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संपादकीय

शरिया लागू करने की मांग सरकार को माननी चाहिए


अजमेर की दरगाह पर हिंदू सबसे अधिक चादर चढ़ाते हैं। धार्मिक पाखंड और अंधविश्वासों में हिंदू का जितना विश्वास है उतना किसी अन्य मतावलम्बी का नहीं है। सैकड़ों वर्षो से इस दरगाह पर चादर चढ़ाते हुए हिंदू ने भरसक प्रयास कर लिया कि किसी प्रकार से सर्व संप्रदाय समभाव का राज्य भारत में स्थापित हो, पर ऐसा हुआ नहीं। दरगाह के बनाने वालों ने जिस नियत और जिस सोच के आधार पर पिछले सैकड़ों वर्षो से काम किया है, उससे ऐसा होना भी नहीं था। अब जब दरगाह से हिंदू विरोध और देश में आग लगाने की वीडियो वायरल हुई है तो हिंदू को कुछ समझ में आया है कि वह जिस दिशा में कार्य करता रहा है, वह सब व्यर्थ गया।
1947 से पहले जिस प्रकार मुस्लिम कट्टरता अपना नंगा नाच दिखा रही थी और स्वामी श्रद्धानंद जैसे महान क्रांतिकारियों को अपने निशाने पर लेकर समाप्त कर रही थी, उसकी वही सोच आज भी उसी पैनी धार के साथ काम कर रही है। अब से लगभग 100 वर्ष पहले स्वामी श्रद्धानंद की हत्या धार्मिक उन्माद के आधार पर एक इस्लामिक कट्टरवादी ने की थी, तब से लेकर आज तक परिस्थितियों में कुछ भी परिवर्तन नहीं आया है।
इस्लामिक कट्टरता में कमी ना आकर और अधिक पैनापन ही आया है ,जो कि चिंता का विषय है।
उसी का परिणाम है कि देश में आज भी इस्लामिक कट्टरपंथी शक्तियां दिन प्रतिदिन बलवती होती जा रही हैं। हिंदुओं के लिए नफरत का परिवेश बनाने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है।
अब बड़ी तेजी से मुस्लिम व्याख्याकार टी0वी0 चैनलों के माध्यम से देश के समाज को इस प्रकार भ्रमित कर रहे हैं कि देश का सांप्रदायिक माहौल पिछले 8 वर्ष में अधिक बिगड़ा है।
ऐसा कहकर वे देश के सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने के लिए मोदी सरकार को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास करते हैं। जबकि आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि मोदी सरकार के सत्ता में आने से पहले भी इस देश में दर्जनों इस्लामिक आतंकवादी संगठन काम कर रहे थे। मोदी सरकार ने तो इन इस्लामिक कट्टरपंथी शक्तियों और संगठनों पर किसी ना किसी प्रकार से शिकंजा कसने का काम किया है। बस, मोदी सरकार का इस प्रकार शिकंजा कसना ही इन्हें देश के सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने जैसा लगता है।
जिस प्रकार की देश विरोधी परिस्थितियां इस समय इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बनाई हैं ऐसी परिस्थितियों में ही देश का 1947 में बंटवारा हुआ था। नफरत की आग को सुलगाकर फिर कुछ इस्लामिक कट्टरपंथी देश के विभाजन की तैयारी कर रहे हैं। यद्यपि वह यह भूल जाते हैं कि आज का भारत 1947 का वह भारत नहीं है जिसने असहाय होकर अपना विभाजन स्वीकार कर लिया था। आज एक स्वतंत्र, संप्रभु और निर्भीक भारत है। जो अपने अस्तित्व की रक्षा करना जानता है और साथ ही उसे अपनी