुमार चूंडा कुछ समय में दरबार में आने वाला है, वह स्वयं ही इस विषय में बताएगा।
कर्नल टॉड कहते हैं कि राणा लाखा ने अपनी सफेद दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा कि मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि तुम मेरे जैसे सफेद दाढ़ी मूंछ वाले व्यक्ति के लिए इस प्रकार खेल की सामग्री लाए हो।
राजकुमार चूंडा को जब अपने पिता द्वारा कहे गए इस प्रकार के वचनों का पता चला तो उसको अपने पिता के इस प्रकार कहे गए वचन अच्छे नहीं लगे। अवस्था और पद की गरिमा के प्रतिकूल कहे गए इस प्रकार के वचनों को सुनकर राजकुमार ने भरे दरबार में उपस्थित सभी लोगों के मध्य कह दिया कि यद्यपि मेरे पिता ने उपहास में ही ऐसा कहा है परंतु मैं फिर भी यह उचित नहीं समझता कि इस संबंध को स्वीकार करूं। राजकुमार के इस कथन पर राणा स्तब्ध रह गए। उन्होंने अपने पुत्र को समझाने का भरसक प्रयास किया। उसे बताया कि उन्होंने जो कुछ भी कहा था उसे सहज भाव से उपहास के रूप में कह दिया। उसका कोई गंभीर अर्थ नहीं है। इसके उपरांत भी राजकुमार ने अपने निर्णय से पीछे हटना उचित नहीं माना। महाराणा लाखा इस समय धर्मसंकट में फंस चुके थे। पुत्र मानता नहीं था और सगाई का नारियल उस समय लौटाना राणा रणमल का अपमान था।
तब महाराणा लाखा ने अपने पुत्र से कहा कि :- ” यदि तुम यह संबंध स्वीकार नहीं करोगे तो मैं यह विवाह करूंगा , परंतु यह स्मरण रखना कि यदि इस रानी से पुत्र हुआ तो वह मेवाड़ का शासक बनेगा। महाराणा लाखा का यह अंतिम दांव था। वह चाहते थे कि शासक बनने के मोह को उनका पुत्र छोड़ नहीं पाएगा, इसलिए वह उनके ऐसा कहने पर अपनी बात पर पुनर्विचार कर सकता है। यद्यपि महाराणा लाखा के इस प्रकार के कहने का भी कोई प्रभाव राजकुमार पर नहीं पड़ा और उन्होंने सहर्ष इस बात पर भी स्वीकृति दे दी कि महाराणा की इस होने वाली रानी से ही जो पुत्र उत्पन्न होगा, वही मेवाड़ के शासन का उत्तराधिकारी होगा। इस प्रकार की परिस्थितियों में महाराणा लाखा का विवाह राणा रणमल की पुत्री से संपन्न हो गया। इसी रानी से जो पुत्र उत्पन्न हुआ उसका नाम महाराणा लाखा ने मोकल रखा।

