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संपादकीय

नए वैश्विक धर्म का प्रयास और वैदिक धर्म

मानव समाज जब – जब आतंकवाद और आतंकवादियों के हमलों से आहत हुआ है तब – तब उसने इस प्रकार के हमलों से सदा – सदा के लिए मुक्ति पाने का कोई न कोई रास्ता खोजने का प्रयास किया है। संसार के जिस – जिस क्षेत्र में अज्ञान, अविद्या, पाखंड, छल, छद्म और अत्याचार चरम सीमा पर पहुंचा वहीं – वहीं उस देश में इस प्रकार के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए कोई ना कोई ऐसा ‘महामानव’ पैदा हुआ जिसने अपने नाम से नए धर्म की स्थापना की । लोगों ने इस आशा में उस तथाकथित ‘महामानव’ का साथ दिया कि संभव है उसके नए धर्म से उन्हें ‘शांति’ प्राप्त हो जाए ? यह अलग बात है कि लोगों की यह आशा मात्र मृगतृष्णा ही सिद्ध हुई । क्योंकि नए-नए मजहबों ने धर्म के नाम पर लोगों को लड़ाना आरंभ कर दिया। जिससे जनसाधारण की शांति की खोज और भी अधिक गहराती चली गई। अब इस दिशा में चाहे तथाकथित ‘ईसाई क्रांति’ हो या फिर ‘इस्लाम की क्रांति’ हो,  सभी ने मानव की शांति की चिर प्रतीक्षित अभिलाषा पर केवल बड़े-बड़े प्रश्नचिन्ह तो खड़े किए  पर उसकी अपेक्षाओं पर कोई भी खरा नहीं उतरा।
प्रत्येक  मजहब ने एक  दूसरे के विरुद्ध विषाक्त परिवेश बनाकर करोड़ों लोगों की जान लेने का अमानवीय कार्य ही किया। यह और भी दु:खद बात है कि यह सारा काम शांति और धर्म के नाम पर किया गया।
    वर्तमान विश्व में भी चारों ओर आतंकवाद की आग लगी हुई है। निश्चित रूप से इस आतंकवाद के पीछे मजहब की गहरी चाल है, उसके षड्यंत्र हैं और उसका पाखंडी स्वरूप है। मुस्लिम समाज में भी ऐसे लोगों की  संख्या अब बढ़ती जा रही है जो आतंकवाद से मुक्ति चाहते हैं उनके भीतर का मानव उनको कचोटता है । कई लोगों की बार-बार भीतर से यह इच्छा होती है कि वह इस्लाम की परंपरागत चादर को छोड़कर कोई ऐसी चादर ओढ़ लें जो उन्हें शांति से जीने का रास्ता बताए। कई लोगों को इस बात से भी अब घृणा सी होने लगी है कि लोग उन्हें मुसलमान कहकर उनकी ओर हेय दृष्टि से देखते हैं। तब उनकी भी भीतरी चेतना उनसे कहती है कि क्यों न इस घृणा का स्थायी समाधान खोजते हुए इस्लाम की चादर को ही छोड़ दिया जाए?
  बस, मानवीय सोच की यही वह दशा है जो इस समय इस्लाम और ईसाइयत को मानने वाले लोगों के भीतर एक अजीब सी बेचैनी को जन्म दे रही है।  इस बेचैनी का परिणाम है कि लोग तेजी से एक ऐसे नए धर्म की तलाश कर रहे हैं जो उन्हें सुख,चैन, समृद्धि और समग्र विकास की तमाम ऊंचाइयों की ओर ले जाने में सक्षम और समर्थ हो।
    यही कारण है कि अरब देशों में एक नए धर्म की चर्चा तेज हो गई है और वह नया धर्म ‘अब्राहमी धर्म’ है। यद्यपि इस नए धर्म के विषय में अभी कोई औपचारिक और आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है । ना ही इसके क्या नैतिक नियम अर्थात कायदे कानून होंगे ? – यह भी स्पष्ट किया गया है ।परंतु इसके उपरांत भी इस नए संभावित धर्म की ओर बढ़ने वाले लोगों की भीड़ और समर्थन को देखते हुए कहा जा सकता है कि लोगों में एक वैश्विक धर्म की चिंता और चिंतन तो निश्चित रूप से इस समय तेजी से चल रहा है । मिस्र में धार्मिक एकता के लिए आरंभ किए गए एक महत्वपूर्ण अभियान की मिस्र फैमिली हाउस की दसवीं वर्षगांठ के अवसर पर अल अजहर के शीर्षस्थ इमाम अहमद अल तैय्यब की इस धर्म को लेकर की गई टिप्पणी के बाद बहुत अधिक आलोचना हो रही है।
