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इतिहास के पन्नों से

शिक्षा और संस्कृति का महान केंद्र श्रावस्ती

डॉ. प्रभात कुमार सिंघल

श्रावस्ती प्राचीन काल से जैन और बौद्ध धर्म के लिए प्रसिद्ध तीर्थस्थल रहा है। उत्तरप्रदेश में अयोध्या के समीप शिक्षा और संस्कृति का प्रसिद्ध केंद्र रहा है। इसकी पहचान विश्व के कोने-कोने में आज बौद्ध और जैन पर्यटक स्थल के रूप में है। प्रााकृतिक, धार्मिक स्थलों और विभिन्न देशों की कला और संस्कृति को देखना, जानना और समझने के लिए श्रावस्ती पर्यटन का बेहतर विकल्प है।
भगवान बुद्ध के जीवन काल में यह कोशल देश की राजधानी थी। इसे बुद्धकालीन भारत के 06 महानगरों चम्पा ,राजगृह , श्रावस्ती ,साकेत ,कोशाम्बी ओर वाराणसी में से एक माना जाता था। महाकाव्यों एवं पुराणों में श्रावस्ती को राम के पुत्र लव की राजधानी बताया गया है। चीनी यात्री फ़ाहयान ओर हवेनसांग ने भी श्रावस्ती के दरवाजो का उल्लेख किया है। श्रावस्ती से भगवान बुद्ध के जीवन और कार्यो का विशेष सम्बंध था। उल्लेखनीय है की बुद्ध ने अपने जीवन अंतिम पच्चीस वर्षो के वर्षवास श्रावस्ती मे ही व्यतीत किए थेे और निर्वाण प्राप्त किया था। बौद्ध धर्म के प्रचार की दृष्टि से भी श्रावस्ती का महत्वपूर्ण स्थान था।
श्रावस्ती का प्रगेतिहासिक काल का कोई प्रमाण नहीं मिला है। शिवालिक पर्वत श्रखला कि तराई में स्थित यह क्षेत्र सघन वन व औषधियों वनस्पतियों से आच्छादित था। शीशम के कोमल पत्तों कचनार के रकताम पुष्ट व सेमल के लाल प्रसूत कि बांसती आभा से आपूरित यह वन खंड प्रकृतिक शोभा से परिपूर्ण रहता था। श्रावस्ती के प्राचीन इतिहास को प्रकाश में लाने के लिए प्रथम प्रयास जनरल कनिघम द्वारा किया। उन्होंने वर्ष 1863 में उत्खनन प्रारम्भ करके लगभग एक वर्ष के कार्य में जेतवन का थोड़ा भाग साफ कराया था जिसमें उनको बोधिसत्व की 7 फुट 4 इंच ऊंची प्रतिमा प्राप्त हुई, जिस पर अंकित लेख में इसका श्रावस्ती बिहार में स्थापित होने का पता चलता है।
जैन परम्परा के तीसरे तीर्थंकर भगवान संभवनाथजी के गर्भ, जन्म, तप व केवलज्ञान कल्याणक स्थली तो है ही, यहीं पर इन्द्रों द्वारा संभवनाथ भगवान का प्रथम समवसरण भी रचा गया था। यहां से दो मुनिराज श्री मृगध्वज एवं नागध्वज मोक्ष पधारे हैं अतः यह क्षेत्र सिद्ध क्षेत्र भी है। श्रावस्ती में जैन मतावलंबी भी रहते थे। इस धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी यहाँ कई बार आये थे |
जैन साहित्य में श्रावस्ती को चंदपुरी तथा चंद्रिकापुरी नाम से भी उल्लेखित किया गया है। जैन धर्म के प्रचार केंद्र के रूप मे यह विख्यात था। श्रावस्ती जैन धर्म के तीसरे तीर्थकर संभवनाथ
जी एवं आठवे तीर्थकर चंद्रप्रभानाथ की जन्मस्थली है। श्रावस्ती तीर्थ उत्तर प्रदेश के बलरामपुर-बहराइच रोड तह.-इकौना में अवस्थित है।
सिद्धक्षेत्र श्रावस्ती के प्रमुख दिगम्बर जैन मन्दिर में सम्मानित श्री संभवनाथ भगवान की पद्मासन मुद्रा में सफेद रंग की लगभग 105 सेमी ऊंची प्रतिमा है। मूलनायक प्रतिमा के अतिरिक्त वेदी में कुछ और धातु की प्रतिमाएँ भी विराजमान हैं। महेत ( प्राचीन महल के खंडहर) के प्रवेश द्वार के पास स्थित मंदिर को तीसरे जैन तीर्थंकर भगवान संभवनाथ का जन्मस्थान माना जाता है। मन्दिर तीर्थ आयताकार मंच पर बनाया गया है जिसमें विभिन्न स्तर शामिल हैं। अपनी स्थापना के बाद से, मंदिर में कई परिवर्धन और विस्तार किए गए। जैन मंदिर का मुख्य आकर्षण गुंबद के आकार की छत है जो लखुरी ईंटों से बनी है। हालांकि, बाद में मध्ययुगीन काल में गुंबद को जोड़ा गया था। मंदिर के आंतरिक भाग को देवी-देवताओं की छवियों से खूबसूरती से सजाया गया है। मंदिर के उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम कोनों पर दो आयताकार कमरों के अवशेष हैं। श्रावस्ती के इस धार्मिक स्थल में जैन तीर्थंकरों की बैठी हुई और खड़ी मुद्राओं की मूर्तियां भी हैं जो खुदाई प्रक्रिया में बरामद हुई थी। श्रावस्ती तीर्थ के दिगम्बर जैन मंदिर परिसर के बगल में ही श्वेताम्बर जैन समाज का भी मंदिर बना हुआ है। इस प्रकार यह तीर्थ जैनियों का प्रमुख तीर्थ है। भगवान संभवनाथ का समवसरण भी सर्वप्रथम यहीं रचा गया था, यहीं से उन्होंने धर्मतीर्थ का प्रवर्तन किया था।