सांस्कृतिक परंपराओं के निर्वाह में भी अब किसी प्रकार का संकोच नहीं है। वह अपने धर्म, संस्कृति और अपने इतिहास की परंपराओं को लेकर 1947 की अपेक्षा बहुत अधिक गंभीर है। देश का हिंदू मानस सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता है , सबके विकास को भी वह अपना संकल्प मानता है, परंतु यदि कोई भी कहीं भी रोड़ा बनेगा या साथ बढ़ते कदमों को रोकने का प्रयास करेगा तो वह देश के कानून के माध्यम से उससे निपटने के लिए भी तैयार है।
“सर तन से जुदा” का नारा लगाना भारत के तथाकथित छद्म धर्मनिरपेक्ष स्वरूप की भावना के विपरीत तो है ही साथ ही संविधान और कानून की मर्यादाओं को भी तार-तार करने वाला है। इस प्रकार के नारे लगाने का अभिप्राय है कि ऐसे नारे लगाने वालों का संविधान और कानून के राज में किसी प्रकार का कोई विश्वास नहीं है। चाहे किसी भी धर्म की मान्यताएं या धर्म का प्रतीक कोई भी महापुरुष क्यों न हो सभी इस देश में एक ही कानून और एक ही संविधान से शासित होते हैं। इसलिए देश के वास्तविक पंथनिरपेक्ष स्वरूप का तकाजा यही है कि सब मर्यादित रहकर एक दूसरे के धार्मिक पर्व त्योहार और महापुरुषों का सम्मान करना सीखें। देश के पंथनिरपेक्ष स्वरूप का अर्थ किसी प्रकार की अनुशासनहीनता को सहन करना नहीं है बल्कि सभी शासित और अनुशासित होकर एक दूसरे के विकास में सहयोगी और सहभागी बनें, इसका यही अर्थ है।
वास्तव में अजमेर की दरगाह का इतिहास पहले दिन से ही हिंदू समाज के प्रति असहिष्णुता का रहा है। यद्यपि हिंदू के द्वारा अपने धार्मिक अंधविश्वासों को प्रकट करते हुए इस दरगाह पर बहुत सारी चादरें चढ़ाई गई हैं परंतु उनका कोई लाभ नहीं हुआ।
इस दरगाह की सच्चाई अब धीरे-धीरे लोगों के सामने आ चुकी है। हमें यह भी पता होना चाहिए कि दरगाह पर जिन लोगों का कब्जा रहा है उनकी सोच हिंदू विरोधी रही है।
बात को थोड़ा सा हम दूसरी ओर घुमाते हैं। नवाब बहादुर यार जंग जो कि इत्तेहादुल मुस्लिमीन का अध्यक्ष रहा है, उसने सन 1929 में हैदराबाद रियासत में तबलीग का कार्य आरंभ किया था। तब उसने एक भाषण में कहा था कि इस्लाम ने हर एक मुसलमान को यह जिम्मेदारी दी है कि वह गैर इस्लामियों को इस्लाम में सम्मिलित करें। हिंदू हमारा शिकार है और हम मुसलमान शिकारी हैं। हिंदुओं का शिकार करना हमारा हक बनता है। …अल्लाह का हुक्म है कि इन काफिरों को मुसलमान बनाओ। अगर नहीं बने तो उनका सर कलम कर दो । इस्लाम में काफिरों को जिंदा रहने का हक नहीं है।( संदर्भ लेखक डॉ चंद्रशेखर लोखंडे हैदराबाद मुक्तिसंग्राम का इतिहास पृष्ट – 115)
