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इतिहास के पन्नों से

भारत की 563 रियासतों का भारत में विलय और सरदार पटेल

उगता भारत ब्यूरो

भारत की आजादी के बाद सबसे बड़ी परेशानी सरकार के सामने देश में मौजूद विभिन्‍न रियासतों को देश में शामिल करना था। ये काम आसान भी था और मुश्किल भी। आसान इसलिए क्‍योंकि कुछ रियासतें खुद से भारत में शामिल होने की इच्‍छुक थीं तो कुछ इसके खिलाफ थीं। आजाद भारत में करीब 562 रियासतों को भारत में मिलाया गया था। इसके अलावा गोवा को लेकर सेना को बल का प्रयोग करना पड़ा था तो सिक्किम को कूटनीति के आगे घुटने टेकने पड़े थे। जम्‍मू कश्‍मीर, त्रिपुरा और मणिपुर भी इसी तरह से देश में शामिल हुए थे। इस काम को दो लोगों ने बखूबी अंजाम दिया था जिसमें पहला नाम देश के पहले गृह मंत्री वल्‍लभ भाई पटेल का है तो दूसरा नाम वीपी मैनन का है।

बिखरी हुई थी रियासतें
आजाद भारत से पहले देश कई रियासतों में बंटा हुआ था। इनमें से कई रियासतें पहले मुगलों के साथ फिर ब्रिटिश हुकूमत के साथ भी रहीं। कुछ ऐसी भी थीं जो लगातार विद्रोह का झंडा आजादी से पहले और बाद में भी बुलंर करे रखीं। इनमें से एक हैदराबाद की रियासत भी थी, जिसके विलय को लेकर खुद पटेल हैदराबाद पहुंचे थे। आजादी के बाद भारत में खुद से शामिल होने वाली रियासतों की बात करें तो इसमें बीकानेर, झारखंडी रियासत सबसे पहले इसमें शामिल हुई थी। भोपाल, त्रवंणकोर, हैदराबाद ने शुरुआत में भारत में शामिल न होने का ऐलान किया था, लेकिन बाद में इन्‍हें घुटने टेकने पड़े थे। भोपाल की रियासत के नवाब हमीदुल्‍लाह खान ने तो मुस्लिम लीग के साथ एक समझौता तक कर लिया था। इसके बाद में भोपाल के नवाब ने लार्ड माउंटबेटन के साथ भारत में शामिल होने को लेकर एक समझौता किया था।

इन रियासतों को असेंबली में मिली सीट

28 अप्रैल 1947 को बीकानेर, बडौदा, कोचीन, ग्‍वालियर, जयपुर, जोधपुर, पटियाला, रेवा को असेंबली में सीट दी गई थी। देश में बिखरी रियासतों को शामिल करने में पंडित जवाहरलाल नेहरू का एक बयान काफी खास रहा था। उन्‍होंने कहा था कि जो कोई रियासत भारत में शामिल नहीं होना चाहेगी उसको दुश्‍मन रियासत का दर्जा दिया जाएगा। भारत की सुरक्षा और समृद्धि के लिए ये जरूरी था कि बिखरी हुई रियासतों को एक ही जगह पर लोकतांत्रिक भारत के अंदर समाहित किया जाए। इसके लिए कूटनीति, राजनीति और बल का इस्‍तेमाल करने की भी छूट थी।

कुछ पर करना पड़ा बल प्रयोग

जूनागढ़, जैसलमेर रियासत ने भी भारत के साथ न जाने का मन बनाया था। लेकिन बाद में जूनागढ़ को देश में शामिल करने के लिए बल का प्रयोग करना पड़ा था। इसके बाद वहां का नवाब अपने परिवार के साथ पाकिस्‍तान भाग गया और जूनागढ़ को देश में शामिल कर लिया गया था। 13 सितंबर 1948 को हैदराबाद को भी भारत में शामिल करा लिया गया था। इसके लिए पटेल की कूटनीति बड़ी काम आई थी।
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