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संपादकीय

गुजरात व हिमाचल की जनता का परिपक्व निर्णय

गुजरात की कुल 182 सीटों में से 99 भाजपा को, 80 कांग्रेस को और 3 अन्य को मिलीं। भाजपा ने लगातार छठी बार गुजरात में सरकार बनाने का इतिहास रचा। जबकि हिमाचल प्रदेश में कुल 68 सीटों में से 44 भाजपा को, 21 कांग्रेस को व 3 अन्य दलों को मिली हैं। इस प्रकार हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने सत्तारूढ़ कांग्रेस से सत्ता हथियाकर देश के 19वें राज्य में अपनी या अपने गठबंधन एनडीए की सरकार बनाकर कांग्रेस को मात्र 4 राज्यों तक समेटकर रख दिया है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में हिमाचल में पार्टी अपनी 12वीं सरकार बना रही है, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने हिमाचल और गुजरात को हारकर अपनी 29वीं हार दर्ज कराई है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम आ गये हैं। हिमाचल प्रदेश को ‘कांग्रेस मुक्त’ कर उसे अपने लिए छीनने में भाजपा जहां सफल हुई है, वहीं गुजरात में लगातार छठी बार अपनी सरकार बनाने का भी इतिहास रचा है।
निष्पक्षता के साथ यदि इन चुनाव परिणामों की समीक्षा की जाए तो गुजरात में राहुल गांधी ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। वह चुनाव हारे हैं तो इसमें पार्टी के निष्कासित नेता मणिशंकर अय्यर का भी हाथ है, जिन्होंने गुजरात से ही आने वाले प्रधानमंत्री मोदी को चुनाव से सही पहले ‘नीच’ कहकर प्रधानमंत्री को कांग्रेस को मजबूती से घेरने का अवसर उपलब्ध करा दिया था। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गृह राज्य होने का भी भाजपा को लाभ मिला।
इन चुनावों ने भविष्य की राजनीति का मार्ग प्रशस्त किया है। भाजपा को 2019 के लिए सचमुच ‘खुराक’ मिली है। वह ऊर्जा से भरी है और उसे 2019 से अपने मिशन की सफलता की आशा बनी है। साथ ही कांग्रेस को भी उम्मीदों के उजाले में आने का मौका मिला है। टक्कर अब कांटे की बन रही है, जिसे स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा माना जा सकता है। छोटे दलों को लोगों ने नकार दिया है और संदेश दिया है कि छोटे दलों की संकीर्णता हमें नहीं चाहिए।
जैसे उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों के परिणामों ने भाजपा को गुजरात में अपनी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस पर आक्रामक होने के लिए भरपूर ऊर्जा दी थी, वैसे ही गुजरात के चुनाव परिणामों से भाजपा की चुनावी सेहत सुधरेगी यह माना जा सकता है। परंतु इस सबके बावजूद राजस्थान में भाजपा की स्थिति बहुत सुखद नहीं कही जा सकती? वहां भाजपा के लिए सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। निश्चित ही अब भाजपा को ‘राजस्थान फतह’ की तैयारी शुरू करनी चाहिए। गुजरात की जनता ने मोदी को इसलिए जनादेश दिया है कि वह उनकी नीतियों में विश्वास करती है और उन्हें महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और सरदार पटेल के गुजरात का बेशकीमती हीरा मानती है। गुजरात की जनता का भाजपा से लगभग मोह भंग था। राहुल गांधी ने वहां बढ़त बनाई है। जो लोग भाजपा की प्रचण्ड बहुमत से वापसी की घोषणा कर रहे थे-वे आज निराश हैं।
