Categories
महत्वपूर्ण लेख

राष्ट्रवाद की शक्तियों को मजबूत करने की जरूरत

सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित करने के लिए अजमेर जागरण को आंदोलन में बदलना ज़रुरी है।

गोस्वामी तुलसीदास का एक दोहा मुझे याद आ रहा है। यह दोहा दोहावली में संकलित है। दोहा इस प्रकार है…

लही आंख कब आंधरे बांझ पूत कब ल्याय ।
कब कोढ़ी काया लही जग बहराइच जाय ।।

इसका अर्थ है कि अंधे को कहाँ आंख मिली, बंध्या स्त्री तो पुत्रवती हुई नहीं कोढ़ी को सुंदर काया भी नहीं मिली, फिर भी जनता अंध विश्वास के मारे बहराइच जाती है। है तो यह अंध विश्वास पर चोट पर इसके पीछे ऐतिहासिक संदर्भ है। महमूद गजनवी का भांजा सालार मसूद ने भारत को इस्लामी राज्य बनाने के उद्देश्य से बहुत बड़ी सेना एकत्र कर जिसकी संख्या एक लाख बताई जाती है। भारत पर आक्रमण कर दिया और जीतते जीतते बहराइच तक आ पहुंचा। उस समय श्रावस्ती के राजा थे सुहेलदेव। उन्होंने कहा जाता है कि प्रयत्न करके 22 राजाओं की सहायता से सालार मसूद की सेना पर आक्रमण किया और जीत हासिल की। युद्ध में सालार मसूद मारा गया। इसके बाद 175 वर्षों तक किसी इस्लामी शासक को भारत पर आक्रमण करने की हिम्मत नहीं हुई। पर इसके बाद मुहम्मद गोरी ने आक्रमण किया। हिंदुओं में आपसी फूट के कारण उसे सफलता मिली।

कालांतर में बहराइच में सालार मसूद को ग़ाज़ी की उपाधि दी गई क्योंकि वह उनके अनुसार काफिरों से लड़ते हुए मारा गया था। फिर उसकी मज़ार बना दी गई। वहां लोग चादर चढ़ाने लगे, मन्नत माँगने के लिए जाने लगे। जाने वालों में आत्महीन हिंदुओं की ही संख्या अधिक थी। गोस्वामी तुलसीदास अयोध्या स्थित तुलसी उद्यान में रहते थे और उसी के पीछे से बहराइच का रास्ता जाता था। तुलसीदास जी देखते थे और दुखी होते थे। उपर्युक्त दोहा उसी दुःख से उत्पन्न हुआ है कि हिन्दू आक्रांता को ही पूजते हैं।

अजमेर का किस्सा भी इसीसे मिलता जुलता है। ख्वाजा कहे जाने वाले मुईनुद्दीन चिश्ती के आमंत्रण पर मुहम्मद गोरी ने भारत पर आक्रमण किया। उसी के कहने पर पुष्करणा ब्राह्मणों की हत्या की और पुष्कर झील को अपवित्र किया। उसी चिश्ती की कब्र पर दरगाह बनी है। और वहां भी हिन्दू ही सर्वाधिक संख्या में मन्नत मांगने और चादर चढ़ाने जाते हैं। यह घोर अंध विश्वास का प्रतीक है और हिंदुओं की आत्महीनता और आत्म विस्मृति का प्रबल उदाहरण है। और अजमेर के चिश्तियों के बयान देखिए कैसे जहरीले हैं और कैसे वे हिंदुओं पर व्यंग्य करते हैं धमकी देते हैं। वे हिंदुओं को कहते हैं कि तुम तो यहां मत्था टेकने आते हो, हमने तो इस देश पर राज किया है, हमें मत छेड़ो।

हिंदुओं ने एक छोटा प्रयास किया कि ऐसे स्थलों पर नहीं जाना चाहिए। सेक्युलर दिखने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस छोटी घटना से सबसे अधिक हाहाकार वामपंथी मीडिया में है कि अजमेर का आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है। हिंदुओं में शत्रुबोध जागृत हो रहा है। इस छोटे जागरण को आंदोलन में बदलना चाहिए। इसका तरीका शांतिपूर्ण होना चाहिए, यदि साम्प्रदायिक सौहार्द स्थापित करना है तो यह उपाय करना जरूरी है। ऐसे देश भर में जितने स्थान हैं, सबके साथ शांतिपूर्ण ढंग से यही व्यवहार करना चाहिए। इसका दायरा आगे बढ़ाना चाहिए।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version