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कविता

अफवाहों से जन्मी ये’

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दिया आर्य

असों, कपकोट

उत्तराखंड

सही करो फिर भी दुनिया क्यों देती है मुझको ये इल्जाम

नजरिया गलत तो दुनिया का है, मैं क्यों छोड़ दूं अपना काम।।

अफवाहे-ताने सुनते हुए भी, मै नहीं रुकी चलते चलते,

अफवाहों से जन्मी ये आग भी, अब थक गई जलते-जलते।।

बाधा डालना दुनिया का काम, मै करुंगी वही जो मन चाहे,

दुनिया वालों ये मेरी किसमत ले जाएगी वही जहां है राहें।।

जिंदगी सबकी अपनी-अपनी जैसे शमा बुझेगी जलते-जलते,

अफवाह से जन्मी ये आग भी, अब थक गई जलते-जलते।।

कितने मजाक उड़ाओगे तुम, एक पल का जरा धैर्य धरो,

दूसरों का घर झांकते हो, कभी अपना घर भी देखा करो।।

कितने झूठ जन्माओगे, कितने आग अब लगाओगे,

अफवाहों से जन्मी ये आग भी, अब थक गई जलते-जलते।।

मुझे मतलब नहीं दुनिया से, मेरी माँ ही मेरा संसार है,

झूठ-फरेब से कोसों दूर, माँ खुशियों का भंडार है।।

सारी अफवाहें मिट गई, सूरज के साथ ढलते-ढलते,

अफवाहों से जन्मी ये आग भी, अब थक गई जलते जलते।।

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