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भाजपा को 150 सीटें दिलवाने की बातें कर रहे थे। माना जा सकता है कि राजनीति में सदा बड़ी बातें करके अपने समर्थकों का मनोबल बढ़ाये रखने के प्रति राजनीतिज्ञों को बड़ी-बड़ी बातें करनी पड़ती हैं, पर यह भी सत्य है कि उन्हें ‘घमण्डी होकर बड़बोला’ भी नहीं होना चाहिए। अमितशाह एक ऐसे राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं-जिनसे उनकी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता कट रहे हैं। दूसरे, अरूण जेटली ने भी देश के आम आदमी को बुरी तरह पार्टी से दूर किया है। इन दोनों बातों की झलक गुजरात चुनाव में दिखायी दी है। गुजरात की जनता ने अमितशाह, अरूण जेटली और गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के विरूद्घ जनादेश देकर मोदी को जिताकर भाजपा को सत्ता दी है।
इन तीनों के विरोध का लाभ राहुल गांधी को मिला है। राहुल गांधी सत्ता में आती हुई कांग्रेस को आगे बढ़ाने में इसलिए सफल नहीं हो पाए कि उनका मुकाबला गुजरात में अमित शाह, अरूण जेटली और विजय रूपाणी से न होकर नरेन्द्र मोदी से था। यदि यही स्थिति किसी अन्य प्रदेश की होती तो कांग्रेस वहां सरकार बना गयी होती। इस प्रकार की परिस्थितियों में गुजरात की जनता ने केवल मोदी को जिताया है। उसका झुकाव कांग्रेस के राहुल गांधी की ओर नहीं था, जितना झुकाव हमें इन चुनावों में कांग्रेस की ओर दिखायी दिया है वह सत्ताविरोधी बनती जा रही हवा का परिणाम था। जिसे नरेन्द्र मोदी के धुआंधार प्रचार ने बखूबी रोकने में शानदार सफलता प्राप्त की है।
कुछ लोगों ने टीवी चैनलों पर कांग्रेस की छद्मधर्मनिरपेक्षता को लेकर बयान दिये हैं कि भारत धर्म निरपेक्ष देश है और यह सभी मजहबों को विकास के समान अवसर देता है। अत: अब गुजरात की जनता ने कांग्रेस की ओर झुककर भारत के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के समर्थन में जनादेश दिया है। वास्तव में गुजरात चुनावों में या हिमाचल प्रदेश में चुनावों में धर्मनिरपेक्षता जैसे किसी विचार को लेकर चुनाव नहीं लड़ा गया। इसलिए गुजरात की जनता ने इस विचार के समर्थन में निर्णय दिया या विरोध में दिया -यह नहीं कहा जा सकता।
इन चुनावों में जनता के सामने विकास का मुद्दा था और विकास के मुद्दे को लेकर दोनों दल (भाजपा और कांग्रेस) स्वस्थ रूप से आगे बढ़े पर कांग्रेस के मणिशंकर अय्यर ने जनता को विकास से हटाकर ‘मोदी नीच हंै या नहीं’-इस विषय पर लाकर सोचने के लिए मजबूर कर दिया। इससे लोगों ने ‘गुजराती अस्मिता’ के नाम पर पीएम मोदी के साथ जाना उचित समझा। गुजरात के चुनावों ने ये भी स्पष्ट किया कि वहां जिग्नेश, पदमेश व हार्दिक पटेल जैसे युवाओं का अभी कोई अस्तित्व नहीं है, पर फिर भी उनकी उपस्थिति से उनका जिस प्रकार नाम पैदा हुआ है उससे स्पष्ट हो गया है कि उनका भविष्य बन चुका है। उन्हें जो कुछ भी मिला है वह पर्याप्त है, क्योंकि उनके पास खोने को कुछ भी नहीं था, उन्हें कुछ पाना ही था और वह अपने उल्टे-सीधे प्रचार से (जिसमें हार्दिक पटेल की अश्लील वीडियोज भी सम्मिलित हैं) बहुत कुछ पा गये हैं। उन्होंने अपना भविष्य पा लिया है। जबकि यदि भाजपा चुनाव हार जाती तो पीएम मोदी अपना बहुत कुछ खो देते। जहां पर गुजरात के जातीय समीकरणों की बात है तो जनता ने इन सबको ठुकराकर एक बार पुन: प्रधानमंत्री मोदी में अपना विश्वास व्यक्त किया है। इसे लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत कहा जा सकता है कि जनता ने संकीर्णताओं में बंधने की बजाए अपने नजरिये की विशालता को दिखाया है।
