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शराब कबाब लजीज दावतें और गौतम बुध नगर बार एसोसिएशन चुनाव*।

लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

भारत चुनावों का देश है, यहां हर दिन चुनाव होते है। यहां प्रधान, सरपंच, पार्षद, विधायक सांसद ही नहीं… कर्मचारी, उद्यमी, व्यापारी ,शिक्षक, चिकित्सक और अधिवक्ता सभी अपना सेवक नेता प्रेसिडेंट/ सचिव आदि पदों के लिए चुनते हैं।

प्रथम अधिवक्ता शब्द पर विचार करते हैं। यह शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें प्रथम शब्द उपसर्ग है अधि + वक्ता = अधिवक्ता अर्थात वादकारी के हित में न्याय हेतु अधिक बोलने वाला ।सामान्य तौर पर अधिक बोलना वाणी का दोष माना गया है लेकिन विधि के क्षेत्र में यह दोष नहीं खूबी है वाणी का आभूषण है । संस्कृत में भी अधिवक्ता इसके लिए ऐसा ही सुंदर शब्द घोषित है’ प्रागंविवाक’ अर्थात वाद-विवाद में जो निपुण हो। अंग्रेजी लॉयर, एडवोकेट से तो सभी परिचित ही हैं। जो सम्मान शिक्षक ,चिकित्सक जैसे पेशे के लिए है वही सम्मान आज भी अधिवक्ता शब्द के लिए आम जनों के मानस में स्थापित है… किसी ना किसी अंश में कम या ज्यादा। आखिर हो भी क्यों ना हो क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की आधारभूत धुरी है अधिवक्ता… कोई भी न्यायाधीश स्वतंत्र न्याय नहीं कर सकता न्यायाधीश को न्याय हेतु सभी संसाधन अधिवक्ता ही तैयार करके देता है। अधिवक्ता को न्यायालय का अधिकारी माना गया है और हमारे देश के स्वाधीनता आंदोलन में तो अधिवक्ताओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। लाला लाजपत राय, मुंशीराम विज स्वामी (श्रद्धानंद ),पटेल ,गोखले ,तिलक ,देशबंधु चितरंजन दास जैसे सैकड़ों नाम इसमें शामिल है ये सभी अधिवक्ता थे हमारे आदर्श है।

लेकिन तब क्या हो जब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एक प्रमुख अधीनस्थ न्यायालय बार परिसर मे ही यह आदर्श धूमिल होने लगे?

यह आदर्श धूमिल हो रहा है जनपद दीवानी व फौजदारी बार एसोसिएशन के वार्षिक चुनावों में वर्ष दर वर्ष। इस वर्ष 2022 चालू दिसंबर माह में अधिवक्ता एसोसिएशन वार्षिक कार्यकारिणी का चुनाव अवैध अनैतिक खर्च की सभी सीमाओं को पार कर गया है। हम समझते हैं देश के किसी भी अधीनस्थ न्यायालय में सबसे खर्चीला चुनाव हुआ है जिसमें लगभग 3 करोड के लगभग अध्यक्ष सचिव कोषाध्यक्ष व अन्य कार्यकारिणी के पदों के लिए 1 दर्जन के लगभग दावेदारों ने व्यवस्था दोष से खर्च किया है। पैसा पानी की तरह बहाया गया। बार परिसर मदिराल्य बन गया…. महंगी शराब chamber-2 चेंबर वितरित की गई….. अंतिम चुनावी सप्ताह में औसत प्रत्येक उम्मीदवार ने 30-30 पेटी से अधिक शराब बाटी । लजीज दावते अलग से क्या वेज या नॉनवेज… फरमाइश कीजिए तुरंत हाजिर। ओवर ड्रंक होने की स्थिति में सेफली होम लैंडिंग की सुविधा अलग।

