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आज का चिंतन

वैकुंठ धाम की मान्यता

डॉ डी0के0 गर्ग

पौराणिक मान्यता : वैकुंठ धाम भगवान विष्णु का आवास है । भगवान विष्णु जिस लोक में निवास करते हैं उसे बैकुण्ठ कहा जाता है। जैसे कैलाश पर महादेव व ब्रह्मलोक में ब्रह्माजी बसते हैं।
बैकुंठ धाम के कई नाम हैं – साकेत, गोलोक, परमधाम, परमस्थान, परमपद, परमव्योम, सनातन आकाश, शाश्वत-पद, ब्रह्मपुर।
बहुत ही पुण्य से मनुष्य को इस लोक में स्थान मिलता है। जो यहां पहुंच जाता है वो पुनः गर्भ में नहीं आता क्योंकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

विश्लेषण :उपरोक्त मान्यता से ऐसा प्रतीत होता है की भू लोक की तरह बैकुंठ धाम भी एक अलग लोक है और ब्रह्मा , विष्णु और महेश ये तीनों एक न होकर अलग अलग शरीरधारी महान शक्तिशाली जीव है और आलीशान जगह पर रहते है।
ऐसा भीं प्रतीत होता है की ब्रह्मा, विष्णु और महेश ये सर्वव्यापी ईश्वर नही कोई और है जिनका अपना अपना कार्य है।

उपरोक्त कथन बिलकुल असत्य है ,ये भ्रांति अलंकरिक भाषा को ना समझने के कारण और भाषा ज्ञान k अभाव से हुई।
वास्तविक भावार्थ
वैकुण्ठ अथवा बैकुंठ का वास्तविक अर्थ है वो स्थान जहां कुंठा अर्थात निष्क्रियता, अकर्मण्यता, निराशा, हताशा, आलस्य और दरिद्रता ये कुछ ना हो। अर्थात वैकुण्ठ धाम ऐसा स्थान है जहां कर्महीनता एवं निष्क्रियता नहीं है।अध्यात्म की नजर से बैकुण्ठ धाम मन की अवस्था है। ये स्थान आपका घर परिवार और कार्यस्थल या आपके चारू तरफ हो सकता है।

इसलिए किसी अन्य काल्पनिक भूलोक में किसी बैकुण्ठ धाम की कल्पना नकारना व्यर्थ है। आप अपनी कार्य प्रणाली द्वारा घर को स्वर्ग यानि वैकुण्ठ बना सकते है। बैकुण्ठ कोई स्थान न होकर आध्यात्मिक अनुभूति का धरातल है। इसका मतलब यह हुआ कि बैकुण्ठ धाम ऐसा स्थान है जहां कर्महीनता नहीं है, निष्क्रियता नहीं है। व्यावहारिक जीवन में भी जिस स्थान पर निष्क्रियता नहीं होती उस स्थान पर रौनक होती है।
बैकुण्ठ धाम कैसे बनाया जाये तो इसका उत्तर हमको वैदिक शाश्त्रो के अध्ययन से मिलता है की धर्म के दस लक्षण जो महर्षि मनु ने बताये है उन सभी का पलायन करना आवश्यक है और ५ याम और ५ नियम का पालन करने वाले को इस लोक में ही नहीं अन्य लोक में भी बैकुंठ यानि मोक्ष्य की प्राप्ति होती है जहा मुक्त आत्माये स्वछन्द रूप से ईश्वर के सनिधय विचरती है इसको भी बैकुण्ठ धाम कहा गया है।
ब्रह्म , विष्णु और महेश आदि एक ही ईश्वर के नाम है जो शरीरधारी नही है और जिसने समस्त भू लोक का निर्माण किया है ,इस ईश्वर के आकार और रूप की कल्पना नहीं की जा सकती वह सत चित और आनंद है, कण कण में व्याप्त है।

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