हमारा मानना है कि भाजपा को अपना किला ठीक करना होगा। देश की जनता जीएसटी को लेकर खुश नहीं है। बेरोजगारी भी दूर नहीं हो पायी है, जबकि रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं, जनता सख्ती तो चाहती है-पर उस सख्ती से हर व्यक्ति ही परेशान हो उठे यह कोई नहीं चाहता। इसके अतिरिक्त भाजपा में टिकट के बंटवारे के समय भी सबकुछ ठीक-ठाक नहीं रहता है। वहां पैसा, पहुंच और चाटुकारिता सभी चलते हैं-यह माना जाता है। जो व्यक्ति टिकट की लाइन में लगकर बाहर आता है-वही ‘थू-थू करके’ लोगों को अपने अनुभव सुनाता है। जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में असन्तोष बैठता है।
राहुल गांधी अपनी पार्टी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं। उनके लिए पार्टी अध्यक्ष बनने पर गुजरात के चुनाव परिणाम आशा की किरण बनकर आऐ हैं। जबसे वह पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने हैं-तब से कांग्रेस निरंतर हारती जा रही है और अब जैसा भी भाजपा के बड़े नेता राजनाथ सिंह ने कहा है कि उनके अध्यक्ष बनते ही कांग्रेस को दो राज्यों में पराजय झेलनी पड़ी है-अर्थात सिर मुंडाते ओले पड़ गये हैं। यह उनकी अब तक की 29वीं हार है। उनकी अच्छी बात यह रही है कि उन्होंने अपना मनोबल नहीं टूटने दिया है्र और वे यह सीख गये हैं कि राजनीति में कभी भी निराश-हताश या उदास होने की आवश्यकता नहीं होती है। यह खेल कब अपने अनुकूल हो जाए?-कुछ नहीं कहा जा सकता।
राहुल गांधी ने राजनीति के पहले और सबसे अनिवार्य खेल को समझने में सफलता प्राप्त की है और इसी सफलता के साथ वह कांग्रेस का अध्यक्ष पद स्वीकार कर रहे हैं, तो माना जा सकता है कि वह एक परिपक्व राजनीतिज्ञ बनने की राह पर अग्रसर हैं। गुजरात के चुनावों ने चाहे उन्हें सरकार बनाने का अवसर नहीं दिया है पर उनको नई ऊर्जा दी है। उन्होंने भाजपा के नरेन्द्र मोदी को गुजरात में पसीना ला दिया-यह उनके लिए सन्तोष का विषय है। परंतु नरेन्द्र मोदी को कम करके आंकना गलती होगी क्योंकि किसी प्रदेश में लगातार छठी बार सरकार बनवाना हर किसी के वश की बात नहीं है। उन्होंने सिद्घ कर दिया है कि जहां मोदी हैं-वहां जीत जरूरी है।
अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश की जनता को ही धन्यवाद दिया जाना चाहिए। जिसने दोनों प्रदेशों में बड़ी सधी हुई प्रतिक्रिया देकर अपना निर्णय सुनाया है। उसने भाजपा को घमण्डी बनने से रोका है तो कांग्रेस को निराश होने से रोककर उसे सशक्त विपक्ष की भूमिका दी है। प्रधानमंत्री मोदी या अमित शाह को यह समझना चाहिए कि उनके द्वारा देश को तब तक कांग्रेसमुक्त नहींं किया जा सकता है, जब तक कि देश में हिमांचल और गुजरात जैसे राज्यों के परिपक्व मतदाता जीवित हैं। कांग्रेस को गुजरात ने 80 अर्थात पहले से 19 सीटें अधिक देकर भाजपा को बता दिया है कि कांग्रेस मुक्त भारत होगा या नहीं होगा?-इसे भाजपा नहीं, जनता तय करेगी।

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