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मैगी सिंवैया: भेड़चाल बंद करें

maggiनेसले कंपनी के ‘मैगी’ नामक खाद्य पदार्थ (नूडल्स) पर हमारे कई राज्यों ने प्रतिबंध लगा दिया है। अन्य राज्य भी नेसले कंपनी के खाद्य पदार्थों की जांच करवा रहे हैं। एक सज्जन ने नेसले कंपनी पर तो मुकदमा चला ही दिया है। उन बेचारे फिल्मी सितारों को भी फंसा लिया है, जो ‘मैगी’ वगैरह के विज्ञापन किया करते थे। फिल्मी सितारों को तो सिर्फ पैसे से मतलब रहता है। वे मैगी क्या, कुछ भी चीज़ बेचने के लिए खुद को इस्तेमाल होने देते हैं। इसीलिए वे लोकप्रिय तो होते हैं लेकिन लोक-प्रतिष्ठित नहीं होती। खैर, उनकी बात जाने दें।

असली सवाल यह है कि भारत में ‘मैगी’ सिंवैया का 10 हजार करोड़ रु. का व्यापार खतरे में क्यों पड़ गया है? ‘मैगी’ के भारतीय प्रबंधकों का कहना है कि उन्होंने सारे परीक्षण करवा लिये हैं। उसमें कहीं कोई कमी नहीं है लेकिन भारत सरकार की खाद्य सुरक्षा एजेंसी ने अपने परीक्षणों में पाया है कि ‘मैगी’ की सिंवैया में ‘मोनो सोडियम ग्लूटामेट’ (एमएसजी) नामक तत्व जरुरत से कहीं ज्यादा है, जिसके खाने से काफी नुकसान होता है। इस सिंवैया की 13 नमूनों में से सात खराब पाए गए। सिर्फ एमएसजी की वजह से ही नहीं, शीशा-जैसे खतरनाक तत्वों की वजह से भी यह विदेशी सिंवैया खाने योग्य नहीं है लेकिन हम क्या देख रहे हैं?

आजकल भारत के मध्यवर्गीय लोगों के घरों में मैगी ही नहीं, इस तरह के बने-बनाए या पहले से तैयार व्यंजनों की भरमार हो गई है। पीजा, पकोड़े, पूरियां, पुलाव, सब्जियां और अनेक मांस-व्यंजन पैकेटों में पेक करके रख दिए जाते हैं। ये खाने लायक रहें, सड़े नहीं, इस दृष्टि से इनमें ऐसे रसायन डाल दिए जाते हैं, जिन्हें मीठा जहर कह सकते हैं। उन रसायनों की कृपा से ये बासी व्यंजन भी स्वादिष्ट लगते हैं। भारत के करोड़ों लोग भेड़चाल चल रहे हैं। वे अमेरिकियों की नकल करने लगे हैं। हर मध्यमवर्गीय घर में फ्रिज रहता है। मैंने उसका नाम ‘बासीघर’ रखा है। यदि फ्रिज में रखा खाना ताजा रहता है तो उसे दो-तीन माह उसमें ही पड़ा रहने दें। उसे प्रयोगशाला में जंचवाएं तो मालूम पड़ेगा कि वह अंदर से सड़ गया है। हम लोग अमेरिकियों की तरह ताज़ा चीजें खाना भूलते जा रहे हैं। मैगी सिंवैया को तो फ्रिज की भी जरुरत नहीं है। उसके बासी होने का तो पता ही नहीं चलता।

सिर्फ मैगी जैसी चीजों पर मुकदमा चलाने से क्या होगा? मुकदमा तो हमारे नकलचीपन पर चलना चाहिए। दिमागी गुलामी पर चलना चाहिए। देश में इस तरह के सभी रेडीमेड खाद्यों के खिलाफ एक जबर्दस्त जन-आंदोलन की जरुरत है। यह काम अदालतों, सांसदों, प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों के बस का नहीं हैं। इसमें आपको और हमें आगे आना होगा।

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