वैदिक सम्पत्ति तृतीय खण्ड – अध्याय – चितपावन और आर्य शास्त्र

गतांक से आगे…
इन समस्त कथाओं का इतना ही तात्पर्य है कि, देवी से ब्रह्मा, विष्णु और शंकर हुए और ब्रह्मा, विष्णु तथा शंकर के मिश्रण से दत्तात्रेय की उत्पत्ति हुई। अर्थात् दत्तात्रेय की उत्पत्ति ब्रह्मा, विष्णु ,महेश से हुई और ब्रह्मा, विष्णु, महेश को पैदा करने वाली देवी है। अब देखना चाहिए कि, इस दत्तात्रेय की इस मिश्रित उत्पत्ति का क्या रहस्य है ? हम मिस्र देश के दैवी इतिहास में देखते हैं कि, उसमें भी उपर्युक्त वर्णन ज्यों का त्यों दिया हुआ है। हम अभी गत पृष्ठों में लिख आए हैं कि, मिस्र देश की आदि देवी का नाम इसिस् है। वही इसिस् यहां श्री के नाम से प्रसिद्ध है। जिस प्रकार इस देवी से ब्रह्मा, विष्णु और शंकर हुए हैं, उसी तरह मिश्र देश में प्रसिद्ध है कि, इसी इसिस् से ऑसिरिस,होरूस और टायफान नामी तीन पुत्र हुए हैं और जिस प्रकार ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर के मेल से दत्तात्रेय की उत्पत्ति हुई है, उसी तरह मिस्र देश में ऑसिरिस,होरूस और टायफान के मेल से टॉथ नामी पतला बना है।
इस टॉथ के विषय में अर्केश्वर नामी प्रसिद्ध प्रवासी लिखता है कि, मिस्र देश के पेकीन शहर में शहर की दीवार के उत्तर- पश्चिम कोण पर ‘महाकाल म्यौ’ नामी एक मंदिर है। मंदिर का यह नाम महाकाल नामी मुख्य देवता के कारण पड़ा है। वहां महाकाल नामी देव का पुतला है। वहां के लोग उसका भजन करते हैं। मंदिर के एक भाग में मच्छोदरनाथ का 18 फीट ऊंचा पुतला है और दूसरे भाग में दत्तात्रेय या दत्ता का पादचिन्ह है। इस दत्तात्रेय का नाम वहां टॉथ है।
उपर्युक्त वर्णन से पाया जाता है कि दत्तात्रेय – संबंधी सारी कथा और दत्तात्रेय की मूर्ति का यह विचित्र प्रकार मिस्र देश ही का है और वही से चितपावनों द्वारा आया है। क्योंकि दत्तात्रेय की पूजा उत्तर हिंदुस्तान में कहीं नहीं होती और न ही किसी हिंदू का दत्तात्रेय नाम ही होता है। परंतु दत्तात्रेय को महाराष्ट्र ही इष्टदेव मानते हैं और उन्हीं के दत्तात्रेय आदि नाम भी होते हैं, अतएव उन्हीं से इसका संबंध है, इसमें संदेह नहीं।
कुछ लोग कहते हैं कि सम्भव है, दत्तात्रेय की कथा और उसकी मूर्तिपूजा भारत से ही वहां गई हो, किन्तु इस बात में कुछ भी सत्य नहीं है। प्रथम तो प्राचीन भारतीय आर्यों में मूर्ति पूजा थी ही नहीं फिर दत्तात्रेय जैसी विचित्र मूर्ति यहां की उपज कैसे हो सकती है ? इसलिए वह यहां से मिश्र नहीं गई। मिश्र देश में जिस इसिस् और आसिरिस आदि देवियों के आधार पर टॉथ बना है, वे शब्द न तो आर्यभाषा के हैं और ने मिश्रियों की सिमिट्रिक भाषा के ही हैं वह सब तो हेमिटिक भाषा के ही हैं। वे शब्द तो सेमिटिक भाषा के हैं। इसलिए ज्ञात होता है कि, मिश्रियों में दत्तात्रेय की मान्यता भारत से या आर्यों से नहीं गई। यह सेमिटिकों से मिश्रियों में गई और मिश्रियों से भारत में आई है। भारत में भी दक्षिणियों में ही इसका प्रचार है। क्योंकि मिश्र निवासी इजिप्तवान् अर्थात् चितपावन दक्षिणियों में ही घुसे हुए हैं, इसलिए दत्तात्रेय की समस्त मान्यता चितपावनों की है और उन्हीं ने इसका इस देश में प्रचार और विस्तार किया है। इसी बात को स्वीकार करते हुए पंडित सावरकर कहते हैं कि, यह दत्तात्रेय की उत्पत्ति इजिप्ट देश की ही है और वहीं से भारत में आई है।
क्रमशः

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