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इतिहास के पन्नों से

ओडिशा के लौहपुरुषः स्वर्गीय बीजू पटनायक

अशोक पाण्डेय

ओडिशा के लौहपुरुषः स्वर्गीय बीजू पटनायक की अंतिम इच्छा थी कि 21वीं सदी में ओडिशा की जिम्मेदारी स्वेच्छापूर्वक ओडिशा के वैसे युवा-युवती संभालें जिनके मन में ओडिशा को विकासशील से विकसित बनाने का जजबा हो।उनके मन में ओडिशा के गौरवशाली इतिहास को बचाये रखने की दृढ इच्छाशक्ति हो।बीजू बाबू को आजीवन ओडिशा के कलिंग नामकरण से कमाल की आत्मीयता रही।इसीलिए 1952 में उन्होंने ओडिशा में कलिंग फाउण्डेशन ट्रस्ट की नींव डाली जिसमें विश्व के विख्यात वैज्ञानिकों को यूनिस्को कलिंग पुरस्कार से सम्मानित करने का प्रावधान रखा गया।बीजू बाबू ने राष्ट्र की एकता,धर्मनिर्पेक्षता,प्रजातांत्रिक मूल्यों की हिफाजत तथा ओडिया स्वाभिमान को आजीवन बचाये रखने का पावन संदेश दिया है।
बीजू बाबू का जन्म ओडिशा की सांस्कृतिक नगरी कटक के एक कुलीन परिवार में 05मार्च,1916 को हुआ था। उनके पिताजी का नाम स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण पटनायक तथा माता का नाम स्व.आशालता देवी था। उनके पिताजी एक सच्चे राष्ट्रभक्त थे तथा ओडिया आंदोलन के उन्नायक थे। बीजू बाबू के दो बेटे,बडा बेटा प्रेम पटनायक तथा अनपज नवीन पटनायक तथा बहन गीता मेहता हैं। श्री नवीन पटनायक चार दशकों से भी अधिक समय से ओडिशा के मुख्यमंत्री हैं तथा गीता मेहता नामी उपन्यासकार हैं।बीजू बाबू के बचपन का नाम विजयानन्द पटनायक था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा तथा कालेज की शिक्षा क्रमशःमिशनरी प्राइमरी स्कूल,कटक तथा क्राइस्ट कालेज कटक में हुई।गौरतलब है कि जहां से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पढे थे उसी रेबींशा कालेज से बीजू बाबू भी 1927 में पढे।छात्र-जीवन में वे फुटबाल,हाकी तथा एथलेटिक के खिलाडी थे।
वे लगातार तीन साल तक स्पोर्टस चैंपियन थे। उनके मन में उनके बाल्यकाल से ही ओडिशा,कलिंग से अगाध लगाव तथा प्रेम था। वे महात्मागांधी के सत्य,अहिंसा और त्याग से प्रभावित होकर 1942-43 में गांधीजी के भारत छोडो आन्दोलन में आये।भारत की आजादी के लिए वे चेल भी गये। 1961 से लेकर 1963 तक वे ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे। वे राज्यसभा तथा लोकसभा के भी सदस्य रहे। वे भारत सरकार के केन्द्र में इस्पात मंत्री भी रहे। वे 1990 से लेकर 1995 तक पूनः दुसरी बार ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे। उन्हें इण्डोनेशिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भूमिपुत्र प्रदान किया गया।उन्होंने पारादीप पोर्ट,भुवनेश्वर सैनिक स्कूल,120 पैदलवाहिनी आदि जैसी अनेक संस्थाएं ओडिशा में खोलीं।
वे एक संवेदनशील तथा स्पष्टवादी राजनेता थे। उनका निधन 17अप्रैल,1997 को हो गया। कलिंग भूमि को विकासशील से विकसित बनाने में उनके योगदानों को ओडिशा कभी भी भूल नहीं सकता।
उनके सपनों को साकार करने में कीट-कीस के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद प्रोफेसर अच्युत सामंत का योगदान एक व्यक्ति विशेष के रुप में,एक महान शिक्षाविद के रुप में,एक जननायक,आदिवासी समुदाय के जीवित मसीहा तथा लोकसेवक के रुप में निःस्वार्थभाव से अतुलनीय है। 58वर्षीय प्रोफेसर अच्युत सामंत आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर बीजू बाबू के सपनों को साकार कर रहे हैं। ओडिशा के लौहपुरुषः बीजू बाबू को तथा उनकी असाधारण प्रतिभा को उनके श्राद्ध दिवस,17अप्रैल पर कोटि-कोटि प्रणाम।

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