किया गया राजतिलक

राजकुमार मोकल जब 5 वर्ष का ही था तो एक बार महाराणा लाखा को अपनी सेना लेकर म्लेच्छों के विरुद्ध युद्ध पर जाना पड़ा। महाराणा लाखा ने अपने पुत्र मोकल के राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने के दृष्टिकोण से उस युद्ध के लिए प्रस्थान करने से पूर्व उसका राजतिलक कर दिया। इस प्रकार राणा मोकल 5 वर्ष की अवस्था में ही चित्तौड़ का उत्तराधिकारी घोषित हो गया। यह एक सुखद बात थी कि राजकुमार चूंडा अपने भाई मोकल के प्रति इस सबके उपरांत भी सहिष्णु और सहृदय बना रहा । उसे इस बात पर तनिक भी कष्ट नहीं था कि महाराणा ने राजकुमार मोकल को चित्तौड़ का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। अपने पिता के देहावसान के पश्चात राजकुमार चुंडा ने अपने पिता की भावना का पूर्ण सम्मान किया और अपने भाई मोकल का संरक्षक बनकर राज्य कार्य चलाने लगा। वह एक स्थितप्रज्ञ राजकुमार था। जिसे वर्तमान परिस्थिति पर किसी भी प्रकार का अफसोस नहीं था। महाभारत के भीष्म पितामह की भूमिका निभाते हुए वह अपने भाई के संरक्षक के रूप में ही अपने आपको आनंदित अनुभव करता था।
उधर नारी सुलभ स्वभाव के कारण महाराणा मुकुल की माता को राजकुमार चूंडा पर विश्वास नहीं था। जब राजकुमार चुंडा को राजमाता के इस प्रकार के संदेह पूर्ण आचरण की जानकारी मिली तो उन्हें बहुत कष्ट हुआ। उन्होंने इस बात पर।सफाई भी देनी चाही और सभी प्रकार की आशंकाओं का निवारण करते हुए राजमाता को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया कि वह अपने भाई मोकल के प्रति पूर्णतया सहृदय हैं। रानी पर जब उसके इस प्रकार के प्रयासों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो वह एक दिन चित्तौड़गढ़ को छोड़कर मांडू चला गया। वहां के राजा ने राजकुमार का राजोचित सम्मान किया और अपने राज्य का हल्लर नाम का क्षेत्र उसे सम्मान स्वरूप प्रदान कर दिया। राजमाता राजकुमार चूंडा के पवित्र आचरण पर तो संदेह कर रही थी पर अपने पितृपक्ष के कलुषित विचारों का उसे तनिक भी बोध नहीं था। वास्तविकता यह थी कि राजकुमार मोकल की अल्पावस्था का लाभ उठाकर चित्तौड़ को हड़पने की इच्छा रानी के पितृपक्ष के मन मस्तिष्क में प्रवेश कर चुकी थी। चित्तौड़ को इस प्रकार हड़पने की इच्छा से राजमाता के पितृपक्ष के कई लोग वहां आकर दरबार में रहने लगे और राज कार्यों में भी अनुचित हस्तक्षेप करने लगे। राणा मोकल का मामा राव रणमल निरंतर शक्ति प्राप्त करता जा रहा था जिसे राजमाता हंसाबाई अच्छा नहीं मान रही थी।

राव रणमल का अनुचित हस्तक्षेप

अब राजमाता को इस बात का बोध हो गया था कि उसने राजकुमार चूंडा को राज महल छोड़ने के लिए विवश करके अच्छा नहीं किया। इस पर राजमाता ने राजकुमार चुंडा के पास अपने दूतों के माध्यम से यह गुप्त संदेश पहुंचाया कि वह अपनी गलती पर प्रायश्चित करती है और उसकी अनुपस्थिति में जिस प्रकार महाराणा मोकल के राजकार्यों में उसका भाई राव रणमल अनुचित हस्तक्षेप कर रहा है वह उसे कतई स्वीकार नहीं है। क्योंकि उसकी इस प्रकार की अनाधिकार चेष्टा से उसके पुत्र और चित्तौड़ दोनों का ही भविष्य असुरक्षित होता जा रहा है।
जब राजकुमार चुंडा के पास राजमाता का यह संदेश पहुंचा तो उसने बिना देरी किए उसके आदेश को स्वीकार कर चित्तौड़ के लिए प्रस्थान कर दिया।
इस पर हमने अपनी पुस्तक “भारत के 1235 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास, भाग – 2” में लिखा है कि :- “यह है हमारा इतिहास जो मानवता के नैतिक पक्ष को भी उभारता है। यह मरे गिरे लोगों की नीरस कहानी का विवरण नहीं रहता अपितु जीवन को जीवंतता देता है। यहां पिता की इच्छा के लिए एक भीष्म ने अपना जीवन दान नहीं किया अपितु खोजेंगे तो अनेक भीष्म राजकुमार चूंडा के रूप में मिल जाएंगे। जिन्होंने नैतिकता के उच्च मानदंड स्थापित किए। अपनी आयु से भी कम आयु की अपनी विमाता राजमाता को चूंडा ने माता का सम्मान और अपने पुत्र की आयु के भाई को राजा बनने पर राजोचित सम्मान दिया।
यह भी एक प्रकार की देश भक्ति ही है । क्योंकि देश भक्ति का नाम देश के मूल्यों को अपनाना और उनका विस्तार करना होता है। उनके लिए प्राण भी न्यौछावर करने हों तो किए जाएं, देशभक्ति का यह भाव देश के मूल्यों के प्रति समर्पण की अंतिम परिणति होता है। हम इस अंतिम परिणति को ही देशभक्ति मान लेते हैं जो कि दोषपूर्ण है।”
राजमाता की इस योजना की भनक जब उसके भाई रणमल को हुई तो वह भी सावधान हो गया। उसने अपने विश्वसनीय साथियों को इस बात के लिए सचेत कर दिया कि वह राजकुमार चूंडा को महल में प्रवेश नहीं करने दें।

