उत्तर कोरिया को परमाणु महशक्ति बनाने में जुटे किम जोंग उन को हल्के में नहीं लेना चाहिए

गौतम मोरारका

उत्तर कोरिया को परमाणु महशक्ति बनाने में जुटे किम जोंग उन को हल्के में नहीं लेना चाहिए
उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग उन ने दावा किया है कि उनका देश विश्व की सबसे शक्तिशाली परमाणु शक्ति बनना चाहता है। उनके इस ऐलान को अधिकतर लोगों ने गीदड़ भभकी के रूप में ही लिया है लेकिन इस सनकी शासक की हरकतों पर नजर डालें तो ऐसा लगता है कि इस ऐलान को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। उत्तर कोरिया ने अपना परमाणु कार्यक्रम तीन दशक पहले शुरू किया था। अब एक अनुमान के मुताबिक उसके पास 45 से 55 परमाणु हथियार बनाने के लिए पर्याप्त विखंडनीय सामग्री है। इतनी सामग्री से बनने वाले परमाणु बम की क्षमता लगभग 15 से 20 किलोटन की होगी। यहां आपको हम बताना चाहेंगे कि 1945 में हिरोशिमा को नष्ट करने वाले बम की क्षमता 15 किलोटन की थी। 15 किलोटन के बम से हिरोशिमा को कितना नुकसान पहुँचा था इससे सब वाकिफ हैं इसलिए सोचिये कि 20 किलोटन का बम कितना नुकसान पहुँचा सकता है।

हाल ही में इस प्रकार की भी रिपोर्टें आईं कि इस समय उत्तर कोरिया के पास पहले से दस गुना बड़े बम बनाने की क्षमता है। यही नहीं, उत्तर कोरिया की मिसाइल डिलीवरी प्रणाली भी बड़ी रफ्तार से आगे बढ़ रही है। इसके अलावा उत्तर कोरिया जिस तरह सभी अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का उल्लंघन करते हुए जापान के ऊपर से मिसाइलों का परीक्षण करता है, आतंक को भड़काता है और आकस्मिक युद्ध का जोखिम पैदा करता है, उसके प्रति दुनिया को सचेत रहने की जरूरत है।

उत्तर कोरिया को दुनिया ने उसके लापरवाह और निरंकुश रवैये के कारण भले अलग-थलग कर रखा है लेकिन अब जरूरत है कि उसे हथियार नियंत्रण वार्ताओं और अंतर्राष्ट्रीय संवाद के मंचों पर लाया जाये। यदि ऐसा नहीं किया गया तो उस क्षेत्र में परमाणु हथियारों की दौड़ बढ़ने का अंदेशा बना रहेगा। लेकिन बातचीत के दौरान भी उत्तर कोरिया पर नजर बनाये रखनी होगी क्योंकि इस देश का इतिहास विश्व को धोखा देने का रहा है।

हम आपको याद दिला दें कि उत्तर कोरिया ने 1985 में परमाणु हथियार अप्रसार (एनपीटी) संधि पर प्रतिबद्धता जताई थी। गौरतलब है कि इसके तहत सदस्य देशों में स्वतंत्र पर्यवेक्षक संधि के अनुपालन पर नजर रखते हैं साथ ही एनपीटी पर हस्ताक्षर करने वाले देश हथियारों पर नियंत्रण और कटौती के लिए भी प्रतिबद्ध होते हैं। लेकिन उत्तर कोरिया एनपीटी संधि पर सहमत होने के बावजूद दुनिया को धोखा देता रहा। सन् 1993 से लेकर अब तक उत्तर कोरिया ने अमेरिकी राष्ट्रपतियों और विश्व समुदाय को गुमराह किया और धोखा दिया।

उल्लेखनीय है कि परमाणु क्षमता हासिल करने के बाद उत्तर कोरिया साल 2003 में एनपीटी से बाहर आ गया था और 2006 में उसने पहला परमाणु विस्फोट कर दुनिया को चौंका दिया था। इस कदम के जरिये उत्तर कोरिया ने वैश्विक शक्ति संतुलन तो बिगाड़ा ही साथ ही दुनिया के लिए बड़ा खतरा भी पैदा कर दिया। हैरत की बात यह रही कि उत्तर कोरिया पर लगाम लगाने की विश्व समुदाय की कोई भी पहल कारगर नहीं हुई। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया पर तमाम तरह के प्रतिबंध लगाते हुए फरमान जारी किये कि उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार और संबंधित मिसाइल डिलीवरी प्रणाली को विकसित करना बंद करना होगा। लेकिन उत्तर कोरिया नहीं माना। 2006 में परमाणु परीक्षण के बाद से उत्तर कोरिया पर प्रतिबंधों के नौ दौर चले लेकिन उत्तर कोरिया टस से मस नहीं हुआ।

