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पुस्तक समीक्षा

क्या हिन्दू इतिहास केवल पराजय का इतिहास है? सत्य जानने के लिए सावरकर जी को पढ़िए। अपना आत्मगौरव जगाए।


1 छह स्वर्णिम पृष्ठ। ₹400
2 हिन्दू पदपादशाही। ₹250
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1 छह स्वर्णिम पृष्ठ.

मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्राण हथेली पर रखकर जूझनेवाले महान् क्रांतिकारी; जातिभेद, अस्पृश्यता, अंधश्रद्धा जैसी सामाजिक बुराइयों को समूल नष्‍ट करने का आग्रह रखनेवाले स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने इस ग्रंथ में भारतीय इतिहास पर विहंगम दृष्‍टि डाली है। ‘छह स्वर्णिम पृष्‍ठ’ में हिंदू राष्‍ट्र के इतिहास का

प्रथम स्वर्णिम पृष्‍ठ है यवन-विजेता सम्राट् चंद्रगुप्‍त।

द्वितीय स्वर्णिम पृष्‍ठ यवनांतक सम्राट् पुष्यमित्र।
तृतीय स्वर्णिम पृष्‍ठ सम्राट् विक्रमादित्य।
चतुर्थ स्वर्णिम पृष्‍ठ हूणांतक राजा यशोधर्मा।
पंचम स्वर्णिम पृष्‍ठ मराठों द्वारा मुसलिम शासकों के साथ निरंतर संघर्ष और उसमें मुसलिम सत्ता के अंत।
अंतिम स्वर्णिम पृष्‍ठ है अंग्रेजी सत्ता को उखाड़कर स्वातंत्र्य प्राप्‍त करना।
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2-हिन्दू पद पादशाही
मुग़ल शासक तलवार के बल पर पूरे हिंदू समाज को मुस्लिम बनाना चाहते थे। अधिकतर बड़े—छोटे हिंदू राजाओं को तलवार के ज़ोर पर या लालच दे कर अपने साथ मिला चुके थे। ऐसे में ये कल्पना भी करना कि कोई उस इस्लामी ताक़त के ख़िलाफ़ अपना राज्य खड़ा करेगा कल्पनातीत माना जाता। शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित हिंदू पद पादशाही तथा 1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम पर उसके असर को वीर सावरकर ने लिखा है।
जिस हिंदू पद पादशाही की स्थापना छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी उस की परिणति 1761 में दिल्ली के तख़्त और ताज से मुग़लिया परचम उखाड़ कर उनके वंशजों भाऊ और विश्वसराव ने की। संभवत: 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय हिंदू मुस्लिम एकता का रास्ता भी वहीं से निकला। शिवाजी महाराज का जन्म 1627 ईस्वी में हुआ। उनके जन्म के साथ ही एक नए युग की शुरुआत हुई। अपने जीवन में छत्रपति शिवाजी और समर्थ गुरु रामदास ने एक ऐसे राज्य की नींव रखी जो वास्तव में “सुशासन” था। परंतु इस “सुशासन” समझना आसान नहीं है, तो भी जिन परिस्थितियों में हिंदू पद पादशाही तथा इस सुशासन की स्थापना हुई वह प्रशंसनीय तथा उल्लेखनीय है। पिछले लगभग 900 साल से भारत छोटे छोटे राज्यों बँटा रहा या कोई न कोई विदेशी शक्ति भारत पर शासन करती रही।
शिवाजी तथा समर्थ रामदास ने सुशासन की स्थापना के बाद क्रमशः 1680 तथा 1681 में देह का त्याग किया। इस राज्य का अंत ऐसा लगता था इनके साथ ही हो जाएगा, परंतु यह नहीं हुआ। इन दोनो के जाने के बाद भी छोटे से प्रांत से प्रारम्भ हुआ प्रभाव व कार्य क्षेत्र भी लगातार बढ़ता गया। विचित्र बात ये है कि कहीं भी इतिहास में इस सब की चर्चा नहीं है। शिवाजी के बाद संभाजी को उत्तराधिकारी बनाया गया। औरंगज़ेब उस समय जीवित था।

संभाजी की गिरफ़्तारी तथा उसके बाद निर्मम हत्या इतिहास में दर्ज है। उसे मुसलमान बनने को कहा गया। मना करने पर पहले आँखें निकली गयीं, फिर जीभ काटी गयी और अंत में शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए गए। इससे पूरे महाराष्ट्र मंडल में दुःख और क्षोभ का वातावरण बन गया। जिस प्रकार संभाजी का बलिदान हुआ, उसने एक क्रांति को जन्म दिया। तदुपरांत शिवाजी के दूसरे पुत्र राजा राम का राज्याभिषेक किया गया। खंडो बलाल उसके पालक नियुक्त हुए। छत्रपति शिवाजी के विषय में तो फिर भी सही या ग़लत कुछ तो हमारी पाठ्यपुस्तकों में बताया—पढ़ाया जाता है, परंतु उसके बाद जिस प्रकार उत्तर की मुग़लिया सल्तनत, बुंदेलखंड के आस पास नजीबजंग, दक्षिण में आदिलशाह और निज़ामशाही से मराठों ने चौथ या सरदेसाई वसूली की वह जनमानस की जानकारी में ही नहीं है। शिवाजी के राज्याभिषेक के समय अधिकार क्षेत्र में केवल एक प्रांत था, परंतु उनके उत्तराधिकारी राघोबा दादाजी के आधिपत्य में पंजाब की राजधानी लाहौर में धूमधाम से मराठे प्रविष्ट हुए और उस से आगे सिंध के किनारे तक पहुंचे।

शिवाजी के द्वारा स्थापित राज्य को एक के बाद एक शूरवीर सरदार मिलते रहे और इसकी एक अखंड परंपरा पानीपत की तीसरी लड़ाई बाद तक चलती रही। खंडो बलाल, धाना जी, संताजी, बाला जी, बाज़ीराव भाऊ, मल्हार राव, दत्ताजी शिंदे, माधव राव, परशुराम पन्त और बापू जी जैसे महान व्यक्तित्व क्रमशः अपने आपको इस राष्ट्र तथा धर्म की बलिवेदी पर चढ़ाते रहे। वास्तव में हिंदू पद पादशाही का इतिहास शिवाजी के देह त्याग के बाद एक नए स्वरूप में प्रारम्भ होता है। औरंगज़ेब की सशक्त, सुसंगठित तथा सुसज्जित सेना के आगे मराठों की शक्ति तुच्छ थी तो भी उन्होंने अद्भुत युद्ध कला जिसे “गानिमि काबा” कहते हैं ईजाद की और इस युद्ध कला से मुग़लों को खूब छकाया और युद्ध कौशल के कारण मुग़लों को ही जगह से दुम दबा कर भागना पड़ा। तीन लाख की सेना लेकर दक्षिण विजय को निकाले औरंगजेब का निराश हो कर 1707 में अहमद नगर में इंतकाल हो गया। मुग़लों से खानदेश, गोंडवाना, बरार, गुजरात के क्षेत्रों और दक्षिण के छह सूबों सहित मैसूर, त्रावणकोर आदि रियासतों को अपने आधिपत्य में लेकर हिंदू साम्राज्य स्थापित हुआ। इन सब को एक सूत्र में बांध कर महाराष्ट्र मंडल को वास्तविक हिंदू पद पादशाही बनाया।

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