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कविता

अर्जुन हुआ भावुक

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अर्जुन हुआ भावुक

भावुक अर्जुन बोला, – केशव ! मेरे मन की व्यथा सुनो,
मैं बाण नहीं मारूं अपनों को चाहे मुझको जो दण्ड चुनो।
अपने – अपने ही सदा होते – उनसे उचित नहीं वैर कभी,
जो अपनों से वैर निभाता है उसको पापी जन ही जानो ।।

अपनों के लिए हथियार उठाना – यह कैसा है न्याय हुआ ?
यदि जग में कहीं हुआ है ऐसा तो समझो वहां अन्याय हुआ।
सच्चा मानव वही होता है – जो अपनों से प्रीत निभाता हो,
जो प्रीत की रीत के विपरीत चले उसे कब किसने इंसान कहा ?

प्रतिशोध का भाव जहां पर हो , वहां आत्मबोध नहीं मिलता ,
प्रतिशोध तुच्छ हृदय में उपजे – क्रोध का शूल सदा चुभता।
प्रतिशोध बंद कर देता झरना -आनंदमय अमृतसम जल का,
प्रतिशोध विवेक का हनन करे और है विकार मानव मन का ।।

जो मानव प्रतिशोध में रमण करे उसे मानव नहीं दानव समझो,
जो जीता हो तपस्वी सम जीवन उसको ही सच्चा मानव समझो।
मैं प्रतिशोध के लिए नहीं जन्मा, केशव ! मुझ पर तुम दया करो,
मुझे युद्ध से दूर हटा दो,माधव ! और शिष्य सदा अपना समझो।।

अपनों के विरुद्ध ना युद्ध करूँ, ना हथियार कभी उठा सकता,
कभी अपनों को केशव ! युद्धक्षेत्र में ना अर्जुन मार गिरा सकता।।
यदि कौरव पक्ष मुझे मार भी दे तो भी हथियार नहीं उठा सकता,
मेरा कल्याण है इसी में संभव, मैं इसका बुरा नहीं मना सकता।।

जब तक है प्राण तन में – केशव ! नहीं वैर- विरोध मुझे छू सकते,
ना इनका दास मैं बन सकता और ना यह मेरे स्वामी हो सकते।
मैं दुर्योधन को अपना मानूँ, माधव ! मेरा धर्म मुझे यह सिखलाता,
मुझे युद्ध क्षेत्र से ले चलो दूर तुम, मेरे भाव ना हिंसक हो सकते।।

डॉक्टर राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
स्वलिखित ‘गीता मेरे गीतों में’ पुस्तक से

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