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बिखरे मोती

कड़ुवा और क्रोध में, मत बोलो कभी बोल

बिखरे मोती-भाग 86

मांगे से तीनों घटें, 
प्यार पुरस्कार सत्कार।
सहज भाव से होत है,
सदा तीनों का विस्तार ।। 873 ।।
बिन मांगे मत सीख दे,
बिन श्रद्घा के दान।
वाणी पर संयम रखें,
वे नर चतुर सुजान  ।। 874 ।।
सीख अर्थात उपदेश, सलाह
मन को चिंता में नही,
चिंतन में जो लगाय।
समस्या बेशक बड़ी हो,
समाधान मिल जाए ।। 875।।
बढ़ापे के गुर : बुढ़ापा एक वैतरणी नदी की तरह है। इसे तरने के लिए निम्नलिखित सावधानियां बरतें :-
बुढ़ापे में कर्मेन्द्रियां,
होने लगती हैं क्षीण।
साध सके तो साध ले,
वाणी की बजा बीन ।। 876।।
भाव यह है कि बुढ़ापे में मनुष्य की कर्मेन्द्रियां कमजोर होने लगती हैं। सारी शक्ति वाणी में आ जाती है। अत: वाणी की शक्ति का सदुपयोग करो, अप्रिय कभी 
मत बोलो, प्रिय बोलो और आगे बढ़ो।
कड़ुवा और क्रोध में,
मत बोलो कभी बोल।
बुढ़ापे में खामोश रह,
नाप तोल के बोल ।। 877 ।।
क्षमा करै और भूल जा,
जो नीति अपनाय।
बुढ़ापे की वैतरणी को,
सहजता से तर जाए ।। 878 ।।
तुमने तो पारी खेल ली,
अब औलाद की बार।
फिजूल में मत दखल दे,
आगे का जनम सुधार ।। 879 ।।
इतना तो धन राख ले,
बुढ़ापा ठीक कट जाय।
बहू बेटों के सामने,
कभी मत हाथ फैलाय ।। 880 ।।
अनदेखा अनसुना कर,
मत ना कमी निकाल।
रोकने से भी ना रूके,
बुढापे में उठा बवाल ।। 881 ।।
वक्त बुढ़ापे का बुरा,
पराश्रित हो जाए।
रोग चिंता गम सभी,
भीतर-भीतर खाय ।। 882 ।।
क्या खोया क्या पा चला,
रखना रोज हिसाब।
पाप पुण्य की लिख गयी,
भीतरले में किताब ।। 883 ।।
भीतरले में अर्थात मन अथवा चित्त।
व्याख्या :- हे मनुष्य ! तू नित्यप्रति अपना आत्मावलोकन अवश्य किया कर अर्थात यह देखा कर कि मैंने कितने पाप और पुण्य किये हैं, क्योंकि तेरे कर्मों का लेखा जोखा तेरे चित्त में इस तरह से रिकार्ड हो रहा है-जैसे विमान की उड़ान को फ्लाइट डेटा रिकार्ड करता है। ध्यान रहे, कर्मों से ही कर्माशय (प्रारब्ध) बनता है, पुनर्जन्म में आयु योनि भोग मिलते हैं।
जीवन का अवसान है,
मत नही बैर बढ़ाय।
नदी किनारे का पेड़ तू,
बाढ़ आय ले जाए ।। 873 ।।
व्याख्या : बुढ़ापा इस बात को परिलक्षित करता है कि अब जीवन का अंत समीप है। इसलिए हे मनुष्य! अपने रिश्तों को शत्रुतापूर्ण नही अपितु मित्रतापूर्ण बना। ध्यान रख, तेरा जीवन नदी के किनारे के पेड़ की तरह है जैसे उस पेड़ को बाढ़ कभी भी बहा कर ले जा सकती है, ठीक इसी प्रकार तुझे भी मृत्यु रूपी बाढ़ कभी भी अपना निवाला बना सकती है।
क्रमश:

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