Categories
महत्वपूर्ण लेख

जम्मू कश्मीर में हिन्दुओं के अस्तित्व का यक्ष प्रश्न-5

1-Jammu-and-Kashmirगतांक से आगे…..
जम्मू-कश्मीर के विषय में महाराजा हरिसिंह को महाराजा न मानना नेहरू की चौथी ऐतिहासिक भूल:
देश की सबसे बड़ी रियासत जम्मू-कश्मीर भारत की 556 रियासतों में अकेली ऐसी अभागी रियासत है जिसके महाराजा हरिसिंह को महाराजा मानना बंद कर दिया गया और उनके पुत्र युवराज कर्ण सिंह को उनका उत्तराधिकारी महाराजा नही मानकर उन्हें जम्मू-कश्मीर का सदरे-रियासत (गर्वनर राज्यपाल) बना दिया गया। शेख के सामने नेहरू इतने बौने बन चुके थे कि जैसा शेख चाहते थे वैसा ही जम्मू-कश्मीर में होता था। शेख व नेहरू की दुरंगी चालों व अपमानास्पद व्यवहार के कारण अंतत: 16 जून 1949 को महाराजा हरिसिंह बंबई चले गये और अपने पुत्र युवराज कर्ण सिंह को कार्यभार सौंप गये। महाराजा 1960 तक जीवित रहे परंतु बंबई से कभी जम्मू-कश्मीर नही आए।
धारा 370 लागू करके जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देना नेहरू की पांचवीं ऐतिहासिक भूल :
नवंबर 1950 में जम्मू-कश्मीर रियासत में चुनाव कराये गये। चुनावों में धांधली करके 75 में से 75 सीटें नेशनल कांफ्रेंस ने जीत लीं। प्रजा परिषद द्वारा भारी विरोध किया गया, जिसे कुचल दिया गया। नेहरू की कांग्रेस ने नेशनल कांफ्रेंस की धांधलियों का साथ दिया।
जम्मू-कश्मीर की नवनिर्वाचित प्रथम विधानसभा बैठक में रियासत के भारत में पूर्ण विलय का प्रस्ताव पारित किया गया। देखने में यह बहुत अच्छा ही कहा जाएगा। परंतु दूसरी बैठक में ही पारित किया गया कि रियासत को विशेष अधिकार दिये जाएं। राज्यपाल को सदरे रियासत राष्ट्रपति व मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री कहे जाने का भी प्रस्ताव पारित हुआ। रियासत का अलग ध्वज, अलग संविधान, अलग चुनाव आयोग बनाने का भी निर्णय किया गया। रियासत के बाहर का कोई भी व्यक्ति परमिट के बिना प्रवेश नही कर सके-ऐसा नियम बनाया गया। कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पारित किये बिना रियासत पर लागू नही होगा, यह भी विधेयक पारित किया गया। नेहरू जी की विशेष अभिरूचि के कारण उपरोक्त सारे कानूनों को भारत की संसद में भी 24 जुलाई 1952 को पारित करा दिया गया। 19 अगस्त 1952 को राज्यसभा ने भी इस कानून को स्वीकृति प्रदान कर दी।
भारतीय जनसंघ व हिंदू महासभा ने 11 मार्च 1953 को डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी व बैरिस्टर एन.सी. चटर्जी के नेतृत्व में जम्मू-कश्मीर में बिना परमिट प्रवेश को लेकर आंदोलन प्रारंभ किया। बहुत से नेता यत्र-तत्र गिरफ्तार कर लिये गये। इसी आंदोलन के समय डा. मुखर्जी श्रीनगर जेल में 24 जून 1953 को रहस्यमयी परिस्थितियों में काल कवलित हो गये। नेहरू व शेख की मिलीभगत से डा. मुखर्जी का बलिदान जम्मू-कश्मीर की बलिवेदी कर दिया गया।
शेख द्वारा स्वतंत्र कश्मीर की घोषणा :
13 जुलाई 1953 को शेख ने घोषणा की कि जम्मू-कश्मीर भारत या पाकिस्तान का राज्य नही है और यह एक स्वतंत्र राज्य है। पाकिस्तान से भी शेख ने सांठगांठ कर ली और संयुक्त राष्ट्र संघ तक अपनी पहुंच बढ़ा ली।
आखिर नेहरू को प्रायश्चित करना पड़ा :
नेहरू के अंतरंग मित्र शेख अब्दुल्ला आखिर गद्दार के रूप में देश के सामने पहचान लिये गये जिसे नेहरू को भी मानना पड़ा कि वास्तव में मेरा मित्र भारत की जनता से विश्वासघात कर रहा है। इसलिए वह समय भी आया जबकि शेख को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया और उन्नीस अगस्त 1953 को बख्शी गुलाम मोहम्मद को प्रधानमंत्री बना दिया गया। शेख को गुलमर्ग जेल भेज दिया गया। एक अप्रैल 1959 को राज्य में प्रवेश करने के लिए परमिट प्रथा को रद्द कर दिया गया। आठ जनवरी 1959 को शेख को रिहा कर दिया गया।
देश व प्रदेश की जनता के हितों के साथ विश्वासघात करने वाले शेख अब्दुल्ला को भारत का आधुनिक अंग्रेजी प्रेस ‘शेरे कश्मीर’ कहकर महिमामंडित करता रहा। वहीं शेख 1964 में पाकिस्तान जाकर वहां के राष्ट्रपति अयूब खान से मिला। इस बीच 27 मई 1964 को नेहरू जी का देहांत हो गया। उस समय शेख मुजफ्फराबाद में थे। 14 अक्टूबर 1964 को बख्शी गुलाम मोहम्मद के त्यागपत्र के बाद गुलाम मुहम्मद सादिक मुख्यमंत्री बनाये गये।
1965 में शेख अब्दुल्ला हजयात्रा पर गये जहां भारत के विरूद्घ घोर विषवमन किया।
क्रमश:

Comment:Cancel reply

Exit mobile version