राजकुमार की गुप्त योजना

राजकुमार चूंडा नहीं चाहता था कि उसके द्वारा चित्तौड़ पर चढ़ाई की जाए। इससे चित्तौड़ में अपने ही लोगों को प्राणहानि हो सकती थी। इसीलिए राजकुमार चूंडा अपने विश्वसनीय भीलों के माध्यम से राजमाता के पास अपने आने का संदेश पहुंचा दिया। इसके साथ-साथ अपने गुप्तचरों के माध्यम से राजमाता को अपनी योजना से भी अवगत करा दिया। राजकुमार की योजना के अनुसार राजमाता अपने पुत्र मोकल के साथ गोगुंदा नामक गांव में दीपावली पर्व के उत्सव में सम्मिलित होने के लिए चली गई। वहीं पर राजकुमार चूंडा  माता और भाई से अपने कुछ सैनिकों के साथ मिला और चित्तौड़ की ओर चल दिया। राजकुमार चूंडा की योजना थी कि इस प्रकार राजमाता और महाराणा मोकल के साथ वह सहजता से महल में प्रवेश कर जाएगा। 

उधर रणमल भी सारी योजना से अवगत हो चुका था। फलस्वरूप उसके सैनिक उससे दिशानिर्देश पाकर बड़ी सावधानी से खड़े हुए थे। जैसे ही राजमाता, महाराणा मोकल और राजकुमार चूंडा किले के रामपोल द्वार पर पहुंचे तो उन्हें द्वारपालों ने रोक दिया ,परंतु चूंडा ने उनसे कहा कि हम गोगुंदा गांव से राणा को दुर्ग में पहुंचाने के लिए आए हैं और हमारा निवास स्थान धीरे गांव है। राजकुमार चूंडा की इन बातों को सुनकर दुर्गपालों ने द्वार तो खोल दिया पर उनका संदेह निवारण नहीं हो सका। उनको लगा कि दाल में कुछ काला है। फलस्वरूप दुर्गपालों ने राजकुमार और उनके साथ चल रहे कुछ सैनिकों को रोककर उन पर तलवारें चलानी आरंभ कर दी। युद्ध आरंभ हो चुका था। अनेक द्वारपालों को मारकर राजकुमार चुंडा आगे बढ़ा। …. और उसके एक साथी ने रणमल का वध कर दिया। इस प्रकार उस पापी रणमल का इस युद्ध में अंत हो गया जो महाराणा मोकल को समाप्त कर यहां पर अपना राज्य स्थापित करना चाहता था। अपनी वीरता और शौर्य से राजकुमार चुंडा ने उस समय मेवाड़ की रक्षा की। उसने अपनी मर्यादा का पालन करते हुए इतिहास रचा और इतिहास का एक महानायक बनकर अमर हो गया।
महाराणा मोकल को एक मुस्लिम फकीर शेख चिश्ती के आशीर्वाद से अपनी निरंजन नाम की रानी के गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न हुआ था जिसका नाम उन्होंने शेख के नाम पर ही शेखा रखा । वैसे महाराणा मोकल के 7 पुत्र थे । जिनके नाम महाराणा कुंभा, कुंवर क्षेमकरण , कुंवर शिवा, कुंवर सत्ता, कुंवर नाथू सिंह, कुंवर वीरमदेव, कुंवर राजधर थे।
मेवाड़ के इतिहास के इस महानायक महाराणा मोकल सिंह को जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है कि उसी की दासी के पुत्र चाचा व मेरा ने अपने साथी महपा परमार के साथ पीछे से वार करके समाप्त कर दिया था। इस प्रकार अपने ही लोगों के विश्वासघात का शिकार होकर महाराणा मोकल सिंह संसार से विदा हो गए।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

(हमारी यह लेख माला आप आर्य संदेश यूट्यूब चैनल और “जियो” पर शाम 8:00 बजे और सुबह 9:00 बजे प्रति दिन रविवार को छोड़कर सुन सकते हैं।)

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