युवा अधिवक्ता जिनको विधिक आचार के बारे में अपने सीनियर से कुछ सीखना चाहिए उनकी ड्यूटी शराब वितरण में लगी हुई थी ड्यूटी लगाने वाले सीनियर ही थे। एक अध्यक्ष पद के उम्मीदवार के जूनियर नौजवान अधिवक्ता ने हमें बताया जो चुनाव में लिकर डिस्ट्रीब्यूशन का काम संभाल रहा था… “अधिवक्ताओं के परिसर की गली नंबर 1 से लेकर 7 तक सर्वाधिक शराब की खपत होती है”…. यह एक आर्थिक सामाजिक शोध का विषय हो सकता है…। एक अधिवक्ता ने बताया जून माह से ही सिलेक्टिव शराब वितरण अन्य चुनावी खर्च शुरू हो गया था । साथ ही नवीन अधिवक्ता एसोसिएशन के चुनाव के ठीक पश्चात ही आगामी कार्यकारणी वर्ष हेतु संभावित या समर्थित अधिवक्ता उम्मीदवारों का अघोषित डोर टू डोर चैंपियन चल जाता है जिसमें धन व समय की दोनों की हानि होती है अधिवक्ता अपने न्यायिक कार्य से भी विरत अनियमित रहता है उसका तो नुकसान होता ही है सीधा नुकसान मुवक्किल का भी होता है ।जो ऊर्जा संसाधन व पीड़ित पक्षकारो की बेहतरी अधिवक्ता हितों के संरक्षण पुलिस प्रशासन की निरंकुशता सरकार की नीतियों बेंच पर नियंत्रण के लिए योजित लक्षित अपव्यय होने चाहिए वह ऐसी अनावश्यक धन श्रम समय साध्य गतिविधियों में खर्च हो जाते हैं।
पिछले कुछ वर्षों से निर्वाचन प्रणाली में अजीब अराजकता बनी हुई है। सच्चे अधिवक्ता हितों से इतर निजी महत्वाकांक्षा लोकएष्णा वित्तऐष्णा इसमें एक कारण है इसमें जातीय x-factor भी काम कर रहा है।कुछ भी हो बार की निर्वाचन प्रणाली में कुछ धन पशुओं स्वार्थी आसुरी तत्वो द्वारा संक्रमण फैला दिया गया है लेकिन ऐसी कोई समस्या नहीं जिसका समाधान ना हो इसके लिए सोशल एंटीबायोटिक्स तैयार करना पड़ेगा। कुछ पवित्र अंतःकरण के स्वतंत्र निष्पक्ष साहसी अधिवक्ताओं का यह परम दायित्व कर्तव्य बनता है वह सादगी से आदर्श नैतिकता की सीमाओं में चुनाव कार्य को संपादित कराये। महिला अधिवक्ता भी अपना कर्तव्य समझे समाधान में भागीदार बने समस्या में नहीं। नाम की ही नहीं काम की आदर्श आचार संहिता बनाएं जो अधिवक्ताओं की वोटर सूची का ही परीक्षण न करें अनैतिक अवैध खर्च को खत्म कराएं पिछले कुछ वर्षों से निर्वाचन प्रणाली में अजीब अराजकता बनी हुई है। सिजनल सार्वजनिक नशाखोरी का अड्डा बार ने बने। पूर्व जगत में कानून के पिता माने जाने वाले भारतीय विधि शास्त्र के जनक ‘महर्षि मनु’ ने शराब व व्यसनो की निंदा की है। इतना ही नहीं पश्चिम में कानून के पिता माने जाने वाले दुनिया के शीर्ष विधि शास्त्री सिसरो बेंथम,मांटेग्यू अधिवक्ता के विषय में नैतिकता सादगी के सबसे बड़े हिमायती थे…. जहां कोई रास्ता ना सुझे वहाँ आत्मा की आवाज से रास्ता तैयार करना चाहिए… शर्त यह है आत्मा पवित्र हो। सभी की आत्मा पवित्र भी नहीं हो सकती लेकिन कुछ एक पवित्र आत्मा है अपने साहसी आचरण से अपवित्र आत्माओं को नियंत्रण में रख सकती हैं।
अवसर वादियों को लूटने का सोचने का अवसर ही ना दें। निर्वाचन प्रणाली के संबंध में उच्च पवित्र आदर्श मानदंड स्थापित करने होंगे। यदि इस सब पर लगाम नहीं लगाई गई तो एक समुदाय बर्बाद हो जाएगा… अपनी बर्बादी का है खुद ही जिम्मेदार होगा। खामियाजा मुफ्त खोर अवसरवादी भी उठाएंगे जब कभी उन पर सामाजिक अधिवक्ता पेशे में या व्यक्तिगत जीवन में कोई वैधानिक परेशानी गतिरोध आएगा तब अशक्त अयोग्य बार उसकी मदद नहीं कर पाएगी।

गौतम बुध नगर बार एसोसिएशन के चुनाव को छोड़कर प्रदेश की अन्य बार में आज भी चुनाव बेहद सादगी शिष्टता सौहार्द से मूंगफली रेवड़ी बाटकर निपटा लिया जाता है। गौतम बुध नगर अधिवक्ता एसोसिएशन ने भी यही आदर्श प्रणाली पुनः स्थापित होनी चाहिए… आखिर अभी इस बार की उम्र कितनी है अभी इसने अपने जीवन के 30 बसंत भी नहीं देखे।

आर्य सागर खारी✍✍✍

(लेखक स्वतंत्र कलमकार है साथ ही विधि के क्षेत्र में पेशेवर शैक्षणिक योग्यता रखता है। लेख में कथित विषय वस्तु लेखक के स्वतंत्र चिंतन से उपजे है निजि है)

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