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प्रधानमंत्री ने छत्रपति शिवाजी को सम्मान देते हुए भारतीय नौसेना को दी नई पहचान और नया झंडा

सूर्य प्रकाश

शिवाजी का एक बड़ा काम यह था कि उन्होंने अपने दौर में देश को समुद्री ताकत बनाने की नींव रखी थी। अब उनकी छाप नौसेना के ध्वज पर भी दिखेगी, जो अंग्रेजों के प्रतीक चिह्म सेंट जॉर्ज क्रॉस की जगह लेगा।
कैसे शिवाजी ने रखी थी भारत को समुद्री ताकत बनाने की नींव, अब नौसेना के झंडे पर उनकी छाप ।

मराठा शासक छत्रपति शिवाजी को मुगलों से जंग के लिए जाना जाता है। उन्होंने हिंद स्वराज्य की स्थापना की थी और औरगंजेब को कड़ी चुनौती देते हुए उत्तर भारत तक ही सीमित रहने को मजबूर कर दिया था। लेकिन इसके अलावा भी भारत के सैन्य और राजनीतिक इतिहास में उनके बड़े योगदान रहे हैं। इनमें से ही एक बड़ा काम यह था कि उन्होंने अपने दौर में देश को समुद्री ताकत बनाने की नींव रखी थी। अब उनकी छाप नौसेना के ध्वज पर भी दिखेगी, जो अंग्रेजों के प्रतीक चिह्म सेंट जॉर्ज क्रॉस की जगह लेगा। इस मौके पर पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज तक देश की नौसेना के झंडे पर गुलामी की छाप थी। लेकिन अब उससे मुक्ति मिल गई है और महाराज छत्रपति शिवाजी से प्रेरित ध्वज उसे मिला है।

कैसी थी छत्रपति शिवाजी की नौसेना

महाराज छत्रपति शिवाजी ने 1650 के आखिरी दौर में नौसेना का गठन किया था। उन्होंने यह महसूस किया था कि भारत की समुद्री सीमा की क्या अहमियत हो सकती है, जो आज के दौर में 7,000 किलोमीटर लंबी है। चोल साम्राज्य के बाद ज्यादातर शासकों ने इसे नजरअंदाज किया था 17वीं शताब्दी में पुर्तगालियों और अंग्रेजों ने समुद्र के रास्ते भारत में एंट्री की थी। शिवाजी ने भी डच और पुर्तगालियों को देखते हुए अपनी नौसेना बनाई थी। उन्होंने विदेशियों से ही बड़ी नावों और जहाजों को बनाने की तकनीक सीखी थी। कहा जाता है कि शिवाजी जब मजबूत दौर में थे, तब उन्होंने न सिर्फ समुद्री सीमाओं को मजबूत किया बल्कि 60 जहाज और 10,000 नौसैनिकों की भी तैनाती कर रखी थी। शिवाजी ने 1674 में राज संभाला था, लेकिन वह उससे करीब एक दशक पहले से ही नौसेना की फ्लीट तैयार करने में जुटे थे।

शिवाजी की नौसेना से मुगल शासकों में भी था खौफ

छत्रपति शिवाजी ने विदेशियों से काफी कुछ समझने की कोशिश की थी कि कैसे समुद्र में ताकत को बढ़ाया जाए। लेकिन उनके प्रयास इतने मजबूत थे कि मुगलों को डर लगने लगा था। उन्हें लगता था कि कहीं जल परिवहन का इस्तेमाल करते हुए शिवाजी इतने मजबूत न हो जाएं कि उनके क्षेत्र में आ जाएं और उन्हें चुनौती देने लगें। शिवाजी ने 1664 में सूरत के बंदरगाह को जीत लिया था, जो उस दौर में मुगल कप्तान इनायत खान द्वारा चलाया जा रहा था। इसके बाद उन्हें लगा कि मालाबार कोस्ट पर डच और कोंकण में पुर्तगाली अपना एकाधिकार जमाने का प्रयास कर रहे हैं। इसके अलावा कर्नाटक में भी मिरजान, होन्नावार, भटकल, मेंगलुरु जैसे पोर्ट्स से भी चावल और मसालों का कारोबार होता था।

छत्रपति की नौसेना में थे दो मुस्लिम अफसर

शिवाजी ने भले ही नौसेना का गठन किया था, लेकिन उसका स्वरूप आज के जैसा नहीं था। उनकी सेना में एक एडमिरल रैंक का अधिकारी था, लेकिन उसमें हाइरेरकी सिस्टम नहीं था। शिवाजी की नौसेना में दो मुस्लिमों को भी टॉप रैंक पर रखा गया था। इन अधिकारियों के नाम थे दौलत खान और दरया सारंग वेंतजी।

नौसेना के ध्वज पर क्या है शिवाजी महाराज का प्रतीक

अब जो नौसेना का नया ध्वज पीएम मोदी की ओर से अनावरण किया गया है, उसके ऊपरी कैंटन पर राष्ट्रीय ध्वज है। राष्ट्रीय प्रतीक के साथ एक नीला अष्टकोणीय आकार भी है। यह नौसेना के आदर्श वाक्य के साथ ढाल पर लगाया जाता है। नौसेना ने नए ध्वज को प्रदर्शित करते हुए वीडियो में कहा, ‘जुड़वां सुनहरी सीमाओं के साथ अष्टकोणीय आकार महान भारतीय सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज की मुहर से प्रेरणा लेता है, जिनके दूरदर्शी समुद्री दृष्टिकोण ने एक विश्वसनीय नौसैनिक बेड़े की स्थापना की।’ नौसेना ने कहा, ‘छत्रपति शिवाजी महाराज के बेड़े में 60 युद्धपोत और लगभग 5,000 पुरुष शामिल थे। शिवाजी महाराज के शासनकाल के दौरान बढ़ती मराठा नौसैनिक शक्ति बाहरी आक्रमण के खिलाफ समुद्र तट को सुरक्षित करने वाली पहली सेना थी।’

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