वास्तव में तबलीगी इत्तेहादुल मुस्लिमीन या मुस्लिम लीग या इस्लाम के अन्य सामाजिक राजनीतिक या आतंकवादी संगठनों का उद्देश्य केवल एक है कि हिंदुस्तान में हिंदुओं को रहने का कोई हक नहीं है। जब जब भी कोई कन्हैया लाल जैसी घटनाएं की जाती हैं तो बड़ी संख्या में इस्लाम के उलेमा, व्याख्याकार और शांति के दूत निकलकर बाहर आते हैं जो कहते हैं कि इस प्रकार की घटनाओं का इस्लाम में कोई स्थान नहीं है। वास्तव में उनका इस प्रकार का राग अलापना हिंदू को प्रतिशोध से रोककर शांत करना होता है। एक प्रकार से वह ऐसा करके अपने लोगों को थोड़ी देर शांत रहकर फिर दूने उत्साह से कार्य करने की प्रेरणा देते हुए दिखाई देते हैं। क्या इस प्रकार की सोच से राष्ट्र का निर्माण हो सकेगा? हमारा मानना है कि ऐसी सोच से कदापि राष्ट्र का निर्माण नहीं हो सकता। नियत में खोट लेकर और बुरे कार्यों की ओट लेकर आप बहुत देर तक देश को धोखा नहीं दे सकते।
हिंदुओं की पवित्र कमाई से दरगाह पर जिस प्रकार चढ़ावा चढ़ाया जाता है उससे दरगाह से जुड़े कितने ही लोगों का जीवन यापन हो रहा है। बड़ी संख्या में हिंदुओं के कारण मुसलमानों के परिवार पल रहे हैं। हिंदू की उदारता पर तनिक भी विचार न करते हुए दरगाह के खादिम द्वारा जिस प्रकार का संदेश दिया गया वह दुर्भाग्यपूर्ण है। क्या ही अच्छा होता कि दरगाह के प्रशासक मंडल के अन्य सदस्य या पदाधिकारी इस प्रकार के बयान की निंदा करते हुए हिंदुओं को यह भरोसा दिलाते कि हम सब उनके साथ हैं और उनके प्रति कृतज्ञ भी हैं तो स्थिति दूसरी होती। यह लोग सामूहिक रूप से खादिम को कानून के हवाले करते और देश में भाईचारे का माहौल बनाने के प्रति अपनी निष्ठा प्रकट करते।
अपनी हिंदू विरोधी मानसिकता का परिचय देते हुए दरगाह की अंजुमन कमेटी के सचिव सरवर चिश्ती ने हाल ही में हिंदुओं का आर्थिक बहिष्कार करने की बात कहते हुए मुसलमानों को भड़काने का प्रयास किया। नूपुर शर्मा के बयान के समर्थन में हिंदू समाज द्वारा निकाले गए जुलूस के बाद सरवर चिश्ती ने हिंदू दुकानदारों को निशाने पर लेते हुए मुसलमानों से मांग की कि हिंदुओं से एक रुपये का भी धंधा मत करो और इन्हें तरसा दो। केवल इतना ही नहीं सरवर चिश्ती का एक और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था जिसमें वह “हिंदुस्तान को हिलाने की बात” कहते दिख रहा था। इस प्रकार की सारी गतिविधियां भारत की संवैधानिक मशीनरी को भंग करने के लिए की जा रही हैं। आतंकवादी और देश विरोधी लोग खुलेआम यह धमकी दे रहे हैं कि नबी की शान में जिस प्रकार गुस्ताखी की जा रही है उससे अब देश में ऐसा आंदोलन खड़ा किया जाएगा कि सारा हिंदुस्तान हिल जाएगा। इस प्रकार की धमकियों को देना और लोगों के सर कलम करने को इस्लाम के मुल्ले मौलवी मुसलमानों का संविधाननेतर अधिकार मानते हैं। अब कल्पना कीजिए कि यदि हिंदू भी अपने देवी-देवताओं के अपमान पर इसी प्रकार बेकाबू होकर सड़कों पर आ गया तो क्या होगा? वास्तव में मुसलमानों के नेताओं का स्वतंत्रता पूर्व से ही यह मानना रहा है कि भारतवर्ष में मुसलमान चाहे जो करें उन्हें करने दिया जाए और हिंदू एक भेड़ बनकर धर्मनिरपेक्षता के नाम पर चुपचाप अपने आप को मुंडवाती रहे।
यह एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि उदरयपुर में हुई कन्हैया लाल की नृशंस हत्या के तार भी अजमेर दरगाह के खादिम से जुड़ते हुए नजर आए थे। ‘खादिम’ गौहर चिश्ती ने अजमेर दरगाह के द्वार पर नूपुर शर्मा के खिलाफ ‘सिर तन से जुदा’ के नारे लगवाए थे। इसके अतिरिक्त यह भी दावा किया गया था कि गौहर चिश्ती ने कन्हैया लाल के हत्यारे रियाज मोहम्मद से मुलाकात भी की थी।
