Categories
उगता भारत न्यूज़

माता सत्यवती आर्या  की 97 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित सामवेद परायण यज्ञ में बोले विद्वान – भारतीय संगीत के इतिहास के क्षेत्र में सामवेद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है : महेंद्र सिंह आर्य

ग्रेटर नोएडा ( संवाददाता )  माता सत्यवती की 97 वी जयंती के अवसर पर चल रहे सामवेद परायण यज्ञ में चौथे सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए आर्य समाज के क्रांतिकारी नेता और आर्य प्रतिनिधि सभा जनपद गौतम बुद्ध नगर के प्रधान महेंद्र सिंह आर्य ने कहा कि सामवेद  चार वेदों में से एक है। साम‘ शब्द का अर्थ है ‘गान‘। सामवेद में कुल 1875 ऋचायें हैं। जिनमें 75 से अतिरिक्त शेष ऋग्वेद से ली गयी हैं। इन ऋचाओं का गान सोमयज्ञ के समय ‘उदगाता‘ करते थे।
    श्री आर्य ने कहा कि देवता विषयक विवेचन की दृष्ठि से सामवेद का प्रमुख देवता ‘सविता‘ या ‘सूर्य‘ है, इसमें मुख्यतः सूर्य की स्तुति के मंत्र हैं किन्तु इंद्र सोम का भी इसमें पर्याप्त वर्णन है । भारतीय संगीत के इतिहास के क्षेत्र में सामवेद का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इसे भारतीय संगीत का मूल कहा जा सकता है। सामवेद का प्रथम द्रष्टा वेदव्यास के शिष्य जैमिनि को माना जाता है।
    उन्होंने कहा कि सामवेद गीत-संगीत प्रधान है. प्राचीन आर्यों द्वारा साम-गान किया जाता था. सामवेद चारों वेदों में आकार की दृष्टि से सबसे छोटा है और इसके 1875 मन्त्रों में से 69 को छोड़ कर सभी ऋगवेद के हैं। केवल 17 मन्त्र अथर्ववेद और यजुर्वेद के पाये जाते हैं। सामवेद यद्यपि छोटा है परन्तु एक तरह से यह सभी वेदों का सार रूप है और सभी वेदों के चुने हुए अंश इसमें शामिल किये गये है। सामवेद संहिता में जो 1875 मन्त्र हैं, उनमें से 1504 मन्त्र ऋग्वेद के ही हैं। सामवेद संहिता के दो भाग हैं, आर्चिक और गान।
    सामवेद को उदगीथों का रस कहा गया है, छान्दोग्य उपनिषद में. अथर्ववेद के चौदहवें कांड, ऐतरेय ब्राह्मण (8-27) और बृहदारण्यक उपनिषद (जो शुक्ल यजुर्वेद का उपनिषद् है, 6.4.27), में सामवेद और ऋग्वेद को पति-पत्नी के जोड़े के रूप में दिखाया गया है –
अमो अहम अस्मि सात्वम् सामहमस्मि ऋक त्वम् , द्यौरहंपृथ्वीत्वं, ताविह संभवाह प्रजयामावहै. अर्थात (अमो अहम अस्मि सात्वम् ) मैं -पति – अम हूं, सा तुम हो, (द्यौरहंपृथ्वीत्वं) मैं द्यौ (द्युलोक) हूं तुम पृथ्वी हो. (ताविह संभवाह प्रजयामावहै) हम साथ बढ़े और प्रजावाले हों. .
   इसी सत्र में श्री देव मुनि ने कहा कि उपनिषद हमारी वैदिक संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । उन्होंने कहा कि उपनिषदों की कथाओं का रसास्वादन हर एक गृहस्थी को लेना चाहिए।
श्री देव मुनि ने कहा कि भारत का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद वैदिक संस्कृति के राष्ट्रवादी चिंतन से ही निकला है जिसे आज कुछ विकृत दृष्टिकोण से देखा जाता है। उन्होंने कहा कि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की परंपरा को वैदिक दृष्टिकोण से समझने की आवश्यकता है।
इससे पूर्व तीसरे सत्र में ‘उगता भारत’ समाचार पत्र के मुख्य संरक्षक प्रोफेसर विजेंदर सिंह आर्य ने अपनी भारतीय संस्कृति का गुणगान करते हुए कहा कि शोपेनहावर जैसा विदेशी विद्वान हमारे उपनिषदों को सिर पर रख कर नाचा था। क्योंकि उसे उनके अध्ययन से यह बोध हो गया था कि उसका आत्मिक कल्याण केवल उपनिषदों के माध्यम से ही हो सकता है। उन्होंने कहा कि विदेशों के जितने भी विद्वान हुए हैं वह सब हमारे ऋषि यों के समक्ष बहुत छोटे चिंतन वाले हैं । श्री आर्य ने कहा कि गीता वेद उपनिषद् आदि हमारे लिए श्रद्धा के केंद्र हैं। इसी सत्र में श्री महेंद्र सिंह आर्य सूरजपुर ने भी अपने विचार रखे और संगीत के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन किया। इसी सत्र में तेजवीर सिंह यादव जो कि 85 वर्ष के वृद्ध हैं ने भी संगीत के द्वारा लोगों को गदगद कर दिया। तीसरे सत्र में ही श्री देवेंद्र सिंह आर्य, श्री रविंद्र आर्य, श्री राकेश यादव, श्री श्याम लाल शर्मा, महावीर सिंह आर्य, राजेश बैरागी, ओमवीर सिंह बैसोया एडवोकेट ,राकेश भाटी एडवोकेट सहित अनेकों गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

Comment:Cancel reply

Exit mobile version