उत्तर कोरिया कैसे वर्षों से अमेरिकी राष्ट्रपतियों को धोखा देता रहा इसकी एक मिसाल डोनाल्ड ट्रंप भी बने। ट्रंप ने किम जोंग उन को सिंगापुर में वार्ता के लिए आमंत्रित किया और उत्तर कोरियाई अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचाने के लिए कई प्रस्ताव दिये, बदले में किम जोंग उन ने परमाणु कार्यक्रम से हटने का वादा किया लेकिन उल्टा उन्होंने परमाणु कार्यक्रम को और तेज कर दिया।

एक रिपोर्ट के अनुसार, जिस तेजी से किम अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे हैं उसको देखते हुए इस दशक के अंत तक, उत्तर कोरिया के पास 200 परमाणु बम हो सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो वाकई किम जोंग उन का उत्तर कोरिया को परमाणु महाशक्ति बनाने का सपना साकार हो जायेगा। यदि उत्तर कोरिया इसी रफ्तार से अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाता रहा तो जल्द ही उसके पास अमेरिका और रूस के पास मौजूद परमाणु बम भंडार से भी ज्यादा बड़ा भंडार होगा। उल्लेखनीय है कि अमेरिका और रूस के पास दुनिया के सभी परमाणु हथियारों का 90% हिस्सा है। इसके अलावा इस समय इज़राइल के पास 90, भारत के पास 160, पाकिस्तान के पास 165, ब्रिटेन के पास 225, फ्रांस के पास 300 से कुछ कम और चीन के पास 350 परमाणु बम होने का अनुमान है।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कोई देश कुछ भी कहे लेकिन यह बात सही है कि हर देश अपने हिसाब से निर्णय लेता है। अब जैसे परमाणु हथियारों के निषेध पर 2017 की संधि की बात ही कर लें तो दुनिया कहती है कि उत्तर कोरिया को इस पर हस्ताक्षर करने चाहिए लेकिन यह भी सत्य है कि अन्य मौजूदा परमाणु शक्ति संपन्न देशों में से किसी ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं। ऐसे में खतरा बढ़ाने का दोष सिर्फ उत्तर कोरिया को नहीं दिया जा सकता। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या उत्तर कोरिया की निरंकुशता को थामने के लिए उसे परमाणु क्लब का हिस्सा मान लेना चाहिए ? या उस पर से अप्रभावी प्रतिबंधों को समाप्त कर देना चाहिए? संभव है ऐसा करने से उत्तर कोरिया के तेवर शांत हो जायें।

यहां हम यह भी उदाहरण देना चाहेंगे कि कैसे साल 1999 में अमेरिका और कई अन्य देशों ने भारत और पाकिस्तान की ओर से परमाणु परीक्षण करने के बाद उनके खिलाफ प्रतिबंधों को लगाया और फिर हटा दिया। दोनों प्रतिद्वंद्वी देशों भारत और पाकिस्तान ने कभी भी एनपीटी को स्वीकार नहीं किया। इसी तरह इजराइल पर भी कभी परमाणु कार्यक्रम को लेकर किसी प्रकार के प्रतिबंध नहीं लगाये गये। ऐसे ही कई और भी उदाहरण हैं।

बहरहाल, यदि उत्तर कोरिया इसी तरह परमाणु कार्यक्रम पर आगे बढ़ता रहा तो क्षेत्र में परमाणु हथियारों की दौड़ का बढ़ना स्वाभाविक है। इतिहास बताता है कि भारत ने परमाणु बम बनाकर परीक्षण किया तो होड़ में पड़ कर पाकिस्तान ने भी ऐसा कर डाला। इजराइल ने ऐसा किया तो ईरान भी उसी राह पर चल पड़ा। उत्तर कोरिया बम बनाता रहा तो दक्षिण कोरिया, जापान और ताइवान भी इसे रास्ते पर चल पड़ें तो कोई हैरत नहीं होनी चाहिए।

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