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कविता

गीता मेरे गीतों में , गीत 53 ( गीता के मूल ७० श्लोकों का काव्यानुवाद)

जय – विजय करता हूँ मैं

तर्ज :- कह रहा है आसमां ….

उत्पन्न करता सारे जग को और भरण करता हूँ मैं।
अंत में प्रलय मैं करता , मरण भी करता हूँ मैं ।।

‘वासुदेव’ मुझको ही कहा है , संसार का हूँ आसरा।
सुख – संपदा देता हूँ सबको , चिंताएं हरता हूँ मैं ।।

आपदाएं जितनी आतीं , संसार में मेरे भक्त पर।
बिन बताए भक्त को , विपदाओं को हरता हूँ मैं।।

जो भी मुझको भज रहे हैं उनका मुझे सब ध्यान है।
वे निश्चिंत हो भजते रहें , प्रबंध भी करता हूँ मैं।।

आवास भोजन वस्त्र की जो भी जरूरत आ पड़े ।
हर भक्त की पूरी करूं और निश्चिंत भी करता हूँ मैं।।

लहलहाती फसल हो और किसान भी प्रसन्न हो।
समय से पहले सब व्यवस्था ,उनकी भी करता हूँ मैं।।

‘वासुदेव’ मेरा नाम है, और वसुधा मेरा परिवार है।
परिवार खुशियों से भरा हो, आनंद भी करता हूँ मैं।।

पांडवों में एक ‘अर्जुन’ तू विभूतियों से है लदा।
मैं भी अर्जुन पांडवों में , ये घोषणा करता हूँ मैं।।

मुझमें तू और तुझमें मैं हूँ, तू समझ इस राज को।
जय हमारी होगी निश्चित, तुझसे वचन करता हूँ मैं।।

हीनता के भाव अर्जुन ! मस्तिष्क से तू दूर कर।
वीरता के भाव तुझमें फिर से ही भरता हूँ मैं।।

ज्ञान का है नाम – बुद्धि , जीवात्मा का गुण यह ।
सब स्रोतों का मैं स्रोत हूँ ,और ज्ञान भी करता हूँ मैं ।।

मैदान में तेरे सामने जो योद्धा गण आकर खड़े।
मर चुके हैं सारे ही यह बात भी कहता हूँ मैं।।

तूफान भी आते हैं अर्जुन ! जब युद्ध जाता हो लड़ा।
ढल जाएंगे तूफान सारे जय – विजय करता हूँ मैं।।

उफनती नदिया कह रही – नामोनिशान दूंगी मिटा।
झाड़ियों और दरख्तों की , रक्षा भी करता हूँ मैं ।।

वेद – मार्ग पर चलें , संसार की सभी जातियां।
वेद के द्वारा ये अर्जुन ! संकेत भी करता हूँ मैं।।

यह गीत मेरी पुस्तक “गीता मेरे गीतों में” से लिया गया है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित की गई है । पुस्तक का मूल्य ₹250 है। पुस्तक प्राप्ति के लिए मुक्त प्रकाशन से संपर्क किया जा सकता है। संपर्क सूत्र है – 98 1000 8004

डॉ राकेश कुमार आर्य

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