सन् 1995 में यहाँ नवीन मंदिर का निर्माण भी हुआ है जिसमें सामने बीच की वेदी में भगवान संभवनाथ के अतिरिक्त दो पद्मासन तथा दो खड्गासन प्रतिमाएँ हैं तथा तीन ओर दीवार में चौबीस तीर्थंकरों की पद्मासन प्रतिमाएँ अलग-अलग वेदियों में विराजमान हैं। मंदिर का शिखर सुन्दर नये ढंग का है जिसमें सबसे ऊपर चार दिशाओं में चार प्रतिमाएँ विराजमान हैं।श्रावस्ती कमेटी के कार्यकर्ताओं ने कई वर्षों के परिश्रम से इस विशाल जिनमंदिर का निर्माण कराया तथा मार्च 1995 में उसकी पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्पन्न कराई। जैन मंदिर में पूजा का समय सुबह 7.00 बजे और शाम 6.30 बजे है।
यहाँ एक बहुत प्राचीन खण्डहर है जो भगवान संभवनाथ की जन्मस्थली (महल) का प्रतीक माना जाता है। पुरातत्व विभाग के अधिकार में यह खण्डहर है अतः इस स्थल पर कोई चरणपादुका आदि का निर्माण भी नहीं हो सका है, मात्र श्रद्धावश जैन यात्री वहाँ जाकर टीले का दर्शन करते हैं और उसे संभवनाथ का प्राचीन महल मानकर मस्तक झुकाकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। जब कुछ वर्ष यहां पूर्व उत्तरप्रदेश पुरातत्व विभाग द्वारा उस टीले की व्यापक स्तर पर खुदाई की गई, जहाँ से बड़ी संख्या में जैन तीर्थंकरों की एवं यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियाँ प्राप्त हुई जिन्हें संग्रहालय में स्थापित किया गया है।
श्रावस्ती शिक्षा का भी महान केंद्र रहा। यहां के महाश्रेष्ठि नंदिनीप्रिय, नागदत्त आदि से जैन धर्म के अध्ययनार्थ श्रावस्ती में लोग दूर-दूर से आते थे। इसमें कश्यप के पुत्र कपिल एवं जैन विद्वान् केशी के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। कार्तिक पूर्णिमा गंगा स्नान पर भगवान संभवनाथ के जन्मदिवस का विशेष आयोजन मेले के रूप में किया जाता है। इस अवसर पर रथ यात्रा होती है। चैत्र शुक्ल षष्ठी को श्री जी का निर्वाणोत्सव धूम धाम से मनाया जाता है। सर्वतोभद्र प्रतिमा के महामस्तकाभिषेक का पंचवर्षीय आयोजन किया जाता है। मन्दिर परिसर में औषधालय एवं पुस्तकालय की सुविधाएं हैं। प्रबन्ध व्यवस्था श्री दिगम्बर जैन श्रावस्ती तीर्थक्षेत्र कमेटी, श्रावस्ती द्वारा की जाती है।
अन्य पर्यटक स्थलों में कटरा श्रावस्ती में बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा बौद्ध मंदिरों का निर्माण कराया गया है। जिनमें वर्मा बौद्ध मंदिर , लंका बौद्ध मंदिर , चाइना मंदिर , दक्षिण कोरिया मंदिर के साथ –साथ थाई बौद्ध मंदिर है। थायलैंड द्वारा डेनमहामंकोल मेडीटेशन सेंटर भी निर्मित कराया गया है जहां पर बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों का आवागमन रहता है।
श्रावस्ती की भौगोलिक स्थिति ईको टूरिज्म के लिए बेहतर मानी गई है। एक तरफ जहां हिमालय की पहाड़ियां हैं, तो दूसरी ओर राप्ती नदी का तट। धार्मिक पर्यटन स्थलों के पर्यटन विकास के लिए बजट में घोषणा में श्रावस्ती जिले को सबसे ज्यादा लाभ मिलेगा। इससे विभूतिनाथ, सीताद्वार व बौद्ध तपोस्थली श्रावस्ती को पर्यटन में नई उड़ान मिलेगी। यहां आने वाले पर्यटकों को अब पहले से ज्यादा सुविधाएं मिलेंगी। स्थानीय रोजगार के रूप में इसका लाभ होगा। बहराइच होकर श्रावस्ती पहुंचना सुविधाजनक है। श्रावस्ती में ठहरने के लिए हर बजट की सुविधाएं उपलब्ध हैं। श्रावस्ती अयोध्या से 110 किमी. तथा लखनऊ से लगभग 160 किमी की दूरी पर है।

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