       अब चाहे बेशक इस संभावित अब्राहमी धर्म की चाहे नींव भी ना रखी गई हो और चाहे इसका कोई अनुयायी भी ना हो परंतु इसकी ओर दुनिया के लोग आतंकवाद और आतंकवादियों की वर्तमान गतिविधियों से दुखी हो चुके हैं और उससे छुटकारा चाहते हैं। यद्यपि इस संभावित धर्म के साथ भी कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा अब से पहले के मजहबों के जन्म काल के समय होता रहा था अर्थात संसार में पहले से ही चल रहे मानव धर्म – सत्य सनातन वैदिक धर्म की ओर लोगों का ध्यान न जाकर फिर लोगों की इच्छा और आशा को भुनाने के दृष्टिकोण से कुछ लोग इस संभावित धर्म को लाने का प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं। यद्यपि यह वर्तमान विश्व की समस्याओं ने स्पष्ट कर दिया है कि संसार को सभी समस्याओं से मुक्ति दिलाने का काम केवल सत्य सनातन वैदिक धर्म ही कर सकता है । इसलिए इस नये धर्म की आवश्यकता अनुभव न करते हुए सत्य सनातन वैदिक धर्म के स्वरूप को सर्व स्वीकृति दिलाने की आवश्यकता है। यदि यह नया धर्म आ भी जाता है तो यह भी दूसरे मजहबों के अनुयायियों के साथ दुर्भाव पूर्ण बर्ताव करने की सीख नहीं देगा , इस बात की कोई गारंटी नहीं है । विशेष रूप से तब जबकि यह संभावित  धर्म अर्थात संप्रदाय संसार में केवल 2 -3  मजहबों को साथ मिलकर रहने के लिए प्रयास करता हुआ दिखाई दे रहा हो। कहने का अभिप्राय है कि इस नए संभावित मजहब का सांप्रदायिक दृष्टिकोण पहले दिन से ही स्पष्ट हो रहा है । इसके चिंतन और सोच में जब आज से ही बिखराव दिखाई दे रहा हो तो इसका भविष्य कैसा हो सकता है ? – सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
     विशेषज्ञों का कहना है कि अब्राहमी धर्म को इस समय एक धार्मिक परियोजना माना जा सकता है। इस परियोजना के अंतर्गत इस्लाम, ईसाई और यहूदी धर्म के बीच समानता को ध्यान में रखते हुए पैगंबर अब्राहम के नाम पर एक नया धर्म बनाने की बात हो रही है।  इसका उद्देश्य इन तीनों धर्मों के बीच के मतभेदों को मिटाना है। अरब देशों में अब्राहमी धर्म की चर्चा लगभग एक वर्ष से हो रही है और इस पर विवाद भी हुआ है लेकिन इस समय अरब जगत में कई लोग इसको लेकर असमंजस में हैं।
  विशेषज्ञों की इस प्रकार की टिप्पणी से स्पष्ट है कि यह धर्म इन तीनों मजहबों को एक साथ बैठाने का प्रयास है ना कि कोई ऐसी नई व्यवस्था खोजना जिससे संसार में शांति स्थाई रूप से स्थापित हो। तब हम यह मान सकते हैं कि यह  नया धर्म कोई धर्म नहीं बल्कि एक नया मजहब है और वह मजहब भी इस विखंडित सोच के साथ आने की कोशिश कर रहा है कि वह पहले से ही मौजूद तीन धर्मों के आपसी मतभेदों को दूर कर दे।  यद्यपि ऐसा संभव नहीं है। क्योंकि पहले से ही उपस्थित इन तीनों मजहबों ने आज तक लोगों के साथ जितना अधिक अन्याय किया है, उसके इतिहास को आने वाली पीढ़ी भी आराम से नहीं भूल पाएंगी। ध्यान रहे कि इतिहास जख्मों को कुरेदता है, उनकी कोई औषधि उसके पास नहीं होती। ऐसे में इस नए संभावित धर्म से तात्कालिक शांति मिलती हुई दिखाई दे सकती है परंतु इसका कोई स्थाई लाभ भी होगा ? – यह नहीं कहा जा सकता।
       जिन लोगों को इस संभावित धर्म के आने से अपनी गद्दी के लिये खतरे दिखाई देने लगे हैं वह अभी से इसकी आलोचना पर उतर आए हैं।  क्योंकि वह नहीं चाहते कि उनकी गद्दी को किसी प्रकार का खतरा हो। वह अपनी गद्दी की एवज में लाखों लोगों को मरवा सकते हैं, करोड़ों लोगों का शोषण कर सकते हैं परंतु उन्हें किसी भी प्रकार के क्रांतिकारी परिवर्तन का सम्मान करना नहीं आता।