अब हिंदू समाज और देश के विरोध में बोल रहे दरगाह के लोगों को देखकर हिंदू समाज की आंखें खुली हैं। फलस्वरूप उन्होंने बड़ी संख्या में दरगाह जाना छोड़ दिया है । इतना ही नहीं अब उन्हें यह भी पता चल गया है कि दरगाह के खादिम जिस प्रकार अपने आपको शराफत और इंसानियत का प्रतीक बनाकर प्रस्तुत करते रहे हैं, वह उनका एक नाटक ही है। वास्तव में उनके दिलों में शैतान बसता है। दरगाह के खादिमों के भड़काऊ बयानों से हिंदुओं ने दरगाह का एक प्रकार से बहिष्कार कर दिया है। इस बहिष्कार का प्रभाव भी दरगाह में देखा जा रहा है। जिससे अब दरगाह के प्रशासक मंडल की भी आंखें खुली हैं। उसे आभास हुआ है कि दरगाह के खादिमों के द्वारा जिस प्रकार की बयानबाजी की गई है, उससे तुम्हारी रोजी-रोटी बंद होने वाली है।
अब यह स्पष्ट हो गया है कि वहां के रेस्टोरेंट्स की कमाई 90 प्रतिशत तक घट गई है तो वही होटलों की एडवांस बुकिंग भी रद्द की जा रही है। बड़ी संख्या में हिन्दू भी अजमेर शरीफ दरगाह पर जाया करते थे। हिंदुओं द्वारा दरगाह में दिल खोलकर दान दिया जाता था। परंतु अब हिंदुओं के विरुद्ध घृणास्पद बयानों का बड़ा असर देखने को मिल रहा है। जिन हिंदुओं के आर्थिक बहिष्कार करने की बात दरगाह के खादिम करे रहे थे उन्हीं की नफरत भरी बयानबाजी के कारण अजमेर दरगाह में सन्नाटा पसर गया है। इसका असर उन लोगों पर भी पड़ रहा है जिनकी कमाई वहां आने वाले हिंदुओं और अन्य लोगों पर ही टिकी हुई थी। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अब हिंदुओं ने अजमेर दरगाह का बहिष्कार करना आरंभ कर दिया है।
वास्तव में इस समय कुछ मुस्लिम पंथी जिस प्रकार शरीयत को लागू कराने की मांग कर रहे हैं उसे सरकार को मान लेना चाहिए। इस प्रकार शरीयत को अक्षरश: लागू करने से देश के मुसलमानों को जब इस्लामिक कट्टरता के प्रतीक शरिया कानून से ही दंडित किया जाएगा तो बहुत से लोगों की अकल ठिकाने आ जाएगी। जो लोग शरीयत कानून को लागू कराने की बात करते हैं वह शरीयत के केवल उन प्रावधानों को ही लागू करना चाहते हैं जिससे उनकी स्वार्थ सिद्धि हो या देश में और भी अधिक कट्टरता को बढ़ावा दिया जा सके। मुस्लिम युवाओं के द्वारा किए गए संगीन अपराधों में वह देश के कानून से ही उन्हें दंडित करवाना चाहते हैं। इस प्रकार शरिया को भी आधे अधूरे आधार पर लागू कराए जाने की मांग मुस्लिम समाज के लोगों के द्वारा की जाती रही है। जो भी कोई नूपुर शर्मा के समर्थन में बोलता है उसके सर कलम करने की धमकी दी जाती हैं। ऐसे में सरकार को भी चाहिए कि जो सर कलम करने वालों के समर्थन में बोलते हैं, उन्हें भी उठाकर जेलों की सलाखों के पीछे डाल दिया जाए।

डॉक्टर राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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