कौन किसके लिए कितना महत्त्वपूर्ण

बिखरे मोती

खेती होवै पानी से,
वाणी से व्यापार।
हाँ – जी से हो चाकरी,
चाव से हो त्योहार॥1664॥

वाणी विधाता का वरदान है

वाणी तो एक बांसुरी,
मोहक धुन की खान।
गहना है व्यक्तित्व का,
विधाता का वरदान॥1665॥

व्याख्या :- वाणी और मुस्कान परमपिता परमात्मा ने केवल मनुष्य को ही प्रदान किए हैं, अन्य योनियों में रहने वाले जीवीं को नहीं। वस्तुत: ये विधाता की अमूल्य सौगात है, उपहार हैं, विभूति है, वरदान हैं। काश ! इन का सदुपयोग करना आए तो सोने पे सुहागा हो जाए। सच पूछो तो एक वीणा अथवा वास बांसुरी की तरह है। बांसुरी के स्वर लहरियों को निकलने वाला व्यक्ति यह जाता है कि, कौन सा छिद्र दबाना है और कौन सा खुला छोड़ना है, वह स्वर में रोह-अवरोह मे भी निष्णात होता है। उसकी बंसी की धुन पर मनुष्य ही नहीं मृग तक भी भाव विभोर हो जाते हैं। ठीक इसी प्रकार जिन्होंने वाकपटुता के साथ-साथ वाणी में माधुर्य, विनम्रता, न्यायप्रियता निर्भीकता, सत्यवादीता,ऋजुता,वाकसंयम के स्वर दबाने और खोलने आते हैं।वे अपनी वक्तृत्त्व शैली से बड़ी बड़ी सभाओं में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं, भावुक और भावविभोर कर देते हैं। जहां जाते हैं, वही अपनी परिमार्जित वाणी की अमिट छाप छोड़ते हैं, समारोह की शोभा बनते हैं, सरोवर के हंस होते हैं।सारांश यह है कि वाणी व्यक्ति के व्यक्तित्व का ऐसा अमूल्य आभूषण है जिससे वह सुसज्जित होता है, प्रतिष्ठित होता है, उसकी वाणी में सरस्वती का वास होता है, ऐसा व्यक्ति ही ‘वागीश’ होता है, जो बड़ा दुर्लभ होता है। इसलिए प्रभु-प्रदत्त वाणी के अमोध वरदान को संभालते रहिए, परिष्कृत और परिमार्जित करते रहिए,वाणी के उद्वेगों से सदा सतर्क रहिए। महर्षि देव दयानन्द सरस्वती के वाणी के संदर्भ में कहे गए शब्दों को याद रखिए:-
” पुरुष अपनी वाणी में अहम् जोड़ कर बोलता है, महिलाएं अपनी वाणी में भावना जोड़कर बोलती है, जबकि महापुरुष अपनी वाणी को आत्मा अथवा परमात्मा से जोड़कर बोलते हैं।”
क्रमशः

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