मिस्र में धार्मिक एकता के लिए मिस्र फैमिली हाउस की दसवीं वर्षगांठ के अवसर पर अल-अजहर के सर्वोच्च इमाम अहमद अल तैय्यब ने धर्म की आलोचना करते हुए कहा कि जो लोग ईसाई, यहूदी और इस्लाम के एकीकरण का आह्वान करेंगे, वे आएंगे और कहेंगे कि उन्हें सभी बुराइयों से छुटकारा मिल जाएगा। – इस प्रकार की आलोचना का अभिप्राय है कि यह लोग परंपरागत दृष्टिकोण में बदलाव के समर्थक नहीं हैं। उन्हें लोगों में विभाजन और खून खराबा होता रहे,  इसी में आनंद प्राप्त होता है।  उनके अनुसार सभी धर्मों के लोगों को एक साथ लाना असंभव है। क्योंकि यह लोग भली प्रकार जानते हैं कि मजहब कभी भी दूसरे लोगों को साथ लेकर चलने की एक सुव्यवस्थित योजना नहीं हो सकती, बल्कि वह अपनी अपनी दुकानदारी को चमकाने का एक माध्यम है । इस प्रकार के माध्यम को यह किसी भी प्रकार का खतरा उत्पन्न होने देना नहीं चाहते।
मिस्र के कॉप्टिक पादरियों ने भी अब्राहमी धर्म के अस्तित्व का विरोध किया है। यहां तक कहा जा रहा है कि अब्राहमी धर्म धोखे और शोषण की आड़ में एक राजनीतिक आह्वान है। इन पादरियों की इस प्रकार की आलोचना का अभिप्राय है कि वह अपनी तथाकथित धर्म की राजनीति में राजनीतिक हस्तक्षेप उचित नहीं मानते।  वे सब संसार के लिए मजहब के नाम पर फतवे आदि जारी करते रहेंगे और उसके आधार पर लोगों में खून खराबे की प्रवृत्ति को बढ़ावा देते रहेंगे । इसके लिए वह यह भी चाहेंगे कि राजनीति उनकी चेरी बन कर रहे और वह धर्म के नाम पर होते चले आ रहे उत्पात और उन्माद का कोई भी राजनीतिक समाधान खोजने में असफल रहे।
     इधर राजनीति में रहने वाले लोगों के लिए भी यह मुल्ले, पादरी, धार्मिक मठाधीश अपनी राजनीति को चमकाने का एक अच्छा और सस्ता माध्यम होते हैं। इनसे आशीर्वाद लेने के लिए नेता इनके तथाकथित पूजा स्थलों पर नहीं जाते बल्कि वहां बनी बनाई भीड़ को अपने साथ जोड़ने का मनसा पाप लेकर जाते हैं। इसलिए भारत जैसे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष देश में भी राजनीतिक लोग संप्रदायिक राजनीतिक करते देखे जाते हैं । वह भी नहीं चाहेंगे कि संसार में एक नया वैश्विक धर्म उत्पन्न हो और उस नए वैश्विक धर्म की सारी मान्यताएं वैदिक सनातन धर्म के आधार पर हों। कुल मिलाकर राजनीति भी वितंडावाद और बिखराव को ही जन्म देने और उसका समर्थन करने के लिए बनी है। ऐसे में संसार की इस अटूट चाह के उपरांत भी कि कोई नया वैश्विक धर्म स्थापित हो,  कोई ऐसा नया धर्म स्थापित नहीं हो सकता जो वैदिक सत्य सनातन धर्म की मान्यताओं को लेकर चलने वाला हो और सदा – सदा के लिए मानव की सभी समस्याओं का समाधान देने की दिशा में ठोस कार्यक्रम प्रस्तुत कर सके।
  यद्यपि इस समय केंद्र की मोदी सरकार के लिए यह बहुत ही स्वर्णिम अवसर है कि जब संसार के लोग एक नए वैश्विक धर्म की इच्छा रख रहे हों तब भारत के वैदिक धर्म के मानवतावाद को संसार के मंचों पर बहुत शानदार ढंग से प्रस्तुत किया जाए। साथ ही इस बात को निसंकोच कहा जाए कि संसार में शांति स्थापित करने वाले लोग वैदिक धर्म के झंडे तले आएं और वेद के मानवतावाद को संसार का मानव धर्म घोषित करने की दिशा में ठोस और सकारात्मक पहल करें। भारत उनका नेतृत्व करने के लिए तैयार है। यदि केंद्र की मोदी सरकार इस दिशा में और भी अधिक रूचि लेते हुए काम करती है तो निश्चित ही संसार के लिए वैश्विक धर्म के रूप में सत्य सनातन वैदिक धर्म को स्थापित करने में हमें सफलता प्राप्त हो सकती है।

    डॉ राकेश कुमार आर्य

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