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मतदाताओं को रिश्वत के रसगुल्ले

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

भारत के लोगों को गर्व होना चाहिए, क्योंकि यहां की सरकारें तख्ता-पलट से नहीं, चुनावों से उलटती और पलटती रहती हैं। इसीलिए भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाता है। यह बात अलग है कि चुनाव उम्मीदवारों के गुण-दोष पर नहीं होते बल्कि उनकी जात, मजहब और भाषा के आधार पर होते हैं। बहुत कम चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर हुए हैं लेकिन अब हमारे लोकतंत्र को अपंग बनानेवाला एक नया प्रपंच भी शुरु हो गया है। वह है— मतदाताओं को बाकायदा रिश्वतें देने का प्रपंच। कोई पार्टी ऐसी नहीं है, जो मतदाताओं के सामने तरह-तरह की चूसनियां नहीं लटकातीं। एक पार्टी यदि डाल-डाल चलती है तो उसकी प्रतिद्वंदी पार्टी पात-पात चलने लगती है। ये पार्टियां जन-सामान्य के लिए लाभकारी कानून बनाने का वायदा करने की बजाय जनता के कुछ वर्गों, जातियों, समूहों आदि को लालच में फंसाने के लिए ऐसे वायदों की घोषणा कर देती हैं, जो कभी पूरे हो ही नहीं सकते। यदि वे उन्हें पूरा करने चलें तो उन्हें पूरा करने में पूरा बजट ही पूरा हो जाए। पार्टियों की यह प्रवृत्ति पिछले कुछ चुनावों में बहुत ज्यादा बढ़ती गई है। इस वक्त पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं, उनमें तो ऐसे फर्जी वायदों का अंबार लगा हुआ है। यदि आम आदमी पार्टी कहती है कि 18 वर्ष से अधिक आयु की हर महिला को वह एक हजार रु. महिना दिया करेगी तो अकालियों ने नहले पर दहला मार दिया। उन्होंने हर महिला को दो हजार रु. देने की घोषणा कर दी। कांग्रेस तो और भी आगे निकल गई। उसने महिला मतदाताओं को पटाने के लिए 2 हजार रु. में साल के आठ गैस सिलेंडर भी जोड़ दिए। इसी तरह पंजाब की छात्राओं को अपनी परीक्षाएं पास करने पर पांच, दस, पंद्रह और 20 हजार रु. के तोहफे उसने घोषित कर दिए। उत्तरप्रदेश में भी रिश्वतों की बहार बहने लगी है। 12 वीं कक्षा की हर छात्रा को स्मार्ट फोन और हर स्नातिका को एक स्कूटी देने की घोषणा कर दी गई है। कांग्रेस ने इनके अलावा हर परिवार को दस लाख रु. तक के मुफ्त इलाज और मुफ्त बस-यात्रा का भी वायदा कर दिया है। समाजवादी पार्टी उससे भी आगे निकल गई है। उसने भी अपने मतदाताओं को पटाने के लिए इतनी चूसनियां लटका दी हैं कि उनका वर्णन करना कठिन है। सभी दलों की इसी पैंतरेबाजी का मुकाबले करने के लिए भाजपा भी कोई न कोई दांव जरुर चलेगी। यह भ्रष्टाचार का छद्म तरीका है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका के तहत इस मुद्दे को जमकर उठाया है। उन्होंने चुनाव आयोग को सफाई देने के लिए कहा है और उससे पूछा है कि आदर्श आचार संहिता का क्या वह उल्लंघन नहीं है? 2013 में सुब्रहमण्यम बालाजी मामले में भी अदालत ने कड़ा रुख अपनाया था लेकिन चुनाव आयोग अब सख्ती क्यों नहीं बरत रहा है? वास्तव में नेताओं को अपने भाषणों में और पार्टियों को अपने घोषणा-पत्रों में सर्वसामान्य के कल्याण की घोषणाएं करनी चाहिए, न कि मतदाताओं के सामने रिश्वत के रसगुल्ले लटकाने चाहिए।

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